बसे अपंडी पिंड मैं हिंदी मीनिंग कबीर के दोहे
बसे अपंडी पिंड मैं, ता गति लषै न कोइ।
कहै कबीरा संत हौ, बड़ा अचम्भा मोहि॥
कहै कबीरा संत हौ, बड़ा अचम्भा मोहि॥
Base Apandi Pind Me, Ta Gali Lakhe Na Koi
Kahe Kabira Sant Ho, Bada Achambha Mohi.
बसे : निवास करता है।
अपंडी : अशरीर, जिसका कोई शरीर नहीं है।
पंड मैं : शरीर में (जीव में )
ता गति : उसकी गति, उसके बारे में।
लषै न कोइ : कोई देख नहीं पाता है, कोई उसका भेद नहीं जान पाता है।
अचम्भा : आश्चर्य, कोतुहल।
मोहि : मुझे।
अपंडी : अशरीर, जिसका कोई शरीर नहीं है।
पंड मैं : शरीर में (जीव में )
ता गति : उसकी गति, उसके बारे में।
लषै न कोइ : कोई देख नहीं पाता है, कोई उसका भेद नहीं जान पाता है।
अचम्भा : आश्चर्य, कोतुहल।
मोहि : मुझे।
पूर्ण परमात्मा का स्वंय में कोई आकर नहीं है, वह शरीर धारण नहीं करता है। स्वंय का शरीर नहीं होने पर भी वह जीवात्मा में वास करता है। कबीर साहेब का मत है की उसे बड़ा ही अचम्भा होता है जब लोग उसे पहचान नहीं पाते हैं। इस साखी में साहेब का मत है की लोग शास्त्रीय ज्ञान के भरोसे में पड़े रहकर इश्वर को साकार रूप में प्रदर्शित करते हैं. इस साखी का मूल भाव है इश्वर को किसी आकार में ढालना मुर्खता है, अज्ञान का सूचक है.
Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें। |