आलोचना पाठ लिरिक्स हिंदी मीनिंग Aalochna Path Lyrics Hindi Meaning Jain Bhajan


आलोचना पाठ लिरिक्स हिंदी मीनिंग Aalochna Path Lyrics Hindi Meaning Jain Bhajan By Rajender Jain


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 आलोचना पाठ क्या है ? Alochna Path Kya Hota Hai?

यह एक जैन धर्म से सबंधित एक पाठ विधान है। आलोचना का आशय किसी दूसरे की आलोचना नहीं बल्कि यह स्वंय की बुराइयों को दूर करने के लिए आलोचना पाठ किया जाता है। दिगंबर परम्परा में आलोचना पाठ का अधिक प्रचलन रहा है। स्वेतांबर मार्ग में प्रतिक्रमण का विधान है। आलोचना पाठ से हम स्वंय की बुराइयों की आलोचना कर उन्हें दूर करने का प्रयत्न करते हैं। 
 
आलोचना : किसी व्यक्ति के कार्यों, निर्णयों, घटनाओं परिणामों के विषय में उसके गुण दोषों का विश्लेषण करना आलोचना कहलाती है। आलोचना सदैव नकारात्मक नहीं होती है। आलोचना का शाब्दिक अर्थ विश्लेषण करना, अच्छे से परख कर देखना होता है। 

आलोचना पाठ का हिंदी में मतलब /आलोचना पाठ हिंदी मीनिंग (अर्थ)

वन्दों पाँचों परम गुरु, चौबीसो जिन राज,
करुं शुद्ध आलोचना, शुद्धिकरण के काज।

हिंदी मीनिंग : यह पंक्तियाँ जौहरी लाल जी के द्वारा रचित हैं जिनमे सन्देश है की मैं पञ्च परमेष्ठियों का वंदन करता हूँ। विकारों को दूर करने के लिए, शुद्धि करण के लिए मैं जिनराज मैं आपसे विनय कर रहा हूँ।

सुनिए जिन अरज हमारी, हम दोष किये अति भारी,
तिनकी अब निर्वृत्ति काजा, तुम सरन लही जिनराजा।

हिंदी मीनिंग : हे जिनराज जो भी मैंने जाने अनजाने में पाप किए हैं, मैंने बड़े भारी दोष के कार्य किए हैं। अब मैं उनसे छुटकारा प्राप्त करने के लिए आपकी शरण में आया हूँ, मैंने आप की शरण ली है। 
 
इक वे ते चउँ इन्द्री वा, मन रहित सहित जे जीवा,
तिनकी नाहीं करुणा धारी, निरदय ह्वै घात विचारी।

हिंदी अर्थ : मैंने एक इंद्री से लेकर मैंने जीवों पर अत्याचार किया है, घात किया है। मैंने उनके प्रति अपने हृदय में करुणा का भाव नहीं रखा। मैंने अपने विचारों में उनके लिए घात लगाईं। हृदय को अशुद्ध किया। हे जिनेन्द्र देव हमने बहुत ही भारी दोष किये हैं। चारों इन्द्रियों सहित पंचइन्द्रियों के प्रति मैंने घात की है। 

समरंभ समारंभ आरंभ, मन वच तन कीने प्रारंभ,
कृत कारित मोदन करिकै , क्रोधादि चतुष्टय धरिकै।

हिंदी मीनिंग : मैंने अपना मानस बना कर उचित साधन आदि जुटाएं हैं। मन वचन और तन से प्रारम्भ किया है। मैंने क्रोध आदि को धारण किया है। 

शत आठ जु इमि भेदन तैं, अघ कीने परिछेदन तैं,
तिनकी कहुँ कोलों कहानी, तुम जानत केवलज्ञानी।

हिंदी अर्थ : मैंने इन एक सो आठ प्रकार के भेदों से पाप किए हैं। मैंने परछेदन का पाप किया है। मैं उनकी, मेरे द्वार किए गए पापों का वर्णन मैं कहाँ तक कहूं। आप ही परमज्ञानी हैं और आप सब जानते हैं। मेरे पापों की लम्बी कहानी है।

विपरीत एकांत विनय के, संशय अज्ञान कुनय के,
वश होय घोर अघ कीने, वचतैं नहिं जाय कहीने।

हिंदी अर्थ : विपरीत, एकांत विनय, संशय अज्ञान कुनय आदि कुनय के भेद मिथ्यात हैं। इनके वश होकर मैंने घोर पाप किए हैं। मैं उनके बारे मैं आपको कहकर नहीं बता सकता हूँ। 
 
कुगुरुन की सेवा कीनी, केवल अदयाकरि भीनी,
या विधि मिथ्यात भरमायो , चहुंगति मधि दोष उपायो।

