कबीर तासूँ प्रीति करि जो निरबाहे ओड़ि मीनिंग Kabir Tasu Priti Kari Kabir Ke Dohe

कबीर तासूँ प्रीति करि जो निरबाहे ओड़ि मीनिंग Kabir Tasu Priti Kari Kabir Ke Dohe (Saakhi) Hindi Arth/Hindi Meaning Sahit (कबीर दास जी के दोहे सरल हिंदी मीनिंग/अर्थ में )

कबीर तासूँ प्रीति करि, जो निरबाहे ओड़ि।
बनिता बिबिध न राचिये, दोषत लागे षोड़ि॥
Kabir Tasu Priti Kari, Jo Nirbahe Odi,
Banita Bibidh Na Radhiye, Doshat Lage Khodi.

कबीर तासूँ प्रीति करि : उनसे प्रेम करना चाहिए जो.
जो निरबाहे ओड़ि : जो जीवन भर उसका निर्वाह करें.
बनिता बिबिध न राचिये : विविध प्रकार की स्त्री से प्रेम भाव नहीं रखना चाहिए.
दोषत लागे षोड़ि : देखते ही दोष लगता है.
तासूँ : उससे.
प्रीति करि : प्रेम करो, प्रेम का संबध स्थापित करो.
जो निरबाहे : जो उसका निर्वाह कर सके.
ओड़ि : अंत समय तक.
बनिता : स्त्री, नारी,
बिबिध : अनेकों, कई.
न राचिये : प्रेम मत करो, सम्बन्ध स्थापित मत करो.
दोषत दोष.
लागे. लगता है.
षोड़ि : खोर, दोष.

कबीर साहेब की वाणी है की हमें उन्ही से प्रेम स्थापित करना चाहिए जो अंत समय तक उसे निभा सके. ज्यादा लोगों से प्रेम स्थापित करने के सम्बन्ध में कबीर साहेब उदाहरण देकर कहते हैं की जैसे एक स्त्री के स्थान पर अनेकों स्त्री से सम्बन्ध रखने वाला व्यक्ति उन्हें देखने से ही दोष का भागी बनता है.
अतः हमें इश्वर भक्त से ही सम्बन्ध स्थापित करना चाहिए, क्योंकि भक्त का साथ ही सदा रहने वाला है. जो व्यक्ति माया में लिप्त रहता है वह अवश्य ही पुनः माया की तरफ दौड़ता है. जैसे अन्य स्त्री से संपर्क रखने वाला व्यक्ति पाप का भागी बनता है, वैसे ही माया जनित व्यवहार करने वाला व्यक्ति भी पाप का ही भागी बनता है. प्रस्तुत साखी में रुप्कातिश्योक्ति अलंकार की सफल व्यंजना हुई है.
 
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