कबीर पुंजी साह की मीनिंग Kabir Punji Sah Ki Meaning Kabir Ke Dohe, Kabir Ke Dohe (Saakhi) Hindi Arth/Hindi Meaning Sahit (कबीर दास जी के दोहे सरल हिंदी मीनिंग/अर्थ में )
कबीर पूँजी साह की, तूँ जिनि खोवै ष्वार।खरी बिगूचनि होइगी, लेखा देती बार॥
or
कबीर पुंजी साह की, तूं जिनि खोवे ख्वार।
खरी बिगूचनि होइगी, लेखा देती बार।।
Kabir Punji Sah Ki, Tu Jihi Khove Khvar,
Khati Biguchani Hoigi, Lekha Deti Baar.
- कबीर पूँजी साह की : धन जो साहूकार का है.
- तूँ जिनि खोवै ष्वार : तुम उसको व्यर्थ में गँवा रहे हो.
- खरी बिगूचनि होइगी : स्पष्ट रूप से अपमानित होना पड़ेगा.
- लेखा देती बार : कर्मों का हिसाब किताब देते वक़्त.
- पूँजी साह की : पूंजी साहूकार की.
- पूंजी : धन (मानव जीवन)
- तूँ : तुम.
- जिनि : जिसको.
- खोवै : व्यर्थ में गंवाता है.
- ष्वार : व्यर्थ में खोना.
- खरी : स्पष्ट
- बिगूचनि : अपमानित होना, असमंजस की स्थिति बनना.
- होइगी : होगी.
- लेखा देती बार : हिसाब देते वक्त.
कबीर साहेब की वाणी है की तुमको परमात्मा ने जो धन दिया है, उसे तुम यूँ ही व्यर्थ में नहीं गंवाओ, एक रोज साहूकार अपने धन का हिसाब लेगा तो तुम असहज हो जाओगे क्योंकि तुमने उसके धन को यूँ ही गंवा दिया है.
साहूकार से आशय है पूर्ण परमात्मा से, पूर्ण परमात्मा ने तुमको मानव का जीवन दिया है. इस अमूल्य मानव जीवन रूपी धन को तुम व्यर्थ में मत गंवाओ, नष्ट मत करो.
यह धन तुम्हारा नहीं है. एक रोज इस धन का हिसाब होना है. तुमने यदि इसे व्यर्थ में ही गँवा दिया तो एक रोज तुम्हारे कर्मों का हिसाब होने पर तुमको अवश्य ही अपमानित होना पड़ेगा.
साहूकार से आशय है पूर्ण परमात्मा से, पूर्ण परमात्मा ने तुमको मानव का जीवन दिया है. इस अमूल्य मानव जीवन रूपी धन को तुम व्यर्थ में मत गंवाओ, नष्ट मत करो.
यह धन तुम्हारा नहीं है. एक रोज इस धन का हिसाब होना है. तुमने यदि इसे व्यर्थ में ही गँवा दिया तो एक रोज तुम्हारे कर्मों का हिसाब होने पर तुमको अवश्य ही अपमानित होना पड़ेगा.
मानव जीवन इश्वर के द्वारा प्रदत्त पूंजी है, इस पूंजी का अधिकार हमारे पास नहीं है. अतः हमें चाहिए की इस पूंजी का महत्त्व को हम समझें और इसका इश्वर भक्ति में उपयोग करे. सांसारिक क्रियाओं में इसे व्यर्थ में गंवाना इसका अनादर है. एक रोज इस मानव जीवन रूपी पूंजी का हिसाब किताब होना है. जब हमसे लेखा जोखा लिया जाएगा तो उस रोज हमें शर्मिंदा होना पड़ेगा क्योंकि हमने इसका आदर नहीं किया है. प्रस्तुत साखी में रुप्कतिश्योक्ति अलंकार की व्यंजना हुई है.
भजन श्रेणी : कबीर के दोहे हिंदी मीनिंग (Read More :Kabir Dohe Hindi Arth Sahit)
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