गंग जमुन उर अंतरै सहज सुंनि ल्यौ घाट मीनिंग कबीर के दोहे

गंग जमुन उर अंतरै सहज सुंनि ल्यौ घाट मीनिंग Gang Jamun Ur Antare Meaning Kabir Ke Dohe Meaning Hindi (Kabir Ke Dohe Hindi Arth Sahit/Hindi Bhavarth)

गंग जमुन उर अंतरै, सहज सुंनि ल्यौ घाट।
तहाँ कबीरै मठ रच्या, मुनि जन जोवैं बाट॥

Gang Jamun Ur Antare, Sahaj Suni Lyo Ghat,
Taha Kabire Math Rachya, Muni Jan Jove Baat.

गंग : गंगा, इड़ा।
जमुन : जमुना, पिंगला।
उर अंतरै : हृदय में ही उतरी हुई हैं, हृदय में ही हैं।
सहज सुंनि : सहज शून्य, समाधि की अवस्था।
ल्यौ घाट : घाट।
तहाँ कबीरै : वहां पर कबीर साहेब ने।
मठ रच्या : निवास किया, रहे।
मुनि जन - मुनि जन राह देख रहे हैं।

गंगा और जमुना हृदय में ही हैं, किसी तीर्थ यात्रा की कोई आवश्यकता नहीं है। हृदय में गंगा जमुना से आशय इड़ा और पिंगला से है। शून्य शिखर आकाश घाट में स्थापित हैं। यह सब भीतर ही है और सहज और शून्य है। इस घाट (सहज शून्य ) को कबीर साहेब ने अपना मठ (निवास स्थान ) बना लिया है। अन्य संत और ज्ञानी शास्त्रीय ज्ञान के सहारे भटक रहे हैं, लेकिन किसी लक्ष्य तक नहीं पहुंच पा रहे हैं।
कबीर साहेब ऐसे शून्य में साधना में मग्न हैं। यही सहज समाधि है। इस साखी में व्यक्तिरेक अलंकार की व्यंजना हुई है।
व्यक्तिरेक अलंकार : काव्य में जहाँ उपमेय को उपमान से श्रेष्ठ बताया जाता है, वहाँ व्यतिरेक अलंकार होता है। व्यक्तिरेक अलंकार में उपमान की अपेक्षा उपमेय को अधिक श्रेष्ठ बनाया वर्णन किया जाता है।
संतमुनि प्रचलित सांसारिक विधियों के सहारे ईश्वर तक पहुंचना चाहते हैं, कबीर साहेब के मुताबिक़ प्रचलित मार्ग किसी काम के नहीं है।
स्वर्ग कि तुलना उचित ही है यहाँ,
किन्तु सुर सरिता कहाँ सरयू कहाँ।
वह मरों को पार उतारती,
यह यहीं से सबको ताँती।।
जन्म सिंधु पुनि बंधु विष,दीनन मलिन सकलंक|
सीय मुख समता पाव किमी चंद्र बापूरो रंक ||
खंजन मील सरोजनि की छबि गंजन नैन लला दिन होनो।
भौंह कमान सो जोहन को सर बेधन प्राननि नंद को छोनो। 
 
कबीर साहेब ने कई स्थानों पर स्पष्ट किया है की साधक स्वयं को अनुशाषित नहीं रखना चाहता है, इसमें प्रयत्न करना पड़ता है और वह बाह्य साधनों की तरफ दौड़ता है, यह उसकी व्यक्तिगत कमजोरी कही जा सकती है. जितने भी प्रकार के तीर्थ, धार्मिक क्रिया कर्म कर लिए जाएं लेकिन इनसे कुछ भी हासिल नहीं होने वाला है.
पूजा पाठ भी तभी उपयोगी होते हैं जब हृदय से किए जाएं और स्वय में मानवता का गुण हासिल किया जाए, लेकिन यदि वह आत्मिक रूप से अनुशाषित होकर हरी के नाम का सुमिरण करे तो उसे दिखावा करना शेष बचता ही नहीं है.
लाडू लावन लापसी पूजा चढ़े अपार
पूजी पुजारी ले गया,मूरत के मुह छार

स्वर्ग कि तुलना उचित ही है यहाँ,
किन्तु सुर सरिता कहाँ सरयू कहाँ।
वह मरों को पार उतारती,
यह यहीं से सबको ताँती।।
जन्म सिंधु पुनि बंधु विष,दीनन मलिन सकलंक|
सीय मुख समता पाव किमी चंद्र बापूरो रंक ||
खंजन मील सरोजनि की छबि गंजन नैन लला दिन होनो।
भौंह कमान सो जोहन को सर बेधन प्राननि नंद को छोनो।
 पढ़ पढ़ आलम फाज़ल होयां,
कदीं अपने आप नु पढ़याऍ ना
जा जा वडदा मंदर मसीते,
कदी मन अपने विच वडयाऍ ना
एवैएन रोज़ शैतान नाल लड़दान हे,
कदी नफस अपने नाल लड़याऍ ना
बुल्ले शाह अस्मानी उड़याँ फडदा हे,
जेडा घर बैठा ओन्नु फडयाऍ ना

मक्का गयां गल मुकदी नाहीं,
भावें सो सो जुम्मे पढ़ आएं
गंगा गयां गल मुकदी नाहीं,
भावें सो सो गोते खाएं
गया गयां गल मुकदी नाहीं,
भावें सो सो पंड पढ़ आएं
बुल्ले शाह गल त्यों मुकदी,
जद "मैं" नु दिलों गवाएँ

मस्जिद ढा दे मंदिर ढा दे,
ढा दे जो कुछ दिसदा
एक बन्दे दा दिल न ढाइन,
क्यूंकि रब दिलां विच रेहेंदा

रब रब करदे बुड्ढे हो गए,
मुल्ला पंडित सारे
रब दा खोज खरा न लब्बा,
सजदे कर कर हारे
रब ते तेरे अन्दर वसदा,
विच कुरान इशारे
बुल्ले शाह रब ओनु मिलदा,
जेडा अपने नफस नु मारे

जे रब मिलदा नहातेयां धोतयां,
ते रब मिलदा ददुआन मछलियाँ
जे रब मिलदा जंगल बेले,
ते मिलदा गायां वछियाँ
जे रब मिलदा विच मसीतीं,
ते मिलदा चम्चडकियाँ
ओ बुल्ले शाह रब ओन्नु मिलदा,
तय नीयत जिंना दीयां सचियां 
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