उण घर ज्याई ज्ये बैरण निंदरा Un Ghar Jaa Je Bairan Nindara Bhajan
यह भजन राजस्थानी भाषा का एक पारम्परिक चेतावनी भजन है जिसे भरतरी भजन भी कहा जाता है। निंदरा से आशय अज्ञान रूपी माया से है। भरतरी सत्य को प्राप्त करने के उपरान्त अज्ञान से वार्ता करके सन्देश देते हैं की हमारे पास तेरे लिए कोई स्थान नहीं है क्योंकि अब उनको जीवन के उद्देश्य का भान हो गया है और उन्हें अब सांसारिक क्रियाओं से कुछ लेना देना नहीं है। इस भजन के बोल का हिंदी अर्थ निचे दिया गया है।
कहे संत सगराम,
अब भजन किस विध होय,
गले पड़ी जण सुरडया,
म्हारे लारे लागी दोय,
लारे लागी दोय सुणो,
कुण कुण रे भाई,
दिन री तो बातां करे,
रात ने नींद आई,
इन दोन्या रै कारणे,
मैं जमारो दियो खोय,
कहे संत सगराम,
अब भजन किस विध होय।
उण घर ज्याई ज्ये बैरण निंदरा,
जिण घर राम नाम नहीं भावे,
राम नाम नहीं भावे रे जिण घर,
हरी भजन नहीं भावे,
उण घर ज्याई ज्ये बैरण निंदरा,
जिण घर राम नाम नहीं भावे।
के ज्याई ज्ये तू राज द्वारे,
का रसिया रस भोगी,
म्हारों लारो छोड़ बावळी,
म्हे तो रमता जोगी,
उण घर ज्याई ज्ये बैरण निंदरा,
जिण घर राम नाम नहीं भावे।
भरी सभा में कूड़ो बोले,
निन्दिया करे पराई,
वो घर हमने तुझको सौंपा,
ज्याई जे बिन बुलाई,
उण घर ज्याई ज्ये बैरण निंदरा,
जिण घर राम नाम नहीं भावे।
ऊँचो मन्दिर और सखी री,
कामणी चँवर ढुलावे,
म्हारे संग काँई लेवे बावळी,
राख़ में दुःख पावे,
उण घर ज्याई ज्ये बैरण निंदरा,
जिण घर राम नाम नहीं भावे।
कहवे भरतरी सुण म्हारी निंदरा,
यहाँ नहीं तेरा वासा,
राज छोड़ ने लीवी फ़कीरी,
हरी मिलण री आशा,
उण घर ज्याई ज्ये बैरण निंदरा,
जिण घर राम नाम नहीं भावे।
अब भजन किस विध होय,
गले पड़ी जण सुरडया,
म्हारे लारे लागी दोय,
लारे लागी दोय सुणो,
कुण कुण रे भाई,
दिन री तो बातां करे,
रात ने नींद आई,
इन दोन्या रै कारणे,
मैं जमारो दियो खोय,
कहे संत सगराम,
अब भजन किस विध होय।
उण घर ज्याई ज्ये बैरण निंदरा,
जिण घर राम नाम नहीं भावे,
राम नाम नहीं भावे रे जिण घर,
हरी भजन नहीं भावे,
उण घर ज्याई ज्ये बैरण निंदरा,
जिण घर राम नाम नहीं भावे।
के ज्याई ज्ये तू राज द्वारे,
का रसिया रस भोगी,
म्हारों लारो छोड़ बावळी,
म्हे तो रमता जोगी,
उण घर ज्याई ज्ये बैरण निंदरा,
जिण घर राम नाम नहीं भावे।
भरी सभा में कूड़ो बोले,
निन्दिया करे पराई,
वो घर हमने तुझको सौंपा,
ज्याई जे बिन बुलाई,
उण घर ज्याई ज्ये बैरण निंदरा,
जिण घर राम नाम नहीं भावे।
ऊँचो मन्दिर और सखी री,
कामणी चँवर ढुलावे,
म्हारे संग काँई लेवे बावळी,
राख़ में दुःख पावे,
उण घर ज्याई ज्ये बैरण निंदरा,
जिण घर राम नाम नहीं भावे।
कहवे भरतरी सुण म्हारी निंदरा,
यहाँ नहीं तेरा वासा,
राज छोड़ ने लीवी फ़कीरी,
हरी मिलण री आशा,
उण घर ज्याई ज्ये बैरण निंदरा,
जिण घर राम नाम नहीं भावे।
Un Ghar Jaa Je Bairan Nindara Bhajan Meaning
कहे संत सगराम, अब भजन किस विध होय : सगराम संत कहते हैं की अब भजन कैसे होगा, कैसे भजन सम्भव है।
