हरिजन सेती रूसणाँ संसारी सूँ हेत मीनिंग कबीर के दोहे

हरिजन सेती रूसणाँ संसारी सूँ हेत मीनिंग Harijan Seti Rusana Meaning, Kabir Ke Dohe (Saakhi) Hindi Arth/Hindi Meaning Sahit (कबीर दास जी के दोहे सरल हिंदी मीनिंग/अर्थ में )

हरिजन सेती रूसणाँ, संसारी सूँ हेत।
ते नर कदे न नीपजै, ज्यूँ कालर का खेत॥

Harijan Seti Rusana, Sansari Su Het,
Te Nar Kade Na Neepaje, Jyu Kalar Ka Khet.

हरिजन सेती रूसणाँ : हरिजन/ हरिभक्तों से प्रेम ना रखना.
संसारी सूँ हेत : माया के प्रभाव में पड़े हुए व्यक्तियों से प्रेम रखना, मोह रखना.
ते नर कदे न नीपजै : ऐसे व्यक्तिओं का कभी भी भला नहीं हो सकता है.
ज्यूँ कालर का खेत : जैसे की बंजर भूमि का खेत कभी भी पैदावार नहीं दे सकता है.
हरिजन : इश्वर भक्त, इश्वर की भक्ति में ध्यान रखने वाले.
सेती : से/उनसे.
रूसणाँ :नाराज रहना, प्रेम नहीं करना.
संसारी : माया जनित व्यवहार करने वाले सांसारिक व्यक्ति.
सूँ : से.
हेत : प्रेम, स्नेह.
ते : वे.
नर : व्यक्ति.
कदे न : कभी नहीं.
नीपजै : विकास को प्राप्त होते हैं.
ज्यूँ : जैसे.
कालर का खेत : उबड़ खाबड़, पथरीली/बंजर जमीन वाला खेत.

हरी भक्तों से दूर रहकर, सांसारिक व्यक्तियों से स्नेह करने वाले व्यक्ति का कभी भी उत्थान नहीं होता है. वह कभी इश्वर के पास नहीं जा सकता है. जैसे बंजर जमीन पर  बनाया गया खेत कोई पैदावार नहीं देता है, ऐसे ही इश्वर भक्तों / संतजन से दूर रहने वाला व्यक्ति भी कभी विकास को प्राप्त नहीं होता है. जीवात्मा के अंदर भक्ति का बीज तभी प्रफुल्लित होता है जब वह साधुजन की संगती में रहता है. 
 
स्पष्ट है की सांसारिक व्यक्ति हमेशा ही माया जनित व्यवहार में लिप्त रहते हैं. उनके साथ में रहकर कोई भक्ति सबंधी ज्ञान प्राप्त नहीं कर पाता है. अतः हमें सदा ही संतजन के सानिध्य में रहना चाहिए. प्रस्तुत साखी में साहेब ने संतजन की संगती के महत्त्व को दर्शाया है. इस साखी में उपमा अलंकार की व्यंजना हुई है.
 
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