हेरत हेरत हे सखी मीनिंग
हेरत हेरत हे सखी मीनिंग
हेरत हेरत हे सखी, रह्या कबीर हिराइ।बूँद समानी समंद मैं, सो कत हेरी जाइ॥
Herat Herat He Sakhi, Rahaya Kabir Hiraayi,
Bund Samaani Samand Me, So Kat Heri Jaai.
हेरत हेरत : देखते देखते, खोजते खोजते.
हे सखी : आत्मा रूपी सखी.
रह्या हिराइ : स्वंय ही खो गए हैं.
बूँद समानी समंद मैं, सो कत हेरी जाइ : एक बूंद समुद्र में समा गई है, अब उसे कैसे ढूंढा जाए.
सो कत : वह कैसे.
हेरी जाई- खोजी जाए.
हे सखी : आत्मा रूपी सखी.
रह्या हिराइ : स्वंय ही खो गए हैं.
बूँद समानी समंद मैं, सो कत हेरी जाइ : एक बूंद समुद्र में समा गई है, अब उसे कैसे ढूंढा जाए.
सो कत : वह कैसे.
हेरी जाई- खोजी जाए.
आत्मा का संवाद है की मालिक / इश्वर को खोजते खोजते मैं (जीवात्मा ) स्वंय ही खो गई हूँ, गुम हो गई हूँ. जैसे कोई एक बूंद समुद्र में जाकर मिल गई है तो उसे कैसे खोजा जा सकता है. भाव है की इश्वर को प्राप्त करना, खोजना कोई आसान कार्य नहीं है जैसे समुद्र में से एक बूंद को खोजना संभव नहीं है. कबीर की अनुभूति अद्वैत की उस स्थिति तक पहुँचती है, जहाँ साधक और साध्य, आत्मा और परमात्मा का भेद समाप्त हो जाता है। यह यात्रा केवल खोज और प्रयास की नहीं, बल्कि स्वयं के अहंकार के विलय और सम्पूर्ण समर्पण की है—जैसे जल की बूँद, जब विशाल समुद्र में समा जाती है, तो वह अपनी स्वतंत्र सत्ता खो बैठती है। एक-एक प्रयास, बार-बार का आत्म-संवाद, साधना की गहराई में जब अध्यात्म का अनुभव बोध प्रकट होता है, तो उसी क्षण खोजने वाला ही खोज का विषय बन जाता है।
इस साखी का मूल भाव है की जीवात्मा पूर्ण परमात्मा का एक अंश है जैसे एक बूंद समुद्र का ही एक अंश है. जीवात्मा पूर्ण परमात्मा में जाकर मिल चुकी है, अब ऐसे में उसकी स्वतंत्र पहचान समाप्त हो गई है. उसे पुनः खोज पाना संभव नहीं है. अहम के समाप्त हो जाने पर जीवात्मा पूर्ण परमात्मा का ही भाग बन जाती है.
कबीर के दर्शन में आत्मा और परमात्मा के बीच कोई वास्तविक भेद नहीं है — दोनों एक ही परम सत्य के दो विभिन्न अनुभव-स्तर हैं। वे कहते हैं कि आत्मा परमात्मा की ही अंशरूप चिंगारी है, जो माया और देह के आवरणों के कारण अपने स्रोत को भूल गई है। आत्मा जब अपनी पहचान को पुनः जाग्रत करती है, तब उसे यह ज्ञात होता है कि जिस परम सत्ता की वह खोज कर रही थी, वही उसके भीतर विद्यमान है। यह अनुभूति इस रूपक में स्पष्ट दिखाई देती है कि जैसे जल की एक बूँद जब सागर में मिल जाती है, तो उसे अलग से नहीं खोजा जा सकता, वैसे ही आत्मा का अंततः परमात्मा में लय ही उसका अंतिम सत्य है।