गले पड़ी जण सुरडया, म्हारे लारे लागी दोय : मेरे गले में दो बाधाएं हैं।
लारे लागी दोय सुणो, कुण कुण रे भाई : दोनों मेरे पीछे पड़ी हैं आप सुनों वो कौनसी हैं।
दिन री तो बातां करे, रात ने नींद आई : दिन की वे बाते करते हैं और रात्रि के अज्ञान रूपी अन्धकार में उनका वास है।
इन दोन्या रै कारणे, मैं जमारो दियो खोय : इन दोनों के ही कारण मैंने मनुष्य जीवन खो दिया है।
उण घर ज्याई ज्ये बैरण निंदरा, जिण घर राम नाम नहीं भावे : निंद्रा अज्ञान का प्रतीक हैं। ऐसी निंद्रा जो जीवन के उद्देश्य को विस्मृत कर देती है उससे सम्बोधन है की तुम उस घर पर जाओ, जहाँ के लोगों को राम का नाम अच्छा नहीं लगता है। भावे मतलब अच्छा लगाना। अब निंद्रा का यहाँ पर कोई स्थान नहीं है जैसे एक अन्य भजन की पंक्तियाँ है, निंदरा बेच ड्यू कोई ले तो। बैरन-शत्रु। उण घर- उस घर, ज्याई ज्ये - जाओ, बैरण निंदरा शत्रु निंद्रा।
के ज्याई ज्ये तू राज द्वारे, का रसिया रस भोगी : तुम राज द्वार जाओ या रस के भोग करने वाले रसिया के घर पर जाओ।
म्हारों लारो छोड़ बावळी, म्हे तो रमता जोगी : तुम मेरा पीछा छोडो पगली (बावळी ) मैं तो रमता जोगी हूँ, तुम मेरे पास क्या प्राप्त करोगी।
भरी सभा में कूड़ो बोले, निन्दिया करे पराई : या तो तुम ऐसे स्थान पर जाओ जहाँ पर भरी सभा में अभद्र बोला जाता है और पराए लोगों की निंद्रा की जाती है।
वो घर हमने तुझको सौंपा, ज्याई जे बिन बुलाई : मैंने वह घर तुमको सौंप दिया है तुम बिना बुलाए ही वहां पर चली जाओ।
ऊँचो मन्दिर और सखी री, कामणी चँवर ढुलावे : ऐसे स्थान पर जाओ जहाँ पर ऊंचा महल हो और दास दासियाँ चँवर (हवा झुलाना ) हिलाते हैं।
म्हारे संग काँई लेवे बावळी, राख़ में दुःख पावे : मेरे पास तो भस्म / राख ही है मेरे साथ तुम क्या प्राप्त कर लोगी।
कहवे भरतरी सुण म्हारी निंदरा, यहाँ नहीं तेरा वासा : भरतरी जी कहते हैं की निंदरा तुम्हारा यहाँ पर कोई वास/स्थान नहीं है।
राज छोड़ ने लीवी फ़कीरी, हरी मिलण री आशा : मैंने तो राज पाट को छोड़कर संन्यास लिया है, मुझे तो हरी से मिलने की आशा है। तुम मेरे पास क्या प्राप्त कर लोगी।
गले पड़ी जण सुरडया, म्हारे लारे लागी दोय : मेरे गले में दो बाधाएं हैं।
लारे लागी दोय सुणो, कुण कुण रे भाई : दोनों मेरे पीछे पड़ी हैं आप सुनों वो कौनसी हैं।
दिन री तो बातां करे, रात ने नींद आई : दिन की वे बाते करते हैं और रात्रि के अज्ञान रूपी अन्धकार में उनका वास है।
इन दोन्या रै कारणे, मैं जमारो दियो खोय : इन दोनों के ही कारण मैंने मनुष्य जीवन खो दिया है।
उण घर ज्याई ज्ये बैरण निंदरा, जिण घर राम नाम नहीं भावे : निंद्रा अज्ञान का प्रतीक हैं। ऐसी निंद्रा जो जीवन के उद्देश्य को विस्मृत कर देती है उससे सम्बोधन है की तुम उस घर पर जाओ, जहाँ के लोगों को राम का नाम अच्छा नहीं लगता है। भावे मतलब अच्छा लगाना। अब निंद्रा का यहाँ पर कोई स्थान नहीं है जैसे एक अन्य भजन की पंक्तियाँ है, निंदरा बेच ड्यू कोई ले तो। बैरन-शत्रु। उण घर- उस घर, ज्याई ज्ये - जाओ, बैरण निंदरा शत्रु निंद्रा।
