अंधा नर चैते नहीं कटै ना संसे सूल मीनिंग Andha Nar Chete Nahi Meaning Kabir Ke Dohe

अंधा नर चैते नहीं कटै ना संसे सूल मीनिंग Andha Nar Chete Nahi Meaning Kabir Ke Dohe, Kabir Ke Dohe (Saakhi) Hindi Arth/Hindi Meaning Sahit (कबीर दास जी के दोहे सरल हिंदी मीनिंग/अर्थ में )

अंधा नर चैते नहीं, कटै ना संसे सूल।
और गुनह हरि बकससी, काँमी डाल न मूल॥
Andha Nar Chete Nahi, Kate Na Sanse Sool,
Aur Gunah Hari Bakasasi, Kami Daal Na Mool.


अंधा नर चैते नहीं : अँधा नर चेतता नहीं है, बोध प्राप्त नहीं करता है.
कटै ने संसे सूल : संशय दूर नहीं होता है.
और गुनह हरि बकससी : एनी गुनाह, दोष बक्श दिए जाते हैं.
काँमी डाल न मूल : डाल और मूल दोनों ही नष्ट हो जाते हैं.
अंधा नर बुद्धिहीन व्यक्ति.
चैते नहीं : चेतना को प्राप्त नहीं करता है.
कटै ने : कटता नहीं है.
संसे सूल : शंशय रूपी शूल,
और गुनह : अन्य गुनाह.
हरि बकससी : इश्वर माफ़ कर देता है.
काँमी : काम वासना में पड़ा हुआ व्यक्ति.
डाल न मूल : उसका डाल और मूल कुछ भी नहीं छोड़ता है.
मूल : जड़.

कबीर साहेब की वाणी है की व्यक्ति काम वासना के प्रभाव में आकर अँधा हो चूका है. माया के भ्रम का जाल में फंसे रहने के कारण उसका शंशय कभी मिटता नहीं है. ऐसे में उसे शंशय का शूल हमेशा ही परेशान करता रहता है. नर अँधा हो चूका है क्योंकि वह सिर्फ माया के ही भ्रम में पड़ा रहता है. ऐसे में उसका विवेक समाप्त हो जाता है.
अन्य गुनाह को तो हरी/इश्वर माफ़ कर देता है लेकिन कामुक भावना से ग्रस्त व्यक्ति के गुनाह को पूर्ण परमात्मा कभी माफ़ नहीं करती है. अतः भक्ति मार्ग पर बढ़ने के लिए जीवात्मा को काम वासना से मुक्त होना चाहिए. विषय विकारों में व्यक्ति का पतन ही होना है. अतः सांसारिक विषय वासनाओं को समझने की आवश्यकता है और उनसे दूर रहकर मानसिक अनुशासन की महत्ती आवश्यकता है।
जिसने इस जीवन के उद्देश्य को समझा है, समझने की कोशिश की है वह यह जानता है की उसे हर तरह के बंधन और आकर्षण से दूर रहकर हरी के नाम का सुमिरन करना है जो मुक्ति का आधार है।
 
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