जिहि बन सीह ना संचरै हिंदी मीनिंग Jihi Ban Seeh Na Sanchare Meaning, Kabir Ke Dohe Hindi Meaning (Kabir Ke Dohe Hindi Bhavart/Hindi Arth)
जिहि बन सीह ना संचरै पंषि उड़ै नहिं जाइ।रैनि दिवस का गमि नहीं तहां कबीर रह्या ल्यो आइ।
Jihi Ban Seeh Na Sanchare, Pankhi Ude Nahi Jaai,
Raini Divas Ka Gami nahi Taha Kabir Rahya Lyo Aaai.
जिहि : जिस।
बन : वन/बन।
सीह : सिंह/अहम.
ना संचरै : विचरण नहीं करता है।
पंषि : पक्षी, इन्द्रियां।
रैनि दिवस : रात और दिन।
का गमि नहीं : घटित नहीं होते हैं।
तहां कबीर रह्या ल्यो आइ : वहां पर, ऐसी स्थिति में कबीर ध्यान लगा रहा है।
बन : वन/बन।
सीह : सिंह/अहम.
ना संचरै : विचरण नहीं करता है।
पंषि : पक्षी, इन्द्रियां।
रैनि दिवस : रात और दिन।
का गमि नहीं : घटित नहीं होते हैं।
तहां कबीर रह्या ल्यो आइ : वहां पर, ऐसी स्थिति में कबीर ध्यान लगा रहा है।
जिस वन में सिंह विचरण नहीं करता है, जहाँ पक्षी भी उड़कर नहीं जा सकता है, ऐसे वन में कबीर साहेब ध्यान लगाते हैं। यह वन/जंगल निराकार जंगल है जो सांसारिक जंगल से भिन्न है और यहाँ पर अहम रूपी सिंह भी विचरण नहीं कर सकता है. ऐसे वन में इन्द्रियगत पक्षी भी प्रवेश नहीं कर सकते हैं, सांसारिक मोह जनित कोई व्यवहार वहां पर नहीं होता है और ऐसा स्थान काल से भी परे हैं, क्योंकि वहां पर दिन और रात भी नहीं होते हैं. ऐसे अगम्य स्थान पर कबीर साहेब ने अपनी लो लगा रखी है. यह शून्य की स्थिति है जहाँ पर अहम के साथ व्यक्ति पंहुच नहीं सकता है. अतः इस साखी का भाव है की द्वेत भाव को छोडकर ही ऐसे स्थान पर पंहुचा जा सकता है.