के ज्याई ज्ये तू राज द्वारे, का रसिया रस भोगी : तुम राज द्वार जाओ या रस के भोग करने वाले रसिया के घर पर जाओ।
म्हारों लारो छोड़ बावळी, म्हे तो रमता जोगी : तुम मेरा पीछा छोडो पगली (बावळी ) मैं तो रमता जोगी हूँ, तुम मेरे पास क्या प्राप्त करोगी।
भरी सभा में कूड़ो बोले, निन्दिया करे पराई : या तो तुम ऐसे स्थान पर जाओ जहाँ पर भरी सभा में अभद्र बोला जाता है और पराए लोगों की निंद्रा की जाती है।
वो घर हमने तुझको सौंपा, ज्याई जे बिन बुलाई : मैंने वह घर तुमको सौंप दिया है तुम बिना बुलाए ही वहां पर चली जाओ।
ऊँचो मन्दिर और सखी री, कामणी चँवर ढुलावे : ऐसे स्थान पर जाओ जहाँ पर ऊंचा महल हो और दास दासियाँ चँवर (हवा झुलाना ) हिलाते हैं।
म्हारे संग काँई लेवे बावळी, राख़ में दुःख पावे : मेरे पास तो भस्म / राख ही है मेरे साथ तुम क्या प्राप्त कर लोगी।
कहवे भरतरी सुण म्हारी निंदरा, यहाँ नहीं तेरा वासा : भरतरी जी कहते हैं की निंदरा तुम्हारा यहाँ पर कोई वास/स्थान नहीं है।
राज छोड़ ने लीवी फ़कीरी, हरी मिलण री आशा : मैंने तो राज पाट को छोड़कर संन्यास लिया है, मुझे तो हरी से मिलने की आशा है। तुम मेरे पास क्या प्राप्त कर लोगी।
Anil Nagori उण घर जायजे बेरण निंद्रा जा घर राम नाम नही भावे अनिल नागौरी
Kahe Sant Sagaraam,
Ab Bhajan Kis Vidh Hoy,
Gale Padi Jan Suradaya,
Mhaare Laare Laagi Doy,
Laare Laagi Doy Suno,
Kun Kun Re Bhai,
Din Ri To Baataan Kare,
Raat Ne Nind Aai,
In Donya Rai Kaarane,
Main Jamaaro Diyo Khoy,
Kahe Sant Sagaraam,
Ab Bhajan Kis Vidh Hoy.
Un Ghar Jyai Jye Bairan Nindara,
Jin Ghar Raam Naam Nahin Bhaave,
Raam Naam Nahin Bhaave Re Jin Ghar,
Hari Bhajan Nahin Bhaave,
Un Ghar Jyai Jye Bairan Nindara,
Jin Ghar Raam Naam Nahin Bhaave.
Ke Jyai Jye Tu Raaj Dvaare,
Ka Rasiya Ras Bhogi,
Mhaaron Laaro Chhod Baavali,
Mhe To Ramata Jogi,
Un Ghar Jyai Jye Bairan Nindara,
Jin Ghar Raam Naam Nahin Bhaave.
Bhari Sabha Mein Kudo Bole,
Nindiya Kare Parai,
Vo Ghar Hamane Tujhako Saumpa,
Jyai Je Bin Bulai,
Un Ghar Jyai Jye Bairan Nindara,
Jin Ghar Raam Naam Nahin Bhaave.
uncho Mandir Aur Sakhi Ri,
Kaamani Chanvar Dhulaave,
Mhaare Sang Kaani Leve Baavali,
Raakh Mein Duhkh Paave,
Un Ghar Jyai Jye Bairan Nindara,
Jin Ghar Raam Naam Nahin Bhaave.
Kahave Bharatari Sun Mhaari Nindara,
Yahaan Nahin Tera Vaasa,
Raaj Chhod Ne Livi Fakiri,
Hari Milan Ri Aasha,
Un Ghar Jyai Jye Bairan Nindara,
Jin Ghar Raam Naam Nahin Bhaave.
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Vo Ghar Hamane Tujhako Saumpa,
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Author - Saroj Jangir
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