सतगुरु आवो हमरे देस निहारूँ बाट खड़ी
वाणी : धर्मदास जी।
सतगुरु आवो हमरे देस,
निहारूँ बाट खड़ी,
निहारूँ बाट खड़ी।
वाहे देस की बत्तियाँ रे,
लावे संत सुजान,
लावै संत सुजान,
उन संतन के चरण पखारूँ,
तन मन करूँ कुर्बान,
तन मन करूँ कुर्बान,
सतगुरु आवो हमरे देस,
निहारूँ बाट खड़ी,
निहारूँ बाट खड़ी।
वाहे देस की बत्तियाँ हम से,
सतगुर आन कही,
सतगुर आन कही,
आठ पहर के निरखत हमरे,
नैन की नींद गयी,
नैन की नींद गई,
सतगुरु आवो हमरे देस,
निहारूँ बाट खड़ी,
निहारूँ बाट खड़ी।
भूल गयी तन मन धन सारा
व्याकुल भया शरीर,
व्याकुल भया शरीर,
बिरह पुकारे विरहणी,
ढरकत नैनन नीर,
ढरकत नैनन नीर,
सतगुरु आवो हमरे देस,
निहारूँ बाट खड़ी,
निहारूँ बाट खड़ी।
धर्मदास के दाता सतगुरु,
पल में कियो निहाल,
पल में कियो निहाल,
आवागवन की डोरी कट गयी,
मिटै भरम जंजाल,
मिटै भ्रम जंजाल,
सतगुरु आवो हमरे देस,
निहारूँ बाट खड़ी,
निहारूँ बाट खड़ी।
भजन श्रेणी : सतगुरु देव /गुरु भजन Satguru Dev Bhajan
Satgur Aavo Hamre Des - Dhani Dharamdas Ji - RSSB Shabad