विसर नाहीं दातार अपणा नाम देहो

विसर नाहीं दातार अपणा नाम देहो

हे महान दाता (देने वाला), मुझे कभी भी भूल मत जाना, मुझे आप अपने नाम रूपी आशीर्वाद को दो, अपना नाम दो (अपने नाम का सानिध्य) . हे नानक जी यह मेरे हृदय की तमन्ना है की मैं आपके नाम की महिमा का गुणगान दिन रात गाउँ (बखान करूँ) हे ईश्वर अपने नाम से मेरा कल्याण करो।
विसर नाहीं दातार, अपणा नाम देहो,
विसर नाँहीं दातार अपणाँ नाम देहो,
गुण गावाँ दिन रात नानक चाव ऐहो,
विसर नाहीं दातार, अपणा नाम देहो।


सिमरत वेद पुराण, पुकारण पोथियाँ,
नाम बिना सब कूड़ गल होछियां,
नाम निधान अपार, भगता मन वसे,
जनम मरण मोह दुःख, साधु संग नसे,
गुण गावा दिन रात, नानक चाओ एहो,
विसर नाहीं दातार, अपणा नाम देहो।

हिन्दू धर्म की स्मृतियाँ, वेद, पुराण आदि जो पोथी (किताबें) हैं वे नाम (नाम सुमिरण -सद्मार्ग पर जीवन व्यतीत करके आंतरिक / हृदय से भक्ति करना। उल्लेखनीय है की कबीर साहेब ने ऐसी भक्ति पर ही बल दिया है। ऐसी भक्ति में बाहरी कुछ भी नहीं होता है, जो है वह अंदर ही होता है। ) के अभाव में कूड़ा (व्यर्थ जैसे कूड़ा करकट )
 नाम का अनंत खजाना भक्तों के मन में बसता है। जन्म और मृत्यु, मोह और दुख, आदि सभी संताप साधुजन/संतजन के द्वारा मिटा दिए जाते हैं।
मोहे बाद अहंकार, सिर पर रुनिया,
सुख ना पाए मूल नाम विसुनियाँ,
मेरी मेरी दार, बंधन बंधिया,
नरक सुरक अवतार, माया दंदिया,
गुण गावा दिन रात, नानक चावो एहो,
विसर नाहीं दातार, अपणा नाम देहो।

जो व्यक्ति अहम, माया के चंगुल में पड़े रहते हैं, वे अवश्य ही दुःख के भागी होते हैं और बिलखते हैं। जिन्होंने आपका नाम विस्मृत कर दिया है वे सुख को प्राप्त नहीं करते हैं। ऐसे व्यक्ति मेरी मेरी करते हैं वे माया के बंधन में बंधे हुए हैं। नर्क, स्वर्ग और जन्म मरण के चक्र में फंसे रहते हैं। 

सोदत सोदत सोध तत विचारिया,
नाम बिना सुख नाहीं सिर पर हारिया,
आवे जावे अनेक मर मर जनम ते,
बिन बुझे सब वाद जूनि भरम ते,
गुण गावा दिन रात, नानक चावो एहो,
विसर नाहीं दातार, अपणा नाम देहो।

खोज करते करते मुझे तत्व/सार समझ में आया है की नाम के बिना, कोई शांति नहीं है, और सभी नश्वर हैं।  इस जीवन चक्र में बहुत से लोग आते हैं और चले जाते हैं, वे मरते हैं, और फिर मर जाते हैं, और उनका पुनर्जन्म होता रहता है। समझ के बिना, वे पूरी तरह से बेकार हैं, और वे पुनर्जन्म में भटकते रहते हैं।

तिनको भये दयाल, तिन साधु संग पैया,
अमृत हर का नाम, जिण जणी जप लिया,
खोजे कोट असंख, बहुत अनंत के,
जिसे बुझे आप,  नेडा तिस हे,
गुण गावा दिन रात, नानक चावो एहो,
विसर नाहीं दातार, अपणा नाम देहो। 
ऐसे लोगों पर भगवान दयालु होते हैं, मेहरबान होते हैं जो सतसंगत करते हैं। भगवान् का नाम (नाम जाप) तो अमृत के तुल्य है। ईश्वर तो खोजने पर कैसे मिले क्योंकि वे तो लाखों हैं, असंख्य और अनंत हैं, उसे खोजो। लेकिन ईश्वर उन्ही के पास होता है जिन्होंने स्वंय को जाना है। 

Visar Nahi Datar Apna Naam Deho | Bhai Sulakhan Singh Ji Nanaksar Thaat | Amritt Saagar

Visar Naahin Daataar, Apana Naam Deho,
Visar Naanhin Daataar Apanaan Naam Deho,
Gun Gaavaan Din Raat Naanak Chaav Aiho,
Visar Naahin Daataar, Apana Naam Deho.
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