कबीर चित्त चमंकिया किया पयाना दूरि मीनिंग
कबीर चित्त चमंकिया, किया पयाना दू।
काइथि कागद काढ़िया, तब दरिगह लेखा पूरि॥
Kabir Chitt Chamakiya, Kiya Payana Duri,
Kaithi Kagad Kadhiya, Tab Darigah Lekha Puri.
कबीर चित्त चमंकिया : कबीर हृदय चमत्कृत हुआ, प्रकाशित हुआ.किया पयाना दूरि : जीव ने दूर प्रयाण किया.काइथि कागद काढ़िया : कायस्थ ने कागज़ निकाला.तब दरिगह लेखा पूरि : दरगाह में मेरा हिसाब पूर्ण निकला.चित्त : हृदय.चमंकिया : प्रकाशित हुआ, उजाला हुआ.पयाना दूरि : दूर प्रयाण किया.काइथि : कायस्थ, चित्रगुप्त.कागद : लेखा जोखा का कागज़.काढ़िया : निकालातब दरिगह : तब दरगाह में, दरबार में.लेखा: हिसाब किताब, कर्मों का लेखा जोखा.पूरि : पूरा मिला, पूर्ण मिला. कबीर साहेब की वाणी है की जब जीवात्मा भक्ति मार्ग पर चलती है तो उसे किसी प्रकार का कोई शंशय शेष नहीं रहता है. कर्मों का लेखा जोखा होने पर वह मुक्त हो जाती है. जीवात्मा दूर के लिए प्रयाण करती है. जब चित्रगुप्त जीवात्मा के कर्मों के हिसाब किताब का कागज निकालता है तो वह पूर्ण निकलता है, उसमें किसी प्रकार की कोई त्रुटी शेष नहीं रहती है. ऐसा होने पर जीवात्मा भय मुक्त हो जाती है और उसका हृदय प्रकाशित हो उठता है. उसका कोई पल्ला नहीं पकड़ता है. उस सच्चे दरबार में उसका हिसाब किताब पूर्ण मिलता है. अतः व्यक्ति को चाहिए की वह सद्कर्म करे और मानव जीवन के महत्त्व को स्वीकार करते हुए, हरी के नाम का सुमिरन करे. कायस्थ से आशय चित्रगुप्त से है, जो कर्मों का लेखा जोखा लेता है.