पारवती पुत्र गणेश शिव सम्वाद लिरिक्स Ganpati Prakash Singer Lakhbir Singh Lakkha
ठहर ठहर जोगिया सपेरा,
पारवती पुत्र गणेश शिव सम्वाद लिरिक्स
एक रोज, माता पार्वती ने,मन में किया ध्यान,
उबटन मली शरीर पे, करने को माँ स्नान,
मलने के बाद, उस मैल को जमा कर लिया,
और फेंकने को माँ ने, इरादा कर लिया,
नहीं थे भोले नाथ उस दिन,अपने स्थान पे,
माँ पार्वती खो गई,बाबा के ध्यान में,
लेकर उसी मैल का,इक पुतला बनाई,
जब हो गया तैयार, माँ मन में हरषाई,
पुतले को देख, मन में जगा, ममता का भण्डार,
और मन ही मन में कर लिया,एक पुत्र का विचार,
गर इसमें प्राण डाल दूँ,ये अच्छा रहेगा,
फिर डाल कर के प्राण,माँ ने उसे ध्यान से देखा,
पुतले में आये प्राण, बना सुन्दर इक बालक,
और छू के चरण मैया के वो बोला मचलकर,
क्या है आदेश मैया, बतलाइये हमें,
मुख चूम कर ले गोद में, माता लगी कहने,
बेटा तू पहरा देना, अंदर में नहाऊँ,
आना नहीं अंदर जब तक मैं ना बुलाऊँ,
और आने नहीं देना तुम किसी को भी तुम मेरे लाल,
सुनकर के माँ की बात, खड़े पहरे पर गौरी लाल,
खड़े थे चौकन्ना होकर, इधर आ गए शंकर,
जाने लगे अंदर तो, उसने रोका डपटकर,
अरे ठहर, ए जोगी, ए सपेरे रुक,
ठहर ठहर जोगिया सपेरा,
ठहर जा तू हुक्म है यह मेरा,
ठहर ठहर जोगिया सपेरा,
ठहर जा तू हुक्म है यह मेरा,
कौन है तू, जाता है बिन पूछे अंदर,
ठहर जा तू हुक्म है यह मेरा,
ठहर जा तू हुक्म है यह मेरा।
वाह क्या रूप मदारी का तू बनाया है,
जाने किस बिल से तू ये साँप पकड़ लाया है,
गले में एक है, दो बाहों में लटकाए हो,
ये चौंग चुराकर कहा से लाए हो,
किसलिए हाथों में त्रिशूल को चमकाते हो,
इसी डमरुँ से क्या तुम साँपों को नचाते हो,
बिना बताएं, कहीं तू अंदर जाएगा,
यकीन जानना यहीं पर मारा जाएगा,
क्या समझता है तू इसको अपना डेरा,
काल क्या मंडरा रहा है तेरा,
कौन है तू, जाता है बिन पूछे अंदर,
ठहर जा तू हुक्म है यह मेरा,
ठहर जा तू हुक्म है यह मेरा।
सुनके बात आए क्रोध में भोले शंकर,
बिना विचारे ही त्रिशूल को मारा कसकर,
कटा बालक का सर, जाने कहाँ हो गया लोप,
मरा बालक को देख शांत हुआ उनका कोप,
गए अंदर तो चौंक करके बोली पार्वती,
किस तरह आए अंदर, कोई रोका न कैलाशपति,
बोले भोले, मैं उसके सर को काट आया सती,
वो तो खुद को ही समझ रहा था कैलाशपति,
सुनके बाबा की बात गिर पड़ी चकरा के माँ,
पुत्र बिन किस तरह जिऊंगी, तुम ही दो बता,
बाबा क्यों मार दिया तुमने लाल मेरा,
घर में मेरे छा गया अँधेरा,
बिन बालक तड़पुँगी, सारा जीवन भर,
मार दिया तुमने लाल मेरा।
बोले फिर बाबा गणजनों को सब जाओ फौरन,
काट कर लाओ ऐसा सर जो है जन्मा इस क्षण,
पीठ पीछे हो उसकी माँ का ऐसा सर हो,
कोई भी प्राणी हो या जीव किसी का सर हो,
गणों ने देखा तो हथनी को जनम दे पाया,
पीठ पीछे किए हथिनी भोले की माया,
गणों ने काट लिया सर, नहीं देर किए,
भोले जी हाथी का सर, पल भर में जोड़ दिए,
नायक बना दिए गणों का, मेरे भोले,
रख दिए नाम गणपति और बोले,
रिद्धि सिद्धि वाला पुत्र तेरा,
इसे आशीर्वाद है ये मेरा,
जो भी आएगा, इसके दर पे गौरी,
मिटे उसके पल का अँधेरा,
जीवन में होगा सवेरा।
