श्री शांतिनाथ चालीसा
श्री शांतिनाथ चालीसा
भगवान श्री शांतिनाथ जी जैन धर्म के सोलहवें तीर्थंकर थे। श्री शांतिनाथ जी के पिता का नाम विश्व सेन था। उनकी माता का नाम एरावती था। ऐसा माना जाता है कि भगवान शांतिनाथ जी के गर्भ में आनै के 6 महीनै पूर्व से ही इंद्रदेव की आज्ञा से हस्तिनापुर में एरावती माता के आंगन में रत्नों की वर्षा होनै लगी थी। भगवान श्री शांतिनाथ जी का जन्म ज्येष्ठ माह की कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को हुआ था।
भगवान श्री शांतिनाथ जी का चिन्ह हरिण है। जैन धर्म के अनुसार हरिण से यह शिक्षा मिलती है कि जीवन में कभी भी चिकनी चुपड़ी बातें और चापलूसी में नहीं फसना चाहिए। हमेशा ऐसी बातों से बचना चाहिए। जो व्यक्ति ऐसी बातों में फस जाता है, उसे बाद में पछताना पड़ता है। जैसे हरिण संगीत की आवाज सुनकर शिकारी के जाल में फस जाता है, वैसे ही चिकनी चुपड़ी बातें और चापलूसी से लोग अपनै पथ से भ्रमित हो जाते हैं और बाद में पछताते हैं। भगवान शांतिनाथ जी नै संदेश दिया है कि आप तनाव से मुक्ति चाहते हैं तो हमेशा सरल और सादा जीवन जीयें। लोगों का कल्याण करें।
भगवान श्री शांतिनाथ जी के अनुसार धन, दौलत और संपदा सब दुख के कारण हैं। इनको त्याग कर धर्म का रास्ता अपनाएं। धर्म का रास्ता अपनानै पर ही मोक्ष की प्राप्ति होती है। शांतिनाथ चालीसा का पाठ करनै से दुख, दर्द, भय, डर, शोक, चिन्ता आदि दूर होते हैं और आध्यात्मिक शक्ति का विकास होता है। श्री शांतिनाथ चालीसा पाठ करनै से धर्म में रुचि बढ़ती हैं और लोगों के कल्याण की भावना आती है।
शांतिनाथ चालीसा
शान्तिनाथ भगवान का, चालीसा सुखकार।मोक्ष प्राप्ति के लिय, कहूं सुनो चितधार।
चालीसा चालीस दिन तक, कह चालीस बार।
बढ़े जगत सम्पन, सुमत अनुपम शुद्ध विचार।
शान्तिनाथ तुम शान्तिनायक, पण्चम चक्री जग सुखदायक।
तुम ही सोलहवें हो तीर्थंकर, पूजें देव भूप सुर गणधर।
पत्र्चाचार गुणों के धारी, कर्म रहित आठों गुणकारी।
तुमनै मोक्ष मार्ग दर्शाया, निज गुण ज्ञान भानु प्रकटाया।
स्याद्वाद विज्ञान उचारा, आप तिरे औरन को तारा।
ऐसे जिन को नमस्कार कर, चढूँ सुमत शान्ति नौका पर।
सूक्ष्म सी कुछ गाथा गाता, हस्तिनापुर जग विख्याता।
विश्व सेन पितु, ऐरा माता, सुर तिहुं काल रत्न वर्षाता।
साढे दस करोड़ नित गिरते, ऐरा माँ के आंगन भरते।
पन्द्रह माह तक हुई लुटाई, ले जा भर भर लोग लुगाई।
भादों बदी सप्तमी गर्भाते, उतम सोलह स्वप्न आते।
सुर चारों कायों के आये, नाटक गायन नृत्य दिखाये।
सेवा में जो रही देवियां रखती खुश माँ को दिन रतिया।
जन्म सेठ बदी चौदश के दिन, घन्टे अनहद बजे गगन घन।
तीनों ज्ञान लोक सुखदाता, मंगल सकल हर्ष गुण लाता।
