सार शब्द ले ऊबरो गुरु भजन
सार शब्द ले ऊबरो गुरु भजन
(बंदी छोड़ दयाल प्रभु,
विघ्न विनाशक नाम,
आ शरण शरण बंदौं चरण,
सब विधि मंगल काम॥)
मंगल में मंगल करन,
मंगल रूप कबीर,
ध्यान धरत न सत चख ले,
कर्म जनित भव पीर॥
भगति भगत भगवंत गुरु,
चतुर नाम वपु एक,
जिनके पद वंदन किया,
नासत विघ्न अनेक॥
सार शब्द ले बाचीयो,
मानोनी इतबारा,
ए संसार सब फंद हैं,
ब्रह्म ने जाल पसारा,
सार शब्द ले ऊबरो॥
अखेह पुरुष निज वृक्ष हैं,
निरंजन डाला,
त्रि देवा शाखा भरे,
पते सब संसारा,
सार शब्द ले ऊबरों॥
ब्रह्मा जी वेद को सही किया,
शिव जी योग पसारा,
विष्णु जी माया उत्पन्न करे,
उरले का व्यवहारा,
सार शब्द ले ऊबरों॥
ज्योति स्वरूपी हाकमा,
ज्याने अमल पसारा,
कर्म की बंशी बजाय ने,
पकड़ लिया जुग सारा,
सार शब्द ले ऊबरों॥
तीन लोक दस मूंदशा,
जम रोकिया द्वारा,
पीर भये सब जीवड़ा,
पिये विष का चारा,
सार शब्द ले ऊबरों॥
अमल मिटाऊँ काँच का,
करदूँ भव से पारा,
केवे कबीर सा मैं अमर करूँ,
निज होई हमारा,
केवे कबीर सा मैं अमर करूँ,
परखो टकसारा,
सार शब्द ले ऊबरों॥
सार शब्द ले बाचीयो,
मानोनी इतबारा,
ए संसार सब फंद हैं,
ब्रह्म ने जाल पसारा,
सार शब्द ले ऊबरो,
सार शब्द ले ऊबरो॥
विघ्न विनाशक नाम,
आ शरण शरण बंदौं चरण,
सब विधि मंगल काम॥)
मंगल में मंगल करन,
मंगल रूप कबीर,
ध्यान धरत न सत चख ले,
कर्म जनित भव पीर॥
भगति भगत भगवंत गुरु,
चतुर नाम वपु एक,
जिनके पद वंदन किया,
नासत विघ्न अनेक॥
सार शब्द ले बाचीयो,
मानोनी इतबारा,
ए संसार सब फंद हैं,
ब्रह्म ने जाल पसारा,
सार शब्द ले ऊबरो॥
अखेह पुरुष निज वृक्ष हैं,
निरंजन डाला,
त्रि देवा शाखा भरे,
पते सब संसारा,
सार शब्द ले ऊबरों॥
ब्रह्मा जी वेद को सही किया,
शिव जी योग पसारा,
विष्णु जी माया उत्पन्न करे,
उरले का व्यवहारा,
सार शब्द ले ऊबरों॥
ज्योति स्वरूपी हाकमा,
ज्याने अमल पसारा,
कर्म की बंशी बजाय ने,
पकड़ लिया जुग सारा,
सार शब्द ले ऊबरों॥
तीन लोक दस मूंदशा,
जम रोकिया द्वारा,
पीर भये सब जीवड़ा,
पिये विष का चारा,
सार शब्द ले ऊबरों॥
अमल मिटाऊँ काँच का,
करदूँ भव से पारा,
केवे कबीर सा मैं अमर करूँ,
निज होई हमारा,
केवे कबीर सा मैं अमर करूँ,
परखो टकसारा,
सार शब्द ले ऊबरों॥
सार शब्द ले बाचीयो,
मानोनी इतबारा,
ए संसार सब फंद हैं,
ब्रह्म ने जाल पसारा,
सार शब्द ले ऊबरो,
सार शब्द ले ऊबरो॥
कबीर साहेब का बहुत प्रसिद्ध भजन || सार शब्द ले उतरो || काल रूपी से लड़ने की शक्ति |
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सतगुरु की पहचान उनके ज्ञान, सद्गुण और शास्त्रों के अनुसार प्रमाणित शिक्षाओं से होती है। वे शिष्य को सांसारिक बंधनों से मुक्ति, आत्मिक उन्नति और मोक्ष का मार्ग दिखाते हैं। सतगुरु समाज में जाति, पंथ, धर्म और रंग के भेदभाव से परे रहना सिखाते हैं और सभी को सच्ची साधना और भक्ति का मार्ग प्रदान करते हैं।
सतगुरु की शरण में चरणों में प्रणाम किया जाता है, जो सभी कार्यों को मंगलमय बनाते हैं। वे दयालु हैं, विघ्नों का नाश करने वाले उनके नाम से होता है। कबीर मंगल स्वरूप हैं, जिनका ध्यान करने से कर्मों से जन्मा भव-पीड़ा मिट जाती है। गुरु, भक्त और भगवान एक ही हैं, उनके चरणों की वंदना से अनेक बाधाएँ नष्ट हो जाती हैं। सतगुरु का सार शब्द अपनाने की सलाह दी जाती है, क्योंकि यह संसार ब्रह्म के जाल में फँसा है।
सृष्टि को एक वृक्ष माना जाता है, जिसमें निरंजन डाल है, त्रिदेव शाखाएँ हैं, और संसार इसके पत्ते हैं। ब्रह्मा ने वेदों को सत्य किया, शिव ने योग का प्रसार किया, विष्णु ने माया को जन्म दिया, पर यह सब उलझनों का व्यवहार है। ज्योति स्वरूपी सतगुरु ने कर्म की बंशी बजाकर सारे युग को बाँध लिया। तीनों लोकों में जीव भयभीत हैं, विष का चारा पीकर दुखी हैं। सतगुरु की कृपा से कर्मों का अमल मिटता है, भवसागर से पार उतरा जाता है। कबीर कहते हैं कि उनके साथ अमरत्व प्राप्त किया जाता है, और सच्चाई को परखने का आह्वान करते हैं। यह भजन सतगुरु के नाम और शब्द की महिमा, संसार के बंधनों से मुक्ति, और उनकी कृपा से अमरत्व की प्राप्ति की भावना को व्यक्त करता है।
सृष्टि को एक वृक्ष माना जाता है, जिसमें निरंजन डाल है, त्रिदेव शाखाएँ हैं, और संसार इसके पत्ते हैं। ब्रह्मा ने वेदों को सत्य किया, शिव ने योग का प्रसार किया, विष्णु ने माया को जन्म दिया, पर यह सब उलझनों का व्यवहार है। ज्योति स्वरूपी सतगुरु ने कर्म की बंशी बजाकर सारे युग को बाँध लिया। तीनों लोकों में जीव भयभीत हैं, विष का चारा पीकर दुखी हैं। सतगुरु की कृपा से कर्मों का अमल मिटता है, भवसागर से पार उतरा जाता है। कबीर कहते हैं कि उनके साथ अमरत्व प्राप्त किया जाता है, और सच्चाई को परखने का आह्वान करते हैं। यह भजन सतगुरु के नाम और शब्द की महिमा, संसार के बंधनों से मुक्ति, और उनकी कृपा से अमरत्व की प्राप्ति की भावना को व्यक्त करता है।
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Author - Saroj Jangir
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