एक अचम्भा देखा रे भाई Ek Achambha Dekha Re bhayi
रहस्यमई और गूढ़ अर्थ को परिभाषित करती हुई यह कबीर साहेब की उलटबासी भजन है। उलटबासी से आशय है की सरल भाषा के स्थान पर विरोधाभाषी शब्दों का उपयोग किया जाता है जो प्रचलित अर्थों के विपरीत भाव प्रकट करती हैं। ऋग्वेद में भी कई स्थानों पर उलटबासी का उपयोग देखने में मिलता है।
यथा -
चत्वारि शृङ्गा त्रयो अस्य पादा द्वे शीर्षे सप्त हस्तासो अस्य ।
त्रिधा बद्धो वृषभो रोरवीति महो देवो मर्त्याँ आ विवेश ॥
अवधू ऐसा ग्यान विचारै।
भेरैं बढ़े सु अधधर डूबे, निराधार भये पारं।। टेक।।
ऊघट चले सु नगरि पहूँते, बाट चले ते लूटे।
एक जेवड़ी सब लपटाँने, के बाँधे के छूटे।।
मँड़ये के चारन समधी दीन्हा, पुत्र व्यहिल माता॥
दुलहिन लीप चौक बैठारी। निर्भय पद परकासा॥
भाते उलटि बरातिहिं खायो, भली बनी कुशलाता।
पाणिग्रहण भयो भौ मुँडन, सुषमनि सुरति समानी,
कहहिं कबीर सुनो हो सन्तो, बूझो पण्डित ज्ञानी॥
त्रिधा बद्धो वृषभो रोरवीति महो देवो मर्त्याँ आ विवेश ॥
अवधू ऐसा ग्यान विचारै।
भेरैं बढ़े सु अधधर डूबे, निराधार भये पारं।। टेक।।
ऊघट चले सु नगरि पहूँते, बाट चले ते लूटे।
एक जेवड़ी सब लपटाँने, के बाँधे के छूटे।।
मँड़ये के चारन समधी दीन्हा, पुत्र व्यहिल माता॥
दुलहिन लीप चौक बैठारी। निर्भय पद परकासा॥
भाते उलटि बरातिहिं खायो, भली बनी कुशलाता।
पाणिग्रहण भयो भौ मुँडन, सुषमनि सुरति समानी,
कहहिं कबीर सुनो हो सन्तो, बूझो पण्डित ज्ञानी॥
एक अचम्भा देखा रे भाई
ठाड़ा सिंह चरावै गाई
पहले पूत
पहले पूत पीछे भई माई
चेला के गुरु लगै पाई
ठाड़ा सिंह चरावै गाई
जल की मछली
पकड़ि बिलाई मुर्गा खाई
बैलहि डारि गूति घर लाई
कुत्ता कूलै गई विलाई
एक अचम्भा देखा रे भाई
ठाड़ा सिंह चरावै गाई
तलि करि साषा उपरि करि मूल
बहुत भांति जड़ लागै फूल
तलि करि साषा उपरि करि मूल
बहुत भांति जड़ लागै फूल
कहै कबीर या पद कूं बूझै
ताकूं तीन्यूं त्रीभुवन सूझै
ठाड़ा सिंह चरावै गाई
एक अचम्भा देखा रे भाई
ठाड़ा सिंह चरावै गाई
ठाड़ा सिंह चरावै गाई
पहले पूत
पहले पूत पीछे भई माई
चेला के गुरु लगै पाई
ठाड़ा सिंह चरावै गाई
जल की मछली
पकड़ि बिलाई मुर्गा खाई
बैलहि डारि गूति घर लाई
कुत्ता कूलै गई विलाई
एक अचम्भा देखा रे भाई
ठाड़ा सिंह चरावै गाई
तलि करि साषा उपरि करि मूल
बहुत भांति जड़ लागै फूल
तलि करि साषा उपरि करि मूल
बहुत भांति जड़ लागै फूल
कहै कबीर या पद कूं बूझै
ताकूं तीन्यूं त्रीभुवन सूझै
ठाड़ा सिंह चरावै गाई
एक अचम्भा देखा रे भाई
ठाड़ा सिंह चरावै गाई
Ek Achambha Dekha I Pandit Madhup Mudgal I एक अचम्भा देखा I Rajasthan Kabir Yatra
Thaada Sinh Charaavai Gaee
Pahale Poot
Pahale Poot Peechhe Bhee Maee
Chela Ke Guru Lagai Paee
Thaada Sinh Charaavai Gaee
Jal Kee Machhalee
Pakadi Bilaee Murga Khaee
Bailahi Daari Gooti Ghar Laee
Kutta Koolai Gaee Vilaee
Ek Achambha Dekha Re Bhaee
Thaada Sinh Charaavai Gaee
Tali Kari Saasha Upari Kari Mool
Bahut Bhaanti Jad Laagai Phool
Tali Kari Saasha Upari Kari Mool
Bahut Bhaanti Jad Laagai Phool
Kahai Kabeer Ya Pad Koon Boojhai
Taakoon Teenyoon Treebhuvan Soojhai
Thaada Sinh Charaavai Gaee
Ek Achambha Dekha Re Bhaee
Thaada Sinh Charaavai Gaee
Author - Saroj Jangir
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