पारवती पुत्र गणेश शिव सम्वाद लिरिक्स
एक रोज, माता पार्वती ने,मन में किया ध्यान,
उबटन मली शरीर पे, करने को माँ स्नान,
मलने के बाद, उस मैल को जमा कर लिया,
और फेंकने को माँ ने, इरादा कर लिया,
नहीं थे भोले नाथ उस दिन,अपने स्थान पे,
माँ पार्वती खो गई,बाबा के ध्यान में,
लेकर उसी मैल का,इक पुतला बनाई,
जब हो गया तैयार, माँ मन में हरषाई,
पुतले को देख, मन में जगा, ममता का भण्डार,
और मन ही मन में कर लिया,एक पुत्र का विचार,
गर इसमें प्राण डाल दूँ,ये अच्छा रहेगा,
फिर डाल कर के प्राण,माँ ने उसे ध्यान से देखा,
पुतले में आये प्राण, बना सुन्दर इक बालक,
और छू के चरण मैया के वो बोला मचलकर,
क्या है आदेश मैया, बतलाइये हमें,
मुख चूम कर ले गोद में, माता लगी कहने,
बेटा तू पहरा देना, अंदर में नहाऊँ,
आना नहीं अंदर जब तक मैं ना बुलाऊँ,
और आने नहीं देना तुम किसी को भी तुम मेरे लाल,
सुनकर के माँ की बात, खड़े पहरे पर गौरी लाल,
खड़े थे चौकन्ना होकर, इधर आ गए शंकर,
जाने लगे अंदर तो, उसने रोका डपटकर,
अरे ठहर, ए जोगी, ए सपेरे रुक,
ठहर ठहर जोगिया सपेरा,
ठहर जा तू हुक्म है यह मेरा,
ठहर ठहर जोगिया सपेरा,
ठहर जा तू हुक्म है यह मेरा,
कौन है तू, जाता है बिन पूछे अंदर,
ठहर जा तू हुक्म है यह मेरा,
ठहर जा तू हुक्म है यह मेरा।
वाह क्या रूप मदारी का तू बनाया है,
जाने किस बिल से तू ये साँप पकड़ लाया है,
गले में एक है, दो बाहों में लटकाए हो,
ये चौंग चुराकर कहा से लाए हो,
किसलिए हाथों में त्रिशूल को चमकाते हो,
इसी डमरुँ से क्या तुम साँपों को नचाते हो,
बिना बताएं, कहीं तू अंदर जाएगा,
यकीन जानना यहीं पर मारा जाएगा,
क्या समझता है तू इसको अपना डेरा,
काल क्या मंडरा रहा है तेरा,
कौन है तू, जाता है बिन पूछे अंदर,
ठहर जा तू हुक्म है यह मेरा,
ठहर जा तू हुक्म है यह मेरा।
सुनके बात आए क्रोध में भोले शंकर,
बिना विचारे ही त्रिशूल को मारा कसकर,
कटा बालक का सर, जाने कहाँ हो गया लोप,
मरा बालक को देख शांत हुआ उनका कोप,
गए अंदर तो चौंक करके बोली पार्वती,
किस तरह आए अंदर, कोई रोका न कैलाशपति,
बोले भोले, मैं उसके सर को काट आया सती,
वो तो खुद को ही समझ रहा था कैलाशपति,
सुनके बाबा की बात गिर पड़ी चकरा के माँ,
पुत्र बिन किस तरह जिऊंगी, तुम ही दो बता,
बाबा क्यों मार दिया तुमने लाल मेरा,
घर में मेरे छा गया अँधेरा,
बिन बालक तड़पुँगी, सारा जीवन भर,
मार दिया तुमने लाल मेरा।
बोले फिर बाबा गणजनों को सब जाओ फौरन,
काट कर लाओ ऐसा सर जो है जन्मा इस क्षण,
पीठ पीछे हो उसकी माँ का ऐसा सर हो,
कोई भी प्राणी हो या जीव किसी का सर हो,
गणों ने देखा तो हथनी को जनम दे पाया,
पीठ पीछे किए हथिनी भोले की माया,
गणों ने काट लिया सर, नहीं देर किए,
भोले जी हाथी का सर, पल भर में जोड़ दिए,
नायक बना दिए गणों का, मेरे भोले,
रख दिए नाम गणपति और बोले,
रिद्धि सिद्धि वाला पुत्र तेरा,
इसे आशीर्वाद है ये मेरा,
जो भी आएगा, इसके दर पे गौरी,
मिटे उसके पल का अँधेरा,
जीवन में होगा सवेरा।
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Author - Saroj Jangir
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