आ श्यामा सानु लोहड़ी दे भजन
आ श्यामा सानु लोहड़ी दे,
ज्यादा दे भावे थोड़ी दे,
आ श्यामा सानूं लोहड़ी दे,
ज्यादा दे भावे थोड़ी दे।
लोहड़ी असां तेरे कोलू लेनी हे,
तुहानू देनी पैनी ए,
चरनां दी अपनी भगतिं दे,
ज्यादा दे भावे थोड़ी दे,
आ श्यामा सानूं लोहड़ी दे,
ज्यादा दे भावे थोड़ी दे।
वृंदावन मैं जांदी रहवा,
रज-रज दर्शन पांदी रवा,
अपने भगतां दां संग मेनू दे,
ज्यादा दे भावे थोड़ी दे,
आ श्यामा सानूं लोहड़ी दे,
ज्यादा दे भावे थोड़ी दे।
प्रेम दे रंग विच रंग देना,
अपने भगतां दां संग देना,
याद तेरी सदा बनी रवे,
ज्यादा दे भावे थोड़ी दें,
आ श्यामा सानूं लोहड़ी दे,
ज्यादा दे भावे थोड़ी दे।
आ श्यामा सानु लोहड़ी दे,
ज्यादा दे भावे थोड़ी दे,
आ श्यामा सानूं लोहड़ी दे,
ज्यादा दे भावे थोड़ी दे।
ज्यादा दे भावे थोड़ी दे,
आ श्यामा सानूं लोहड़ी दे,
ज्यादा दे भावे थोड़ी दे।
लोहड़ी असां तेरे कोलू लेनी हे,
तुहानू देनी पैनी ए,
चरनां दी अपनी भगतिं दे,
ज्यादा दे भावे थोड़ी दे,
आ श्यामा सानूं लोहड़ी दे,
ज्यादा दे भावे थोड़ी दे।
वृंदावन मैं जांदी रहवा,
रज-रज दर्शन पांदी रवा,
अपने भगतां दां संग मेनू दे,
ज्यादा दे भावे थोड़ी दे,
आ श्यामा सानूं लोहड़ी दे,
ज्यादा दे भावे थोड़ी दे।
प्रेम दे रंग विच रंग देना,
अपने भगतां दां संग देना,
याद तेरी सदा बनी रवे,
ज्यादा दे भावे थोड़ी दें,
आ श्यामा सानूं लोहड़ी दे,
ज्यादा दे भावे थोड़ी दे।
आ श्यामा सानु लोहड़ी दे,
ज्यादा दे भावे थोड़ी दे,
आ श्यामा सानूं लोहड़ी दे,
ज्यादा दे भावे थोड़ी दे।
भजन श्रेणी : कृष्ण भजन (Krishna Bhajan)
आ श्यामा सानू लोहड़ी दे | Aa Shama Sanu Lohri De | लोहड़ी कृष्ण भजन | Punjabi Lohri Krishna Bhajan
Aa Shyaama Saanu Lohadi De,
Jyaada De Bhaave Thodi De,
Aa Shyaama Saanun Lohadi De,
Jyaada De Bhaave Thodi De.
Lohadi Asaan Tere Kolu Leni He,
Tuhaanu Deni Paini E,
Charanaan Di Apani Bhagatin De,
Jyaada De Bhaave Thodi De,
Aa Shyaama Saanun Lohadi De,
Jyaada De Bhaave Thodi De.
श्याम यहाँ दाता हैं, पर साथ ही अपने प्रेमियों के सहचर भी हैं। उनकी कृपा का कोई माप नहीं — चाहे वह अल्प ही क्यों न मिले, उसमें संतोष का सागर समाया है। “वृंदावन मैं जांदी रहवा” और “प्रेम दे रंग विच रंग देना” जैसी भावना उस आकांक्षा को व्यक्त करती है जिसमें आत्मा पुनः अपने स्रोत से मिलना चाहती है। यही मिलन सबसे बड़ा “लोहड़ी उपहार” है—जहाँ आग की ऊष्मा प्रेम बन जाती है, प्रतीक्षा भक्ति में बदल जाती है, और जीवन के हर शीत क्षण में उनके नाम का ऊष्म प्रकाश फैल जाता है। यही सच्ची सम्पन्नता है, यही ईश्वर से मिली सबसे मधुर सौगात।
लोहड़ी का पर्व जहाँ बाहर की अग्नि और उल्लास का प्रतीक है, वहीं यहाँ यह आध्यात्मिक मिलन की ऊष्मा का आह्वान है। यह विनती बताती है कि प्रभु का प्रेम, चाहे कम मात्रा में मिले या अधिक, पर मिलना अनिवार्य है। यह सौदा ऐसा है जिसमें भक्त ने स्वयं को पूरी तरह से प्रभु के हाथों सौंप दिया है, और अब वह यह नहीं कह रहा कि "मुझे सब कुछ दे दो," बल्कि वह कह रहा है कि "तुम जो भी दोगे, वही मेरे लिए अत्यंत प्रिय होगा।" यह भाव उस गहरी समझ को दर्शाता है कि प्रभु की भेंट में कभी कमी नहीं होती, चाहे हमें वह थोड़ी लगे या ज़्यादा, वह सदा परिपूर्ण होती है।
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