जोरू जूठणि जगत की भले बुरे का बीच मीनिंग Joru Juthani Jagat Ki Meaning Kabir Dohe Hindi Arth Sahit/Hindi Meaning
जोरू जूठणि जगत की, भले बुरे का बीच।उत्यम ते अलगे रहै, निकटि रहै तैं नीच॥
Joru Juthani Jagat Ki, bhale Bure Ka Beech,
Utyam Te Alage Rahe, Nikati Rahe Te Neech.
जोरू जूठणि जगत की : नारी जगत की जूठन है.
भले बुरे का बीच : यह भले बुरे का बोध करवाती है.
उत्यम ते अलगे रहै : उत्तम पुरुष तो इसके प्रभाव से दूर रहते हैं.
निकटि रहै तैं नीच : इसके निकट रहने वाले नीच होते हैं.
जोरू : पत्नी/स्त्री.
जूठणि : जूठन, अपवित्र.
जगत की: संसार की.
भले बुरे का बीच : भले बुरे के मध्य, अंतर.
उत्यम : उत्तम.
ते अलगे रहै : इससे अलग रहते हैं.
निकटि रहै तैं नीच : निकट रहने वाले नीच होते हैं.
भले बुरे का बीच : यह भले बुरे का बोध करवाती है.
उत्यम ते अलगे रहै : उत्तम पुरुष तो इसके प्रभाव से दूर रहते हैं.
निकटि रहै तैं नीच : इसके निकट रहने वाले नीच होते हैं.
जोरू : पत्नी/स्त्री.
जूठणि : जूठन, अपवित्र.
जगत की: संसार की.
भले बुरे का बीच : भले बुरे के मध्य, अंतर.
उत्यम : उत्तम.
ते अलगे रहै : इससे अलग रहते हैं.
निकटि रहै तैं नीच : निकट रहने वाले नीच होते हैं.
कबीर साहेब की वाणी का मूल सन्देश है की नारी माया का ही रूप है और यह माया का भ्रम उत्पन्न करती है. नारी को समझ कर यह अवश्य ही पता लगाया जा सकता है की क्या उत्तम है और क्या उत्तम नहीं है, निकृष्ट है. उत्तम व्यक्ति माया से दूर रहते हैं और निकृष्ट और नीच व्यक्ति माया के सानिध्य में रहते हैं. वस्तुतः नारी भले और बुरे का बोध करवाती है. अतः साधक को यह समझना चाहिए की नारी कैसे माया का प्रभाव उत्पन्न करती है और कैसे यह साधक को भक्ति मार्ग से विमुख करती है. प्रस्तुत साखी में रूपक अलंकार की व्यंजना हुई है।
अनेकों स्थान पर कबीर साहेब ने नारी को माया का ही एक छद्म रूप माना है जिसे गहराई से समझने की आवश्यकता है। ऐसा नहीं है की जो संत चींटी के पाँव में नेवर बाजे लिखता हो वह किसी जीव / प्राणी या कहे तो नारी के प्रति द्वेष पालता हो।
भाव है की माया के विभिन्न रूप हैं जो साधक को भक्ति मार्ग से भटका देते हैं। भक्ति भी कोई बहुत आसान कार्य नहीं है, इसके लिए घोर मानसिक अनुशासन की आवश्यकता होती है। अतः नारी के प्रति मोह भी एक तरह का इन्द्रिय अनुशासन का अभाव है।
अनेकों स्थान पर कबीर साहेब ने नारी को माया का ही एक छद्म रूप माना है जिसे गहराई से समझने की आवश्यकता है। ऐसा नहीं है की जो संत चींटी के पाँव में नेवर बाजे लिखता हो वह किसी जीव / प्राणी या कहे तो नारी के प्रति द्वेष पालता हो।
भाव है की माया के विभिन्न रूप हैं जो साधक को भक्ति मार्ग से भटका देते हैं। भक्ति भी कोई बहुत आसान कार्य नहीं है, इसके लिए घोर मानसिक अनुशासन की आवश्यकता होती है। अतः नारी के प्रति मोह भी एक तरह का इन्द्रिय अनुशासन का अभाव है।
भजन श्रेणी : कबीर के दोहे हिंदी मीनिंग (Read More :Kabir Dohe Hindi Arth Sahit)