दोजग तो हम अंगिया यहु डर नाहीं मुझ मीनिंग कबीर के दोहे

दोजग तो हम अंगिया यहु डर नाहीं मुझ मीनिंग

दोजग तो हम अंगिया, यहु डर नाहीं मुझ।
भिस्त न मेरे चाहिये, बाझ पियारे तुझ॥

Dojag To Hum Angiya, Yahu Dar Nahi Mujh,
Bhist Na Mre Chahie, Baajh Piyaare Tujh.
 

कबीर दोहा हिंदी शब्दार्थ

दोजग दोजख, नर्क.
तो हम अंगिया : हमने अंगीकार कर लिया है, हमने स्वीकार कर लिया है.
यहु डर नाहीं मुझ : मुझे यह डर नहीं है.
यहु-यह, नाहीं-नहीं, मुझ-मुझे.
भिस्त : बिहिश्त, स्वर्ग.
न मेरे चाहिये : की आवश्यकता नहीं है.
बाझ पियारे तुझ : बाझ-बाज (के अतिरिक्त) पंजाबी में वाजो, तुम्हारे अतिरिक्त.

यदि मुझे नरक यातना मिले, नर्क मिले तो मुझे यह स्वीकार है। मुझे नर्क मिले, यह दुःख, संताप मुझे नहीं है। हे नाथ यदि आपके बिना मुझे स्वर्ग मिले तो वह मुझे नहीं चाहिए।
भाव है की यदि नर्क में आपका साथ रहे तो वह मुझे स्वीकार है बजाय इसके की आपके बिना स्वर्ग मिले। हे नाथ, आपके बिना तो मुझे स्वर्ग भी स्वीकार नहीं है। उल्लेखनीय है जी जीवात्मा अब हरी के चरणों में ही स्वर्ग का सुख अनुभव करती है। उसे किसी भी प्रकार के अन्य सुखों की कामना शेष नहीं रही है। यह भगवत्प्रेम रस को चख चुकी है जिसके लिए अन्य सभी रसास्वाद ताज्य हैं। 

हरि रस पीया जानिए, जे कहूँ न जाइ खुमार।
मैमंता घूमत है', नहीं तन की सार।।

जिसने हरी रस का पान कर लिया है उसके लिए अब सांसारिक रसों का स्वाद क्या मायने रखता है वह तो दिन रात मस्त हुआ फिरता है,  उसे कहाँ अपने तन की सार रहती है, तन की परवाह रहती है।
सबै रसायन मैं किया, हरि सा और न कोई।
तिल इक घट मैं संचरै, तौ सब तन कंचन होई।।
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें

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