हिंदी मीनिंग : जो गुरु के पद के लायक नहीं थे उनकी सेवा की। मैंने ऐसा उनके प्रति दया करने के भाव से (अदया के भय से की कहीं दया का विपरीत ना हो जाए) उनकी सेवा की मिथ्यात के कारण मैं भ्रमित रहा। ऐसा करके मैंने चारों गतियों में दोष को उतपन्न कर लिया है।

हिंसा पुनि झूठ जु चोरी, परवनिता सों दृगजोरी,
आरंभ परिग्रह भीनो, पन पाप जु या विधि कीनो।

सपरस रसना घ्राननको, चखु कान विषय सेवनको,
बहु करम किये मनमाने, कछु न्याय अन्याय न जाने।

फल पंच उदम्बर खाये, मधु मांस मद्य चित चाहे,
नहिं अष्ट मूलगुण धारे, सेये कुविसन दुखकारे।

दुइबीस अभख जिन गाये, सो भी निशदिन भुंजाये,
कछु भेदाभेद न पायो, ज्यों-त्यों करि उदर भरायो।

अनंतानु जु बंधी जानो, प्रत्याख्यान अप्रत्याख्यानो,
संज्वलन चौकड़ी गुनिये, सब भेद जु षोडश गुनिये।

परिहास अरति रति शोग, भय ग्लानि त्रिवेद संयोग,
पनबीस जु भेद भये इम, इनके वश पाप किये हम।

निद्रावश शयन कराई, सुपने मधि दोष लगाई,
फिर जागि विषय-वन धायो, नानाविध विष-फल खायो।

आहार विहार निहारा, इनमें नहिं जतन विचारा,
बिन देखी धरी उठाई, बिन शोधी वस्तु जु खाई।

तब ही परमाद सतायो, बहुविधि विकलप उपजायो,
कछु सुधि बुधि नाहिं रही है, मिथ्यामति छाय गयी है।

मरजादा तुम ढिंग लीनी, ताहू में दोस जु कीनी,
भिनभिन अब कैसे कहिये, तुम ज्ञानविषैं सब पइये।

हा हा! मैं दुठ अपराधी, त्रसजीवन राशि विराधी।
थावर की जतन न कीनी, उर में करुना नहिं लीनी।

पृथिवी बहु खोद कराई, महलादिक जागां चिनाई।
पुनि बिन गाल्यो जल ढोल्यो,पंखातैं पवन बिलोल्यो।

हा हा! मैं अदयाचारी, बहु हरितकाय जु विदारी।
तामधि जीवन के खंदा, हम खाये धरि आनंदा।

हा हा! परमाद बसाई, बिन देखे अगनि जलाई।
तामधि जीव जु आये, ते हू परलोक सिधाये॥ २१॥

बींध्यो अन राति पिसायो, ईंधन बिन-सोधि जलायो।
झाडू ले जागां बुहारी, चींटी आदिक जीव बिदारी।

जल छानि जिवानी कीनी, सो हू पुनि-डारि जु दीनी।
नहिं जल-थानक पहुँचाई, किरिया बिन पाप उपाई।

जलमल मोरिन गिरवायो, कृमिकुल बहुघात करायो।
नदियन बिच चीर धुवाये, कोसन के जीव मराये।

अन्नादिक शोध कराई, तामें जु जीव निसराई।
तिनका नहिं जतन कराया, गलियारैं धूप डराया।

पुनि द्रव्य कमावन काजे, बहु आरंभ हिंसा साजे।
किये तिसनावश अघ भारी, करुना नहिं रंच विचारी।

इत्यादिक पाप अनंता, हम कीने श्री भगवंता।
संतति चिरकाल उपाई, वानी तैं कहिय न जाई।

ताको जु उदय अब आयो, नानाविध मोहि सतायो।
फल भुँजत जिय दुख पावै, वचतैं कैसें करि गावै।

तुम जानत केवलज्ञानी, दुख दूर करो शिवथानी।
हम तो तुम शरण लही है जिन तारन विरद सही है।

इक गांवपती जो होवे, सो भी दुखिया दुख खोवै।
तुम तीन भुवन के स्वामी, दुख मेटहु अन्तरजामी।

द्रोपदि को चीर बढ़ायो, सीता प्रति कमल रचायो।
अंजन से किये अकामी, दुख मेटो अन्तरजामी।

मेरे अवगुन न चितारो, प्रभु अपनो विरद सम्हारो।
सब दोषरहित करि स्वामी, दुख मेटहु अन्तरजामी।

इंद्रादिक पद नहिं चाहूँ, विषयनि में नाहिं लुभाऊँ ।
रागादिक दोष हरीजे, परमातम निजपद दीजे।
दोहा
दोष रहित जिनदेवजी, निजपद दीज्यो मोय।
सब जीवन के सुख बढ़ै, आनंद-मंगल होय।

अनुभव माणिक पारखी, जौहरी आप जिनन्द।
ये ही वर मोहि दीजिये, चरन-शरन आनन्द। 
 

आलोचना पाठ । Aalochna Paath | जैन पूजा । By Rajender Jain | HD video |
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