अयिगिरि नन्दिनी नन्दिती मेदिनि लिरिक्स मीनिंग Aigiri Nandini Mahishasura Mardini Lyrics

अयिगिरि नन्दिनी नन्दिती मेदिनि लिरिक्स Aigiri Nandini Mahishasura Mardini Lyrics, Navratri Bhajan

 
अयिगिरि नन्दिनी नन्दिती मेदिनि लिरिक्स मीनिंग Aigiri Nandini Mahishasura Mardini Lyrics

अयिगिरि नन्दिनी नन्दिती मेदिनि, विश्व विनोदिनी नन्दिनुते
गिरिवर विन्ध्यशिरोधिनिवासिनी, विष्णु विलासिनीजिष्णुनुते
भगवति हे शितिकण्ठ कुटुम्बिनी, भूरि कुटुम्बिनी भूत कृते
जय जय हे महिषासुर मर्दिनी, रम्य कपर्दिनी शैलसुते

सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुख मर्षिणि हर्षरते
त्रिभुवन पोषिणि शङ्करतोषिणि किल्बिषमोषिणि घोषरते
दनुजनिरोषिणि दितिसुतरोषिणि दुर्मदशोषिणि सिन्धुसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते

अयि जगदम्ब मदम्ब कदम्ब वनप्रियवासिनि हासरते
शिखरि शिरोमणि तुङ्गहिमलय शृङ्गनिजालय मध्यगते
मधुमधुरे मधुकैटभगञ्जिनि कैटभभञ्जिनि रासरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते

अयि शतखण्ड विखण्डितरुण्ड वितुण्डितशुण्द गजाधिपते
रिपुगजगण्ड विदारणचण्ड पराक्रमशुण्ड मृगाधिपते
निजभुजदण्ड निपातितखण्ड विपातितमुण्ड भटाधिपते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते

अयि रणदुर्मद शत्रुवधोदित दुर्धरनिर्जर शक्तिभृते
चतुरविचार धुरीणमहाशिव दूतकृत प्रमथाधिपते
दुरितदुरीह दुराशयदुर्मति दानवदुत कृतान्तमते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते

अयि शरणागत वैरिवधुवर वीरवराभय दायकरे
त्रिभुवनमस्तक शुलविरोधि शिरोऽधिकृतामल शुलकरे
दुमिदुमितामर धुन्दुभिनादमहोमुखरीकृत दिङ्मकरे

अयि निजहुङ्कृति मात्रनिराकृत धूम्रविलोचन धूम्रशते
समरविशोषित शोणितबीज समुद्भवशोणित बीजलते
शिवशिवशुम्भ निशुम्भमहाहव तर्पितभूत पिशाचरते

धनुरनुषङ्ग रणक्षणसङ्ग परिस्फुरदङ्ग नटत्कटके
कनकपिशङ्ग पृषत्कनिषङ्ग रसद्भटशृङ्ग हताबटुके
कृतचतुरङ्ग बलक्षितिरङ्ग घटद्बहुरङ्ग रटद्बटुके

सुरललना ततथेयि तथेयि कृताभिनयोदर नृत्यरते
कृत कुकुथः कुकुथो गडदादिकताल कुतूहल गानरते
धुधुकुट धुक्कुट धिंधिमित ध्वनि धीर मृदंग निनादरते

जय जय जप्य जयेजयशब्द परस्तुति तत्परविश्वनुते
झणझणझिञ्झिमि झिङ्कृत नूपुरशिञ्जितमोहित भूतपते
नटित नटार्ध नटी नट नायक नाटितनाट्य सुगानरते

अयि सुमनःसुमनःसुमनः सुमनःसुमनोहरकान्तियुते
श्रितरजनी रजनीरजनी रजनीरजनी करवक्त्रवृते
सुनयनविभ्रमर भ्रमर भ्रमर भ्रमर भ्रमराधिपते

सहितमहाहव मल्लमतल्लिक मल्लितरल्लक मल्लरते
विरचितवल्लिक पल्लिकमल्लिक झिल्लिकभिल्लिक वर्गवृते
शितकृतफुल्ल समुल्लसितारुण तल्लजपल्लव सल्ललिते

अविरलगण्ड गलन्मदमेदुर मत्तमतङ्गजराजपते
त्रिभुवनभूषण भूतकलानिधि रूपपयोनिधि राजसुते
अयि सुदतीजन लालसमानस मोहन मन्मथराजसुते

कमलदलामल कोमलकान्ति कलाकलितामल भाललते
सकलविलास कलानिलयक्रम केलिचलत्कल हंसकुले
अलिकुलसङ्कुल कुवलयमण्डल मौलिमिलद्बकुलालिकुले

