कामी अमीं न भावई हिंदी मीनिंग
कामी अमीं न भावई, विषई कौं ले सोधि।
कुबधि न जाई जीव की, भावै स्यंभ रहो प्रमोधि॥
Kaami Ami Na Bhavai, Vishai Ko Le Sodhi,
Kubadhi Na Jaai Jeev Ki, Bhave Swynbh Raho Pramodhi.
कामी : विषय वासनाओं में लिप्त जीवात्मा को.अमीं न भावई : अमृत अच्छा नहीं लगता है.विष ई कौं ले सोधि : वह इन्द्रियों के विषयों की खोज में लगा रहता है.कुबधि न जाई जीव की : जीवात्मा की कुबुद्धि दूर नहीं हो पाती है.
भावै स्यंभ रहो प्रमोधि : भले ही स्वंय परमात्मा आकर उसको क्यों ना समझाएं.कामी : विषय विकारों में पड़ी जीवात्मा.अमीं : अमृत/ इश्वर भक्ति रस.न भावई : भाता नहीं, अच्छा नहीं लगता है.विषई : विषय विकार.कौं ले: को ढूंढ लेता है.सोधि : खोज लेता है.कुबधि : सांसारिक विषय विकारों में रहने की बुद्धि ही कुबुद्धि है.न जाई : दूर नहीं होती है.जीव की : जीवात्मा की.भावै : भले ही.स्यंभ : स्यंभू, इश्वर (जो स्वंय में परिपूर्ण है)रहो : कर ले.प्रमोधि : वार्ता कर ले, रिझा ले. कबीर साहेब की वाणी है की कामी व्यक्ति को सांसारिकता में ही आनंद आता है और वह विषय विकारों में पड़ा रहता है. वह विषय विकारों में पड़ा रहता है. वह अपने स्वभाव के मुताबिक़ विषय विकारों को शोध / खोज करता रहता है.
राम नाम सुमिरन रूपी रस जो अमृत है उसे भाता नहीं है, अच्छा नहीं लगता है क्योंकि वह तो विषय विकारों के पीछे लगा रहता है. माया का भ्रम इतना अधिक रहता है की वह स्वंय इश्वर के द्वारा समझाने पर भी समझ नहीं सकता है. जीव की यह कुबुद्धि कब जायेगी, जब वह इश्वर की भक्ति में अपना मन को लगाए रखे, विषय विकारों से स्वंय को दूर रखे. जितना वह विषय विकारों में पड़ा रहता है वह उतना ही अधिक रूप से भक्ति मार्ग से दूर होता ही चला जाता है.
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Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें।
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