इन्द्र देव सुर सेवा करते, विद्या कला ज्ञान गुण बढ़ते।
अंग-अंग सुन्दर मनमोहन, रत्न जड़ित तन वस्त्राभूषण।
बल विक्रम यश वैभव काजा, जीते छहों खण्ड के राजा।
न्यायवान दानी उपचारी, प्रजा हर्षित निर्भय सारी।
दीन अनाथ दुखी नही कोई, होती उत्तम वस्तु वोई।
ऊँचे आप आठ सौ गज थे, वदन स्वर्ण अरू चिन्ह हिरण थे।
शक्ति ऐसी थी जिस्मानी, वरी हजार छानवें रानी।
लख चौरासी हाथी रथ थे, घोड़े करोड़ अठारह शुभ थे।
सहस पचास भूप के राजन, अरबो सेवा में सेवक जन।
तीन करोड़ थी सुंदर गईयां, इच्छा पूर्ण करें नौ निधियां।
चौदह रतन व चक्र सुदर्शन, उतम भोग वस्तुएं अनगिन।
थी अड़तालीस कोड़ ध्वजायें, कुंडल चंद्र सूर्य सम छाये।
अमृत गर्भ नाम का भोजन, लाजवाब ऊंचा सिंहासन।
लाखों मंदिर भवन सुसज्जित, नार सहित तुम जिसमें शोभित।
जितना सुख था शांतिनाथ को, अनुभव होता ज्ञानवान को।
चलें जिव जो त्याग धर्म पर, मिले ठाठ उनको ये सुखकर।
पचीस सहस्त्रवर्ष सुख पाकर, उमड़ा त्याग हितंकर तुमपर।
वैभव सब सपनै सम माना, जग तुमनै क्षणभंगुर जाना।
ज्ञानोदय जो हुआ तुम्हारा, पाये शिवपुर भी संसारा।
कामी मनुज काम को त्यागें, पापी पाप कर्म से भागें।
सुत नारायण तख्त बिठाया, तिलक चढ़ा अभिषेक कराया।
नाथ आपको बिठा पालकी, देव चले ले राह गगन की।
इत उत इन्दर चंवर ढुरावें, मंगल गाते वन पहुँचावें।
भेष दिगम्बर अपना कीना, केश लोच पन मुष्ठी कीना।
पूर्ण हुआ उपवास छटा जब, शुद्धाहार चले लेनै तब।
कर तीनों वैराग चिन्तवन, चारों ज्ञान किये सम्पादन।
चार हाथ मग चलते चलते, षट् कायिक की रक्षा करते।
मनहर मीठे वचन उचरते, प्राणिमात्र का दुखड़ा हरते।
नाशवान काया यह प्यारी, इससे ही यह रिश्तेदारी।
इससे मात पिता सुत नारी, इसके कारण फिरो दुखारी।
गर यह तन प्यारा लगता, तरह तरह का रहेगा मिलता।
तज नै हा काया माया का, हो भरतार मोक्ष दारा का।
विषय भोग सब दुख का कारण, त्याग धर्म ही शिव के साधन।
निधि लक्ष्मी जो कोई त्यागे, उसके पीछे पीछे भागे।
प्रेम रूप जो इसे बुलावे, उसके पास कभी नही आवे।
करनै को जग का निस्तारा, छहों खण्ड का राज विसारा।
देवी देव सुरा सर आये, उत्तम तप कल्याण मनाये।
पूजन नृत्य करें नत मस्तक, गाई महिमा प्रेम पूर्वक।
करते तुम आहार जहाँ पर, देव रतन वर्षाते उस घर।
जिस घर दान पात्र को मिलता, घर वह नित्य फूलता फलता।
आठों गुण सिद्धों के ध्याकर, दशों धर्म चित काय तपाकर।
केवल ज्ञान आपनै पाया, लाखों प्राणी पार लगाया।
समवशरण में धंवनि खिराई, प्राणी मात्र समझ में आई।
समवशरण प्रभु का जहाँ जाता, कोस चार सौ तक सुख पाता।
फूल फलादिक मेवा आती, हरी भरी खेती लहराती।
सेवा में छत्तिस थे गणधार, महिमा मुझसे क्या हो वर्णन।
