मेरे मन नू गुरुजी समझायों सतगुरु भजन
मेरे मन नू गुरुजी समझायों सतगुरु भजन
मेरे मन नू गुरुजी समझायों,
मेरे आखे नहिं लगदे,
नहिं लगदे हारा वालेया,
मेरे आखे नहिं लगदे...
अमृत वेले ए नहिं उठदा,
लेले रजाई मुंह पेया तकदा,
ए ता सो-सो के नहिं रजदा,
मेरे आखे नहिं लगदे,
मेरे मन नू गुरुजी समझायों...
सत्संग दे वल ए नहिं जांदा,
घर-घर दी ए खबर लेआन्दा,
ए चुगली करन तो नहिं डरदा,
मेरे आखे नहिं लगदे,
मेरे मन नू गुरुजी समझायों...
बर्गर-पिज्जा खाने नू मांगदा,
बर्फी दे दाने भर-भर मांगदा,
ए ता खा-खा के नहिं रजदा,
मेरे आखे नहिं लगदे,
मेरे मन नू गुरुजी समझायों...
सिमरन करने नू ए नहिं बहलदा,
भज-भज के ए बाहर नू जांदा,
ए ता भजन करन तो डरदा,
मेरे आखे नहिं लगदे,
मेरे मन नू गुरुजी समझायों...
मेरे आखे नहिं लगदे,
नहिं लगदे हारा वालेया,
मेरे आखे नहिं लगदे...
अमृत वेले ए नहिं उठदा,
लेले रजाई मुंह पेया तकदा,
ए ता सो-सो के नहिं रजदा,
मेरे आखे नहिं लगदे,
मेरे मन नू गुरुजी समझायों...
सत्संग दे वल ए नहिं जांदा,
घर-घर दी ए खबर लेआन्दा,
ए चुगली करन तो नहिं डरदा,
मेरे आखे नहिं लगदे,
मेरे मन नू गुरुजी समझायों...
बर्गर-पिज्जा खाने नू मांगदा,
बर्फी दे दाने भर-भर मांगदा,
ए ता खा-खा के नहिं रजदा,
मेरे आखे नहिं लगदे,
मेरे मन नू गुरुजी समझायों...
सिमरन करने नू ए नहिं बहलदा,
भज-भज के ए बाहर नू जांदा,
ए ता भजन करन तो डरदा,
मेरे आखे नहिं लगदे,
मेरे मन नू गुरुजी समझायों...
मेरे मन नु गुरुजी समझायो मेरे आखे नहींयो लगदा ।। मकर सक्रांति स्पैशल
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सतगुरु से चंचल मन को समझाने की प्रार्थना की जाती है, क्योंकि कुछ भी अच्छा नहीं लगता। अमृत वेला में उठने की बजाय, रजाई में मुँह छिपाकर सोया जाता है, और नींद से मन तृप्त नहीं होता। सत्संग में जाने की जगह घर-घर की खबरें इकट्ठी की जाती हैं, और चुगली करने से नहीं डरा जाता। बर्गर-पिज़्ज़ा और बर्फी के दानों की लालसा रहती है, पर खाने से भी संतुष्टि नहीं मिलती। सिमरन करने में मन नहीं लगता, भजन करने से डर लगता है, और मन बाहर की ओर भागता है। यह भजन सतगुरु से मन की चंचलता को शांत करने, सही मार्ग पर लाने, और भक्ति व सिमरन की ओर प्रेरित करने की भावना को व्यक्त करता है।
सतगुरु सिर्फ भौतिक दुखों को ही नहीं, बल्कि जन्म-मृत्यु और पुनर्जन्म के चक्र से भी मुक्ति दिलाते हैं। वे भक्त को मोक्ष का मार्ग दिखाते हैं और उसे परमात्मा से जोड़ते हैं। सतगुरु की कृपा से भक्त को आंतरिक शांति, सुख और आत्मिक आनंद की प्राप्ति होती है। इस प्रकार, सतगुरु की शरण में जाना और उनके द्वारा बताई गई सतभक्ति करना ही सभी कष्टों से मुक्ति का सर्वोत्तम उपाय है।यह भजन भी देखिये
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Author - Saroj Jangir
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