किसी से क्या मैं माँगू, किसे क्या बाँटू, आज मेरे घर में आये छोड़ के श्याम वो खाटू, किसी से क्या मैं माँगू, किसे क्या बाँटू।
कोई दस बीस का दानी कोई आशीष का दानी हमारा शीश झुका है आप हो शीश के दानी कृपा हो चौरासी में प्रभु क्यों चक्कर काटूँ किसी से क्या मैं माँगू, किसे क्या बाँटू।
श्याम हैं सबके प्यारे तभी तो हैं मनहारे अगर हम हारे हैं तो आप हारे के सहारे सहारा छोड़ तुम्हारा और फिर किसको छाटूं किसी से क्या मैं माँगू, किसे क्या बाँटू।
मेरी तक़दीर बड़ी हैं श्याम से नज़र लड़ी है, रखो मेरी भी सर पे कृपा की मोरछड़ी है, भाव इस मन से निकले भावना कैसे बांटू, किसी से क्या मैं माँगू, किसे क्या बाँटू।
राग रामबीर ने छेड़ा लगेगा पार बेड़ा, भोग बस भाव का है भाव का मीठा पेड़ा, मिले जो प्रसाद की खिचड़ी खाऊँ फिर ऊँगली चाटूँ, किसी से क्या मैं माँगू, किसे क्या बाँटू।