कबीर प्रीतड़ी तौ तुझ सौं मीनिंग
कबीर प्रीतड़ी तौ तुझ सौं, बहु गुणियाले कंत।
जे हँसि बोलौं और सौं, तौं नील रँगाऊँ दंत॥
Kabir Preetadi To Tujh So, Bahu Guniyaale Kant,
Je Hansi Bolo Aur Soun, To Neel Rangaau Dant.
प्रीतड़ी : प्रीत स्नेह, प्रीति।
तौ तुझ सौं : आपके संग, आपसे (ईश्वर से )
बहु गुणियाले : आप बहु (अधिक) गुणों के धनी हैं, गुणवान हैं (ईश्वर).
कंत : ईश्वर, स्वामी।
जे हँसि बोलौं : जो हंसकर बोलूं, यदि मैं विषयों में ध्यान लगाऊं।
और सौं : अन्य से, माया जनित सांसारिक कार्यों से।
तौं नील रँगाऊँ दंत: तो मैं अपने दांतों पर नील लगा लूँ, यह एक मुहावरा है जिसका अर्थ है की स्वंय को कलंकित करना, अपना मुंह काला करना।
प्रस्तुत साखी में साहेब का कथन है की जैसे एक स्त्री के लिए उसका पति ही सबकुछ होता है, सर्वोच्च होता है ऐसे ही जीवात्मा के लिए पूर्ण परमात्मा सर्वोच्च होती है.गुणवान को छोड़कर कोई क्यों भला गुणहीन के पास जाएगा.ऐसे ही हे नाथ आप सम्पूर्ण गुणों के स्वामी हैं, आपको छोड़कर यदि मैं किसी भी मायाजनित व्यवहार, सांसारिक क्रियाओं में पड़ती हूँ तो यह मेरे लिए अपने दांत रंगवाने के समा नही होगा. भाव है की मैं आपको छोडकर किसी अन्य का ख़याल भी मेरे मन में नहीं आने देना चाहती हूँ . जिसे नारी की पवित्रता पति के प्रति समर्पण में है, ऐसे ही जीवात्मा का पूर्ण समर्पण होता है.