नारी कुण्ड नरक का बिरला थंभै बाग हिंदी मीनिंग Nari Kund Narak Ka Meaning Kabir Ke Dohe Hindi Arth Sahit, Hindi Meaning
नारी कुण्ड नरक का, बिरला थंभै बाग।
कोई साधू जन ऊबरै, सब जग मूँवा लाग॥
Nari Kund Narak ka, Birala Thambe Baag,
Koi Sadhu Jan Ubare, Sab Jag Mua Laag.
कोई साधू जन ऊबरै, सब जग मूँवा लाग॥
Nari Kund Narak ka, Birala Thambe Baag,
Koi Sadhu Jan Ubare, Sab Jag Mua Laag.
नारी कुण्ड नरक का : नारी नरक के कुंड के समान है.
बिरला थंभै बाग : कोई बिरला ही इसे थाम सकता है.
कोई साधू जन ऊबरै : कोई संतजन ही इससे उबर सकता है.
सब जग मूँवा लाग : सभी लोग सबंध जोडकर मरते हैं.
नारी कुण्ड नरक का : नारी नरक/नर्क का कुंड है,
बिरला : कुछेक, विरल, बहुत कम.
थंभै : थाम कर.
बाग : बाग़ डोर, लगाम.
कोई साधू जन ऊबरै : इससे कोई संत जन ही उबर सकता है.
सब जग : सम्पूर्ण संसार.
मूँवा : मरता है.
लाग : संपर्क में रहकर, पास में रहकर.
बिरला थंभै बाग : कोई बिरला ही इसे थाम सकता है.
कोई साधू जन ऊबरै : कोई संतजन ही इससे उबर सकता है.
सब जग मूँवा लाग : सभी लोग सबंध जोडकर मरते हैं.
नारी कुण्ड नरक का : नारी नरक/नर्क का कुंड है,
बिरला : कुछेक, विरल, बहुत कम.
थंभै : थाम कर.
बाग : बाग़ डोर, लगाम.
कोई साधू जन ऊबरै : इससे कोई संत जन ही उबर सकता है.
सब जग : सम्पूर्ण संसार.
मूँवा : मरता है.
लाग : संपर्क में रहकर, पास में रहकर.
कबीर साहेब वाणी देते हैं की नारी नरक के कुंड के समान है, इससे बच कर रहने की आवश्यकता है. यह नियंत्रण की बात है, कोई बिरला व्यक्ति ही स्वंय पर नियंत्रण स्थापित करके इससे बच सकता है. अन्यथा सम्पूर्ण संसार इससे सम्पर्क स्थापित कर, इसके पास में रहकर मृत्यु को प्राप्त होते हैं. भाव है की नारी माया का रूप है जो विभिन्न प्रकार के अवगुणों से भरी पड़ी है. यह विकारों का कुंड है. इसके संपर्क में आने के उपरान्त जीवात्मा भक्ति मार्ग से विमुख होकर तुच्छ सांसारिक स्वार्थ सिद्धि में लिप्त हो जाती है. कबीर साहेब की इस साखी/दोहे में रूपक अलंकार की व्यंजना हुई है.
नारी से बचने से आशय मानसिक अनुशासन से है। साधक को अपने मन को नियंत्रित करके तमाम तरह के ऐसे विषय जो मोह उत्पन्न करते हैं, व्यक्ति को संसार की क्रियाओं में उलझाते हैं, उनसे दूर रहना चाहिए। कबीर साहेब नारी के विरोधी नहीं अपितु नारी के प्रति लगाव और उलझन के विरोधी हैं।
साधक को भक्ति प्राप्त करने के लिए उन सभी का त्याग करना होगा जो उसे सांसारिक कार्यों में ही उलझा कर रखते हैं, जिनमें से नारी के प्रति आकर्षण भी एक है।
नारी से बचने से आशय मानसिक अनुशासन से है। साधक को अपने मन को नियंत्रित करके तमाम तरह के ऐसे विषय जो मोह उत्पन्न करते हैं, व्यक्ति को संसार की क्रियाओं में उलझाते हैं, उनसे दूर रहना चाहिए। कबीर साहेब नारी के विरोधी नहीं अपितु नारी के प्रति लगाव और उलझन के विरोधी हैं।
साधक को भक्ति प्राप्त करने के लिए उन सभी का त्याग करना होगा जो उसे सांसारिक कार्यों में ही उलझा कर रखते हैं, जिनमें से नारी के प्रति आकर्षण भी एक है।