नकुल सर्प मृग हरी से प्राणी, प्रेम सहित मिल पीते पानी।
आप चतुर्मुख विराजमान थे, मोक्ष मार्ग को दिव्यवान थे।
करते आप विहार गगन में, अन्तरिक्ष थे समवशरण में।
तीनों जगत आनन्दित किनै , हित उपदेश हजारो दीनै ।
पौनै लाख वर्ष हित कीना, उम्र रही जब एक महीना।
श्री सम्मेद शिखर पर आये, अजर अमर पद तुमनै पाये।
निष्पृह कर उद्धार जगत के, गये मोक्ष तुम लाख वर्ष के।
आंक सकें क्या छवी ज्ञान की, जोत सुर्य सम अटल आपकी।
बहे सिन्धु सम गुण की धारा, रहे सुमत चित नाम तुम्हारा।
नित चालीस ही बार, पाठ करें चालीस दिन,
खेये सुगन्ध अपार, शांतिनाथ के सामनै ।
होवे चित प्रसन्न, भय चिंता शंका मिटे,
पाप होय सब हन्न, बल विद्या वैभव बढ़े।
Shri Shantinath Ji Aarti
जय शांतिनाथ स्वामी, प्रभु जय शांतिनाथ स्वामी ।
जय शांतिनाथ स्वामी, प्रभु जय शांतिनाथ स्वामी ।
मन वच तन से, तुमको वन्दु,
जय अन्तरयामी प्रभु जय अन्तरयामी
जय शांतिनाथ स्वामी, प्रभु जय शांतिनाथ स्वामी ।
गर्भ जनम जब हुआ आपका,
तीन लोक हर्षे स्वामी तीन लोक हर्षे
इन्द्र कियो अभिषेक शिखर पर,
शिव मग के स्वामी बोलो शिव मग के स्वामी
जय शांतिनाथ स्वामी, प्रभु जय शांतिनाथ स्वामी ।
पंचम चक्री भये आप ही,
षट खंड के स्वामी, प्रभु षट खंड के स्वामी
राज विभव के भोगे प्रभु जी,
कामदेव नामी, बोलो कामदेव नामी
जय शांतिनाथ स्वामी, प्रभु जय शांतिनाथ स्वामी ।
अतुल विभव को तृणवत त्यागे,
हुए कर्म नाशी प्रभुजी, हुए कर्म नाशी
भये आप तीर्थंकर प्रभु जी,
शिव रमणी स्वामी, बोलो शिव रमणी स्वामी
जय शांतिनाथ स्वामी, प्रभु जय शांतिनाथ स्वामी ।
वीर सिंधु को नमस्कार कर,
आरती करू थारी, प्रभु आरती करू थारी
सूरज शिवपुर पावो प्रभु जी,
महा सोख्य धारी बोलो महा सोख्य धारी
जय शांतिनाथ स्वामी, प्रभु जय शांतिनाथ स्वामी ।
मन वच तन से, तुमको वन्दु,
जय अन्तरयामी प्रभु जय अन्तरयामी
जय शांतिनाथ स्वामी, प्रभु जय शांतिनाथ स्वामी ।
जय शांतिनाथ स्वामी, प्रभु जय शांतिनाथ स्वामी ।
मन वच तन से, तुमको वन्दु,
जय अन्तरयामी प्रभु जय अन्तरयामी
जय शांतिनाथ स्वामी, प्रभु जय शांतिनाथ स्वामी ।
गर्भ जनम जब हुआ आपका,
तीन लोक हर्षे स्वामी तीन लोक हर्षे
इन्द्र कियो अभिषेक शिखर पर,
शिव मग के स्वामी बोलो शिव मग के स्वामी
जय शांतिनाथ स्वामी, प्रभु जय शांतिनाथ स्वामी ।
पंचम चक्री भये आप ही,
षट खंड के स्वामी, प्रभु षट खंड के स्वामी
राज विभव के भोगे प्रभु जी,
कामदेव नामी, बोलो कामदेव नामी
जय शांतिनाथ स्वामी, प्रभु जय शांतिनाथ स्वामी ।
अतुल विभव को तृणवत त्यागे,
हुए कर्म नाशी प्रभुजी, हुए कर्म नाशी
भये आप तीर्थंकर प्रभु जी,
शिव रमणी स्वामी, बोलो शिव रमणी स्वामी
