माला पहर्‌याँ कुछ नहीं काती मन कै साथि मीनिंग Mala Paharaya Kuch Nahi Kabir Dohe

माला पहर्‌याँ कुछ नहीं काती मन कै साथि मीनिंग Mala Paharaya Kuch Nahi Kabir Dohe Meaning

माला पहर्‌याँ कुछ नहीं, काती मन कै साथि।
जब लग हरि प्रकटै नहीं, तब लग पड़ता हाथि॥
Mala Paharya Kuch Nahi, Kati Man Ke Sathi,
Jab Lag Hari Pakate Nahi, Tab Lag Padta Hathi.

माला पहर्‌याँ कुछ नहीं : माला को धारण करने से क्या लाभ.
काती मन कै साथि : माया को काटने वाली कैंची रूपी वृति तो मन के साथ है.
जब लग हरि प्रकटै नहीं : जब तक हरी का प्राकट्य नहीं होता है, हरी से सम्बन्ध स्थापित नहीं होता है.
तब लग पड़ता हाथि : तब तक हाथ में माला घुमाने से क्या लाभ.
माला : काष्ठ की माला.
पहर्‌याँ : पहनने से.
कुछ नहीं : कुछ भी नहीं, कुछ भी प्राप्त नहीं होने वाला.
काती : कैंची.
मन कै साथि : मन के साथ, मन के मुताबिक़.
जब लग : जब तक.
हरि : इश्वर.
प्रकटै नहीं : इश्वर प्रकट नहीं होता है.
तब लग : तब तक.
पड़ता हाथि : हाथ में कुछ भी नहीं आता है ( कुछ भी प्राप्त नहीं होता है. )

कबीर साहेब जीवात्मा को सन्देश देते हैं की भले ही तुमने माला को धारण कर लिया है लेकिन इससे कुछ भी लाभ नहीं होने वाला है. व्यक्ति को लाभ तभी होगा जब वह अपने मन को नियंत्रित करे. विषय विकारों को काटने वाली वृति रूपी कैंची तो मन के नियंत्रण में है, वश में है तो कैसे विषय विकार दूर होंगे ? जब तक हृदय में इश्वर का प्राकट्य नहीं होगा तब तक तुम्हारे हाथ में क्या लाभ आने वाला है. काष्ठ की माला को भले ही तुम रात दिन फिराते रहो. 
 
भाव है की हाथ की माला को नहीं बल्कि हृदय का मंथन करो. अतः साहेब आचरण की शुद्धता पर बल देते हैं, तमाम तरह के पाखण्ड और बाह्य आचरण का विरोध करते हैं यथा, रंग बिरंगे कपडे पहनना, माला पहनना या माला को पहनना, जप तप और धार्मिक अनुष्ठान इत्यादि. इन सभी का कोई महत्त्व नहीं है जब तक हृदय से इश्वर के नाम का सुमिरन नहीं किया जाए.
 
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