अब थारो काई पतियारो रे परदेसी भजन लिरिक्स Aub Tharo Kaai Patiyaro Lyrics Meaning

अब थारो काई पतियारो रे परदेसी भजन लिरिक्स Aub Tharo Kaai Patiyaro Lyrics, Kabir Bhajan by Shabnam Virmani

कबीर साहेब की सुंदर वाणी है जो मृत्यु के विषय में जीवात्मा को सचेत करती है। तुम तो यहाँ के नहीं हो, तुम्हे तो एक रोज जाना ही है, तुम्हारा पता क्या है। भाव है की  जिस माया के चक्कर में पड़कर जीवात्मा उलझी रहती है और जीवन के उद्देश्य को विस्मृत करके इस जगत को ही स्थाई घर समझने लग जाती है। इस भरम के वश में होकर ही वह अनेकों पाप कर्मों को करता है और अंत समय में कोई धन उसका साथ नहीं निभाता है। मृत्यु अंतिम सत्य है लेकिन सुन्दर भी, जीवन जैसा भी हो अच्छा या बुरा यह एक रोज समाप्त हो जाना है और फिर कहीं पर नवउदय होना होता है।
अब थारो काई पतियारो,
रै परदेसी,
ओ दूरादेसी।

मायला धंसी गई भीत,
पड़न लागी टाटी
थारी टाटी में मिल गयी माटी,
रै परदेसी,
अब थारो काई पतियारों,
रे परदेसी।

मायला जब लग तेल,
दिया रे माहीं बाती,
थारा मंदरिया में होयो उजियारो,
रै परदेसी,
अब थारो काई पतियारों,
रे परदेसी।

मायला खूटी गयो तेल,
बुझन लागी बाती,
थारा मंदरिया में होयो अंधियारो,
रै परदेसी,
अब थारो काई पतियारों,
रे परदेसी।  

मायला उठी चलो बणियो,
सूनी आ थारी हाठड़ी
इ तो तालो दई गयो,
ने खूंची लई गयो,
रे दूरादेसी
रै परदेसी,
अब थारो काई पतियारों,
रे परदेसी।

मायला कहें हो कबीर साह,
सुनो रे भाई साधो
थारो हंसो अमरापुर जासी,
रे परदेसी,
अब थारो कईं पतियारो,
रै परदेसी,
अब थारो काई पतियारों,
रे परदेसी। 

अब थारो काई पतियारो, रै परदेसी ओ दूरादेसी: अब तुम्हारा क्या पता ठिकाना है, तुम तो दूर देश के वासी हो। भाव है की तुम्हारा क्या भरोसा है तुम तो यहाँ के नहीं हो दूर देश के हो।
मायला धंसी गई भीत, पड़न लागी टाटी : अंदर की दीवार धँस गई है, और छत टूटकर गिरने लगी है। भीत-छत। पड़न लागी -गिरने लगी है, खडित होकर। टाटी-छत। भाव है की तुम्हारी काया रूपी छत गिरने लगी है।
थारी टाटी में मिल गयी माटी : टाटी टूटकर मिटटी में मिल गई है।
मायला जब लग तेल, दिया रे माहीं बाती : हृदय /चित्त, मन को मायला कहकर सम्बोधित करते हुए वाणी है की जब तक तुम्हारे दिए (चित्त में) में तेल है, बाती (प्राण) है तब तक उजाला हुआ (जीवन का संचार हुआ ) .
मायला खूटी गयो तेल, बुझन लागी बाती : अंदर के दिए में तेल कम पड़ने लगा, समाप्त हो गया और बाती बुझने लगी।
थारा मंदरिया में होयो अंधियारो : तुम्हारे काया रूपी भवन में अँधेरा होने लगा है।
मायला उठी चलो बणियो, सूनी आ थारी हाठड़ी : अंदर का वणिक / बाणिया (व्यापार करने वाला ) उठ चला है और दूकान (हाट) सूनी पड़ी है। भाव है की जब प्राण वायु समाप्त हो जाती है तो काया वीरान हो जाती है।
इ तो तालो दई गयो, ने खूंची लई गयो : ये तो दूकान के ताला लगा गया है और कुंजी/चाबी अपने साथ ले गया है।
मायला कहें हो कबीर साह : कबीर साहेब कहते हैं की हृदय के अंदर से आवाज आती है की सुनों भाई साधो, तुम्हारा हंसा (जीवात्मा) स्वर्ग में जायेगी। अमरापुर -देवलोक।  

'Aub Thaaro Kain Patiyaaro?' asks Kabir

Ab Thaaro Kai Patiyaaro,
Rai Paradesi,
O Duraadesi.

Maayala Dhansi Gai Bhit,
Padan Laagi Taati
Thaari Taati Mein Mil Gayi Maati,
Rai Paradesi,
Ab Thaaro Kai Patiyaaron,
Re Paradesi.

Maayala Jab Lag Tel,
Diya Re Maahin Baati,
Thaara Mandariya Mein Hoyo Ujiyaaro,
Rai Paradesi,
Ab Thaaro Kai Patiyaaron,
Re Paradesi.

Maayala Khuti Gayo Tel,
Bujhan Laagi Baati,
Thaara Mandariya Mein Hoyo Andhiyaaro,
Rai Paradesi,
Ab Thaaro Kai Patiyaaron,
Re Paradesi.  

Maayala Uthi Chalo Baniyo,
Suni Aa Thaari Haathadi
I To Taalo Dai Gayo,
Ne Khunchi Lai Gayo,
Re Duraadesi
Rai Paradesi,
Ab Thaaro Kai Patiyaaron,
Re Paradesi.

Maayala Kahen Ho Kabir Saah,
Suno Re Bhai Saadho
Thaaro Hanso Amaraapur Jaasi,
Re Paradesi,
Ab Thaaro Kain Patiyaaro,
Rai Paradesi,
Ab Thaaro Kai Patiyaaron,
Re Paradesi.
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