जय शांतिनाथ स्वामी, प्रभु जय शांतिनाथ स्वामी ।
वीर सिंधु को नमस्कार कर,
आरती करू थारी, प्रभु आरती करू थारी
सूरज शिवपुर पावो प्रभु जी,
महा सोख्य धारी बोलो महा सोख्य धारी
जय शांतिनाथ स्वामी, प्रभु जय शांतिनाथ स्वामी ।
मन वच तन से, तुमको वन्दु,
जय अन्तरयामी प्रभु जय अन्तरयामी
जय शांतिनाथ स्वामी, प्रभु जय शांतिनाथ स्वामी ।
Shri Shantinath Ji Maharaj Aarti
जय जिनवर देवा प्रभु जय जिनवर देवा |
शांति विधाता शिवसुख दाता शांतिनाथ देवा || टेक ||
ऐरा देवी धन्य जगत में जिस उर आन बसे |
विश्वसेन कुल नभ में मानो पूनम चन्द्र लसे || १ ||
|| जय जिनवर देवा ||
कृष्ण चतुर्दशी जेठ मास की आनंद कर तारी |
हथानापुर में जन्म महोत्सव ठाठ रचे भारी || २ ||
|| जय जिनवर देवा ||
बाल्यकाल की लीला अदभुत सुरनर मन भाई |
न्याय नीति से राज्य कियो चिर सबको सुखदाई || ३ ||
|| जय जिनवर देवा ||
पंचम चक्री काम द्वाद-शम सोल्हम तीर्थंकर |
त्रय पदधारी तुम्ही मुरारी ब्रह्मा शिवशंकर || ४ ||
|| जय जिनवर देवा ||
भवतन भोग समझ क्षरभंगुर पुनि व्रत धार लिए |
शत-खंध नव-निधि रतन चतुर्दश छार दिए || ५ ||
|| जय जिनवर देवा ||
दुर्दर तप कर कर्म निवारे केवल ज्ञान लहा |
दे उपदेश भविक जन बोधे यह उपकार महा || ६ ||
|| जय जिनवर देवा ||
शांतिनाथ हे नाम तिहारा सब जग शांति करो |
अरज करे “शिवराम” चरण में भाप आताप हरो || ७ ||
|| जय जिनवर देवा ||
शांति विधाता शिवसुख दाता शांतिनाथ देवा || टेक ||
ऐरा देवी धन्य जगत में जिस उर आन बसे |
विश्वसेन कुल नभ में मानो पूनम चन्द्र लसे || १ ||
|| जय जिनवर देवा ||
कृष्ण चतुर्दशी जेठ मास की आनंद कर तारी |
हथानापुर में जन्म महोत्सव ठाठ रचे भारी || २ ||
|| जय जिनवर देवा ||
बाल्यकाल की लीला अदभुत सुरनर मन भाई |
न्याय नीति से राज्य कियो चिर सबको सुखदाई || ३ ||
|| जय जिनवर देवा ||
पंचम चक्री काम द्वाद-शम सोल्हम तीर्थंकर |
त्रय पदधारी तुम्ही मुरारी ब्रह्मा शिवशंकर || ४ ||
|| जय जिनवर देवा ||
भवतन भोग समझ क्षरभंगुर पुनि व्रत धार लिए |
शत-खंध नव-निधि रतन चतुर्दश छार दिए || ५ ||
|| जय जिनवर देवा ||
दुर्दर तप कर कर्म निवारे केवल ज्ञान लहा |
दे उपदेश भविक जन बोधे यह उपकार महा || ६ ||
|| जय जिनवर देवा ||
शांतिनाथ हे नाम तिहारा सब जग शांति करो |
अरज करे “शिवराम” चरण में भाप आताप हरो || ७ ||
|| जय जिनवर देवा ||
Shri Shantinath Ji Bhagwan Ki Aarti
शांतिनाथ भगवान की आरती ||
शांतिनाथ भगवान की हम आरती उतारेंगे |
आरती उतारेंगे हम आरती उतारेंगे |
आरती उतारेंगे हम आरती उतारेंगे |
शांतिनाथ भगवान की हम आरती उतारेंगे |
हस्तिनापुर में जनम लिये हे प्रभु देव करे जयकारा हो |
जन्म महोत्सव करें कल्याणक, नाचे झूमे गाये हो |
