शब्द की चोट लगी मेरे मन को भेद गया
शब्द की चोट लगी मेरे मन को भेद गया
शब्द की चोट लगी मेरे मन को,
भेद गया ये तन सारा,
हो मोहे साईं रंग डाला।।
कण-कण में, जड़-चेतन में,
मोहे रूप दिखे इक सुंदर,
जिसके बिन मैं जी न पाऊँ,
साईं वसे मेरे अंदर।
पूजा, अर्चन, सुमिरन, कीर्तन,
निसदिन करता रहता,
सब वैद बुला के देखे,
रोग नहीं कोई मिलता।
औषधि मूल कहीं न लागे,
क्या करे वैद विचारा,
मोहे साईं रंग डाला।।
आठ पहर, चौंसठ गली में,
मन साईं में है लगता,
कोई कहे अनुरागी मुझको,
कोई वैरागी कहता।
भक्ति सागर में डूबा,
मैं चुन-चुन लाऊँ मोती,
जीवन में फैलाऊँ उजियारा,
चले अलौकिक ज्योति।
सुर, नर, मुनि और पीर,
हो लिया कौन परे है पारा,
मोहे साईं रंग डाला।।
कैसो रंग रंगा रंगरेज़ा,
रंग नहीं ये मिटता,
इसी रंग जीवन में वारूँ,
ऐसा सुख मोहे मिलता।
साईं-साईं, साईं-साईं,
जिभ्या सदा रटती,
दुनिया मुझको पागल कहती,
मैंने पाई भक्ति।
कहत कबीर, “रूह रंगीया,
सब रंग से रंग न्यारा”,
मोहे साईं रंग डाला।।
भेद गया ये तन सारा,
हो मोहे साईं रंग डाला।।
कण-कण में, जड़-चेतन में,
मोहे रूप दिखे इक सुंदर,
जिसके बिन मैं जी न पाऊँ,
साईं वसे मेरे अंदर।
पूजा, अर्चन, सुमिरन, कीर्तन,
निसदिन करता रहता,
सब वैद बुला के देखे,
रोग नहीं कोई मिलता।
औषधि मूल कहीं न लागे,
क्या करे वैद विचारा,
मोहे साईं रंग डाला।।
आठ पहर, चौंसठ गली में,
मन साईं में है लगता,
कोई कहे अनुरागी मुझको,
कोई वैरागी कहता।
भक्ति सागर में डूबा,
मैं चुन-चुन लाऊँ मोती,
जीवन में फैलाऊँ उजियारा,
चले अलौकिक ज्योति।
सुर, नर, मुनि और पीर,
हो लिया कौन परे है पारा,
मोहे साईं रंग डाला।।
कैसो रंग रंगा रंगरेज़ा,
रंग नहीं ये मिटता,
इसी रंग जीवन में वारूँ,
ऐसा सुख मोहे मिलता।
साईं-साईं, साईं-साईं,
जिभ्या सदा रटती,
दुनिया मुझको पागल कहती,
मैंने पाई भक्ति।
कहत कबीर, “रूह रंगीया,
सब रंग से रंग न्यारा”,
मोहे साईं रंग डाला।।
Shabad Ki Chot Lagi - Prashant Rokade | Audio | Sai Bhajan | Sanskar Bhajan
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Song : Shabad Ki Chot Lagi
Singer : Prashant Rokade
Label - Sanskar Bhajan
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Label - Sanskar Bhajan
जब हृदय उस परम सत्ता के प्रेम और भक्ति के रंग में सराबोर हो जाता है, तब वह एक ऐसी अवस्था में पहुँचता है, जहाँ संसार का हर कण उस अनंत सौंदर्य और सत्य का दर्पण बन जाता है। यह भक्ति का रंग इतना गहरा और प्रभावशाली होता है कि वह मन और तन को पूर्णतः भेद देता है, और भक्त को उस साईं के स्वरूप में ही लीन कर देता है। यह अनुभव केवल बाहरी पूजा या कर्मकांड तक सीमित नहीं रहता, बल्कि यह एक ऐसी आंतरिक यात्रा है, जहाँ भक्त का हर क्षण, हर विचार उस परम शक्ति के स्मरण और कीर्तन में डूबा रहता है। संसार के सारे उपचार और भौतिक सुख इस रंग के सामने फीके पड़ जाते हैं, क्योंकि यह रंग न केवल मन को शांति देता है, बल्कि उसे उस सत्य के साथ एकाकार कर देता है, जो जीवन का मूल आधार है।
इस भक्ति के सागर में डूबा भक्त अपने हृदय में अनुराग और वैराग्य का अद्भुत संगम अनुभव करता है। वह संसार के बंधनों से मुक्त होकर, उस साईं के प्रेम में डूब जाता है, जहाँ से वह जीवन के सच्चे मोतियों को चुन लाता है। यह भक्ति का प्रकाश इतना प्रबल होता है कि वह न केवल भक्त के जीवन को, बल्कि उसके आसपास के विश्व को भी आलोकित कर देता है। इस रंग में रंगा हुआ मन न तो मिटता है, न ही कभी फीका पड़ता है; यह एक ऐसा सुख प्रदान करता है, जो सांसारिक सुखों से कहीं परे है। भक्त का हृदय निरंतर उस नाम का जाप करता है, और संसार उसे भले ही पागल कहे, पर वह इस भक्ति की मस्ती में डूबकर उस अनंत सत्य को पा लेता है, जो सभी रंगों से न्यारा और सबसे अनमोल है।
इस भक्ति के सागर में डूबा भक्त अपने हृदय में अनुराग और वैराग्य का अद्भुत संगम अनुभव करता है। वह संसार के बंधनों से मुक्त होकर, उस साईं के प्रेम में डूब जाता है, जहाँ से वह जीवन के सच्चे मोतियों को चुन लाता है। यह भक्ति का प्रकाश इतना प्रबल होता है कि वह न केवल भक्त के जीवन को, बल्कि उसके आसपास के विश्व को भी आलोकित कर देता है। इस रंग में रंगा हुआ मन न तो मिटता है, न ही कभी फीका पड़ता है; यह एक ऐसा सुख प्रदान करता है, जो सांसारिक सुखों से कहीं परे है। भक्त का हृदय निरंतर उस नाम का जाप करता है, और संसार उसे भले ही पागल कहे, पर वह इस भक्ति की मस्ती में डूबकर उस अनंत सत्य को पा लेता है, जो सभी रंगों से न्यारा और सबसे अनमोल है।
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Author - Saroj Jangir
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