करमुरलीरव वीजितकूजित लज्जितकोकिल मञ्जुमते
मिलितपुलिन्द मनोहरगुञ्जित रञ्जितशैल निकुञ्जगते
निजगणभूत महाशबरीगण सद्गुणसम्भृत केलितले

कटितटपीत दुकूलविचित्र मयुखतिरस्कृत चन्द्ररुचे
प्रणतसुरासुर मौलिमणिस्फुर दंशुलसन्नख चन्द्ररुचे
जितकनकाचल मौलिमदोर्जित निर्भरकुञ्जर कुम्भकुचे

विजितसहस्रकरैक सहस्रकरैक सहस्रकरैकनुते
कृतसुरतारक सङ्गरतारक सङ्गरतारक सूनुसुते
रथसमाधि समानसमाधि समाधिसमाधि सुजातरते

पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति योऽनुदिनं सुशिवे
अयि कमले कमलानिलये कमलानिलयः स कथं न भवेत
तव पदमेव परम्पदमित्यनुशीलयतो मम किं न शिवे

कनकलसत्कलसिन्धुजलैरनुषिञ्चति तेगुणरङ्गभुवम्
भजति स किं न शचीकुचकुम्भतटीपरिरम्भसुखानुभवम
तव चरणं शरणं करवाणि नतामरवाणि निवासि शिवम्

तव विमलेन्दुकुलं वदनेन्दुमलं सकलं ननु कूलयते
किमु पुरुहूतपुरीन्दु मुखी सुमुखीभिरसौ विमुखीक्रियते
मम तु मतं शिवनामधने भवती कृपया किमुत क्रियते

अयि मयि दीन दयालुतया कृपयैव त्वया भवितव्यमुमे
अयि जगतो जननी कृपयासि यथासि तथानुमितासिरते
यदुचितमत्र भवत्युररीकुरुतादुरुतापमपाकुरुते
 


अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते
हे गिरिपुत्री, पृथ्वी को आनंदित करने वाली, संसार का मन मुदित रखने वाली, नंदी द्वारा नमस्कृत
अर्थ: हे देवी, आप पर्वतों की पुत्री हैं। आप पृथ्वी को आनंद प्रदान करती हैं और संसार के मन को प्रसन्न करती हैं। नंदी, भगवान शिव के वाहन, आपको नमस्कार करते हैं।

गिरिवरविन्ध्यशिरोऽधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते
पर्वतप्रवर विंध्याचल के सबसे ऊंचे शिखर पर निवास करने वाली, विष्णु को आनंद देने वाली, इंद्रदेव द्वारा नमस्कृत
 
अर्थ: आप विंध्याचल पर्वत के सबसे ऊंचे शिखर पर निवास करती हैं। आप भगवान विष्णु को आनंद प्रदान करती हैं और इंद्रदेव, देवताओं के राजा, आपको नमस्कार करते हैं।
 
भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते
नीलकंठ महादेव की गृहिणी, विशाल कुटुंब वाली, विपुल मात्रा में निर्माण करने वाली देवी
 
अर्थ: आप भगवान शिव की पत्नी हैं, जिन्हें नीलकंठ कहा जाता है। आपके पास एक विशाल परिवार है और आप सभी को भरपूर मात्रा में प्रदान करती हैं।

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते
हे महिषासुर का घात करने वाली, सुन्दर जटाधरी गिरिजा ! तुम्हारी जय हो, जय हो
अर्थ: हे देवी, आप महिषासुर नामक राक्षस का वध करने वाली हैं। आपके सुंदर बालों का मुकुट पहने हुए, आप पर्वतों की पुत्री हैं। आपकी जय हो, जय हो!

भावार्थ
यह श्लोक देवी दुर्गा की महिमा का वर्णन करता है। देवी दुर्गा को शक्ति, सौंदर्य और करुणा की देवी के रूप में पूजा जाता है। इस श्लोक में, देवी को "गिरिनन्दिनि" कहा जाता है, जिसका अर्थ है "पर्वतों की पुत्री"। यह उनके हिमालय पर्वतों से जुड़े होने का एक संदर्भ है, जिन्हें अक्सर शक्ति और शक्ति का प्रतीक माना जाता है।

सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते ।
त्रिभुवनपोषिणि शंकरतोषिणि किल्बिषमोषिणि घोषरते ।।
दनुजनिरोषिणि दितिसुतरोषिणि दुर्मदशोषिणी सिन्धुसुते ।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ।।