ऐसे अवतारी की अब हम आरती उतारेंगे |
शांतिनाथ भगवान की हम आरती उतारेंगे |
धन्य है माता ऐरा देवी तुम्हें जो गोद उठाईं है |
विश्वसेन के कुलदीपक ने ज्ञान की ज्योति जगाई है |
ऐसे अवतारी की अब हम आरती उतारेंगे |
शांतिनाथ भगवान की हम आरती उतारेंगे |
पंचम चक्रवर्ती पद पाये, जग सुख बढा अपार था |
द्वादस कामदेव अति सुन्दर जग में बढा ही नाम था |
ऐसे अवतारी की अब हम आरती उतारेंगे |
शांतिनाथ भगवान की हम आरती उतारेंगे |
शांति नाथ प्रभु शांति प्रदाता शुचिता सुख अपार दो |
जनम-मरण दुःख मेटो प्रभुजी लेना शरण में आप हो |
ऐसे अवतारी की अब हम आरती उतारेंगे |
शांतिनाथ भगवान की हम आरती उतारेंगे |
शांतिनाथ भगवान की हम आरती उतारेंगे |
आरती उतारेंगे हम आरती उतारेंगे |
आरती उतारेंगे हम आरती उतारेंगे |
शांतिनाथ भगवान की हम आरती उतारेंगे |
हस्तिनापुर में जनम लिये हे प्रभु देव करे जयकारा हो |
जन्म महोत्सव करें कल्याणक, नाचे झूमे गाये हो |
ऐसे अवतारी की अब हम आरती उतारेंगे |
शांतिनाथ भगवान की हम आरती उतारेंगे |
धन्य है माता ऐरा देवी तुम्हें जो गोद उठाईं है |
विश्वसेन के कुलदीपक ने ज्ञान की ज्योति जगाई है |
ऐसे अवतारी की अब हम आरती उतारेंगे |
शांतिनाथ भगवान की हम आरती उतारेंगे |
पंचम चक्रवर्ती पद पाये, जग सुख बढा अपार था |
द्वादस कामदेव अति सुन्दर जग में बढा ही नाम था |
ऐसे अवतारी की अब हम आरती उतारेंगे |
शांतिनाथ भगवान की हम आरती उतारेंगे |
शांति नाथ प्रभु शांति प्रदाता शुचिता सुख अपार दो |
जनम-मरण दुःख मेटो प्रभुजी लेना शरण में आप हो |
ऐसे अवतारी की अब हम आरती उतारेंगे |
शांतिनाथ भगवान की हम आरती उतारेंगे |
भजन श्रेणी : जैन भजन (Read More : Jain Bhajan)
श्री शांतिनाथ चालीसा
लघु शांति मंत्र (श्री शांतिनाथ विधान का मूलमंत्र )
श्री शान्तिकर बीजमंत्र -
श्री शान्ति मंत्र जप विधि -
ॐ नमो अर्हते भगवते श्री शान्तिनाथाय सकल विघ्नहराय ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रौं ह्रः अ सि आ उ सा मम् सर्वोपद्रव शान्तिम लक्ष्मी लाभं च कुरु कुरु नमः (स्वाहा)
श्री शान्तिकर बीजमंत्र -
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ब्लूँ ऐं अर्हम संकटमोचक श्री शांतिनाथाय णमो नमः !!
श्री शान्ति मंत्र जप विधि -
- मंत्र जाप की दिशा - जातक का मुख उत्तर / पूर्व में होना शुभकर होता है।
- आसन - पद्मासन / अर्ध पद्मासन / सुखासन लाभकारी होता है।
- माला - पीली / लाल
- दीपक - गाय के घी का दीपक
- शुद्ध वस्त्र - पीले या लाल ।
- शुद्ध धूप - गुग्गुल और कपूर ।
- इस मन्त्र का प्रतिदिन 1000 जाप करना चाहिए।
- ब्रह्मचर्य का पालन करना अनिवार्य होता है।