नैना अंतरि आव तूँ मीनिंग
नैना अंतरि आव तूँ, ज्यूँ हौं नैन झँपेउँ।
नाँ हौं देखौं और कूं, नाँ तुझ देखन देउँ॥
Naina Antari Aav Tyu, Jyu Ho Nain Jhapeu,
Na Ho Dekho Aur Ku, Na Tujh Dekhn Deu.
नैना : नयन, आखें, नेत्र।
अंतरि : अंदर, हृदय।
आव : आओ, बसों, वास करो।
तूँ : तुम (ईश्वर)
ज्यूँ हौं : जैसे ही आओगे।
झँपेउँ : झपका लेना, आंखें बंद करना।
नाँ हौं देखौं और कूं : ना तो मैं किसी अन्य को देखूं।
नाँ तुझ देखन देउँ: नाहीं तुमको देखने ही दूँगी।
जीवात्मा का पूर्ण परमात्मा से संवाद है की आप मेरे नेत्रों के भीतर आकर बस जाओ, आपके नेत्रों में प्रवेश करते ही मैं आखों को मूँद लुंगी और इस तरह से ना तो मैं किसी अन्य को देखूंगी और नाहीं किसी दूसरे को आपको ही देखने दूँगी। जीवात्मा का परमात्मा के प्रति पूर्ण समर्पण और एकाधिकार भाव है जिससे वह किसी अन्य को देखना पसंद नहीं करती है। वह यह भी नहीं चाहती है की कोई अन्य स्वामी को देखे।
आ पिया इन नैनन में जो पलक ढाँप तोहे लूँ,
ना मैं देखूँ गैर को ना तोहे देखन दूँ,
काजर डारूँ किरकिरा जो सुरमा दिया ना जाए।
जिन नैनन में पी बसे तो दूजा कौन समाए,
छाप तिलक सब छीनी रे, मोसे नैना मिलाइ के,
प्रेमपति का मदवा पिलाइ के,
मतवारी कर दीन्हीं रे, मोसे नैना मिलाइ के,
बल बल जाऊँ मैं तोरे रंग रजवा,
अपनी सी रंग दीन्हीं रे मोसे नैना मिलाइ के,
गोरी गोरी बैयाँ हरी हरी चूड़ियाँ,
बैय्यां पकड़ हर लीन्हीं रे मोसे नैना मिलाइ के,
खुसरो निज़ाम के बल बल जइयाँ,
मोहे सुहागन दीन्ही रे मोसे नैना मिलाइ के।
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