इस श्लोक में, देवी दुर्गा की कई महान शक्तियों और गुणों की प्रशंसा की गई है। सुरवरवर्षिणि - देवों को वरदान देने वाली। देवी दुर्गा को देवों की माता माना जाता है। वे देवों को वरदान देती हैं और उनकी रक्षा करती हैं।
दुर्दहरधर्षिणि - दुर्धर और दुर्मुख असुरों को मारने वाली। देवी दुर्गा ने महिषासुर नामक एक शक्तिशाली असुर का वध किया था। वह सभी बुराई और अत्याचार का नाश करती हैं।
दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते - स्वयं में ही हर्षित रहने वाली। देवी दुर्गा हमेशा प्रसन्न रहती हैं। वह अपने भक्तों की भलाई के लिए हमेशा तत्पर रहती हैं।
त्रिभुवनपोषिणि - तीनों लोकों का पोषण करने वाली। देवी दुर्गा तीनों लोकों की रक्षा और पालन करती हैं।
शंकरतोषिणि - शंकर को संतुष्ट करने वाली। देवी दुर्गा भगवान शिव की पत्नी हैं। वह हमेशा भगवान शिव को प्रसन्न करने का प्रयास करती हैं।
किल्बिषमोषिणि घोषरते - पापों को हरने वाली और घोर गर्जना करने वाली। देवी दुर्गा पापों का नाश करती हैं और बुराई पर विजय प्राप्त करती हैं।
दनुजनिरोषिणि - दानवों पर क्रोध करने वाली। देवी दुर्गा दानवों के दुश्मन हैं। वह हमेशा दानवों का नाश करने के लिए तत्पर रहती हैं।
दितिसुतरोषिणि - दिति के पुत्रों पर क्रोध करने वाली। देवी दुर्गा ने दैत्यों को भी हराया था, जो दिति के पुत्र थे।
दुरमदशोषिणी - अहंकारियों के घमंड को सुखा देने वाली। देवी दुर्गा अहंकारियों को सबक सिखाती हैं।
सिन्धुसुते - समुद्र की पुत्री। देवी दुर्गा का जन्म समुद्र में हुआ था।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते - हे महिषासुर का मर्दन करने वाली, अपने बालों की लता से आकर्षित करने वाली पर्वत की पुत्री तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।
इस श्लोक के माध्यम से, देवी दुर्गा के भक्त उनकी शक्तियों और गुणों को स्वीकार करते हैं और उनकी जय-जयकार करते हैं।

अयि जगदम्बमदम्बकदम्ब वनप्रियवासिनि हासरते ।
शिखरिशिरोमणि तुङ्गहिमालय शृंगनिजालय मध्यगते ।।
मधुमधुरे मधुकैटभगन्जिनि कैटभभंजिनि रासरते ।
 जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ।।


"अयि जगदम्बमदम्बकदम्ब वनप्रियवासिनि हासरते" - हे जगतमाता, मेरी माँ, प्रेम से कदम्ब के वन में वास करने वाली, हास्य भाव में रहने वाली।
"शिखरिशिरोमणि तुङ्गहिमालय शृंगनिजालय मध्यगते" - हिमालय के शिखर पर स्थित अपने भवन में विराजित।
"मधुमधुरे मधुकैटभगन्जिनि कैटभभंजिनि रासरते" - मधु (शहद) की तरह मधुर, मधु-कैटभ का मद नष्ट करने वाली, महिष को विदीर्ण करने वाली।
"जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते" - सदा युद्ध में लिप्त रहने वाली हे महिषासुर का मर्दन करने वाली अपने बालों की लता से आकर्षित करने वाली पर्वत की पुत्री तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।
इस श्लोक में देवी दुर्गा को जगतमाता के रूप में वर्णित किया गया है। वे प्रेम से कदम्ब के वन में वास करती हैं, जो प्रेम और सौंदर्य का प्रतीक है। वे हमेशा हास्य भाव में रहती हैं, जो उनके आनंद और दया का प्रतीक है। वे हिमालय के शिखर पर स्थित अपने भवन में विराजमान हैं, जो उनकी शक्ति और ऊंचाई का प्रतीक है। वे मधु-कैटभ का मद नष्ट करने वाली और महिष को विदीर्ण करने वाली हैं, जो उनके पराक्रम और शौर्य का प्रतीक है। वे सदा युद्ध में लिप्त रहती हैं, जो उनके संघर्ष और त्याग का प्रतीक है।

इस श्लोक में देवी दुर्गा को महिषासुर मर्दिनी के रूप में भी वर्णित किया गया है। वे महिषासुर का मर्दन करने वाली हैं, जो अत्याचार और अन्याय का प्रतीक है। वे अपने बालों की लता से आकर्षित करने वाली हैं, जो उनके सौंदर्य और आकर्षण का प्रतीक है।
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