माला पहर्‌याँ कुछ नहीं मीनिंग Mala Paharaya Kuch Nahi Meaning Kabir Dohe

माला पहर्‌याँ कुछ नहीं मीनिंग Mala Paharaya Kuch Nahi Meaning Kabir Dohe, Kabir Ke Dohe (Saakhi) Hindi Arth/Hindi Meaning Sahit (कबीर दास जी के दोहे सरल हिंदी मीनिंग/अर्थ में )

माला पहर्‌याँ कुछ नहीं, रुल्य मूवा इहि भारि।
बाहरि ढोल्या हींगलू भीतरि भरी भँगारि॥
Mala Paharaya Kuch Nahi, Rulya Muva Ihi Mahi,
Bahari Dholya Hingalu, Bheetar Bhari Bhangari.

माला पहर्‌याँ कुछ नहीं : माला पहनने से कुछ भी नहीं होता है.
रुल्य मूवा इहि भारि: व्यक्ति रुल कर (बर्बाद होकर) इसी के भार से मर जाता है.
बाहरि ढोल्या हींगलू: बाहर भले ही उसने हिंगलू डाल रखा हो, लेकिन अन्दर से वह कबाड़ से भरा हुआ है.
भीतरि भरी भँगारि: उसके भीतर भंगार भरा पड़ा है.
माला : काठ की माला.
पहर्‌याँ : पहनने से.
कुछ नहीं: कुछ भी प्राप्त नहीं होने वाला है.
रुल्य : रुल जाना, समाप्त हो जाना.
मूवा: मरना.
इहि : इसके.
भारि : भार से.
बाहरि : बाहर, शरीर पर.
ढोल्या गिराने से, लगाने से.
हींगलू : लाल रंग.
भीतरि : हृदय में.
भरी : भरा हुआ है.
भँगारि : भंगार भरी हुई है.

कबीर साहेब आडम्बर और कर्मकाण्ड के लिए कहते हैं की माला पहनने से कुछ भी नहीं होने वाला है. व्यक्ति जो माला पहनता है वह उस माला के भार से मरता रहता है,  भले ही उसने अपने शरीर पर हिंगुल लगा रखा हो लेकिन उसके हृदय के अनादर तो भंगार ही भरा पड़ा रहता है. भाव है की कर्मकांड और आडम्बर का कोई लाभ नहीं  होने वाला है. उसने भले ही अपने शरीर पर लाल वस्त्र डाल रखे हों लेकिन महत्त्व इस बात का नहीं है की माला धारण करना या वस्त्र पहनना. अपितु महत्त्व इस बात का  है की कोई व्यक्ति अपने हृदय से भक्ति करता है या नहीं. नाम सुमिरन हृदय से होना चाहिए.   
 
भक्ति में दिखावे या बाह्य प्रदर्शन का कोई भी स्थान नहीं होता है. सद्मार्ग पर चलते हुए हृदय से इश्वर के नाम का सुमिरन आवश्यक है. हृदय में विषय विकारों का जो भंगार भरा पड़ा है उसे निकालना आवश्यक है.
 
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