सुरति ढीकुली लेज ल्यो मन नित ढोलन हार मीनिंग Surati Dheekuli Lej Lyo Meaning
सुरति ढीकुली लेज ल्यो मन नित ढोलन हार मीनिंग Surati Dheekuli Lej Lyo Meaning Kabir Ke Dohe Hindi Arth Sahit (Hindi Meaning)
सुरति ढीकुली लेज ल्यो, मन नित ढोलन हार।
कँवल कुवाँ मैं प्रेम रस, पीवै बारंबार॥
कँवल कुवाँ मैं प्रेम रस, पीवै बारंबार॥
Surati Dhikuli Lej Lyo, Man Nit Dholan Haar,
Kanwal Kua Main Prem Rs, Pive Baarambaar.
सुरति : सुरती, आत्मा।
ढीकुली : कुए से पानी निकालने का यंत्र।
लेज : रस्सी।
ल्यो : लय, लगन।
मन : हृदय, चित्त।
नित : रोज ही।
ढोलन हार : डोलची (डोल -पानी भरने का बाल्टिनुमा भाग)
कँवल कुवाँ : सहस्रदल कमल कुंआ।
मैं प्रेम रस : राम रसायन, भक्ति रस।
पीवै बारंबार : बार बार पीता है, सेवन करता है।
ढीकुली : कुए से पानी निकालने का यंत्र।
लेज : रस्सी।
ल्यो : लय, लगन।
मन : हृदय, चित्त।
नित : रोज ही।
ढोलन हार : डोलची (डोल -पानी भरने का बाल्टिनुमा भाग)
कँवल कुवाँ : सहस्रदल कमल कुंआ।
मैं प्रेम रस : राम रसायन, भक्ति रस।
पीवै बारंबार : बार बार पीता है, सेवन करता है।
सहस्त्रार चक्र रूपी कमल कुआँ है जो भक्ति रस, राम रसायन से परिपूर्ण है। इसमें सुरति ढेकुली बन जाती है और लगन की रस्सी से मन डोल बनकर इसे नित्य ही शरीर के अंदर धकेलता है। इसका पान करके मन में प्रशन्नता होती है और वह इसे बार बार पीता है।
कबीर साहेब ने खेत में सिंचाई के कार्य आने वाले रहट का उदाहरण देकर स्पष्ट किया है की जैसे सिंचाई के लिए एक यंत्र के सभी हिस्सों का कार्य करना आवश्यक है ऐसे ही मन और लगन के संयोग से साधक भक्ति रस का पान कर सकता है।
कबीर साहेब ने खेत में सिंचाई के कार्य आने वाले रहट का उदाहरण देकर स्पष्ट किया है की जैसे सिंचाई के लिए एक यंत्र के सभी हिस्सों का कार्य करना आवश्यक है ऐसे ही मन और लगन के संयोग से साधक भक्ति रस का पान कर सकता है।
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