श्री आदिनाथ जी आरती लिरिक्स Shri Aadinath Ji Aarti Lyrics

श्री आदिनाथ जी आरती लिरिक्स Shri Aadinath Ji Aarti Lyrics, Bhagwan Shri Aadinath Ji Ki Aarti PDF, Lyrics in Hindi


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भगवान श्री आदिनाथ जी को ऋषभदेव भी कहा जाता है। भगवान श्री आदिनाथ जी जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर है। भगवान श्री आदिनाथ जी के पिता का नाम नाभिराज और उनकी माता का नाम मरु देवी था। भगवान श्री आदिनाथ जी का जन्म अयोध्या नगरी में हुआ था। जैन धर्म के अनुसार वह प्रभु श्री राम जी के पूर्वज थे। भगवान श्री आदिनाथ जी संसार ने अहिंसा का प्रचार प्रसार किया। भगवान श्री आदिनाथ जी ने कहा कि अहिंसा ही परम धर्म है। एक दिन भगवान श्री आदिनाथ जी नृत्य देख रहे थे, नृत्य  देखते-देखते ही उनके मन में वैराग्य की इच्छा जागृत हुई और उन्होंने वैराग्य धारण कर लिया। 
 
भगवान श्री आदिनाथ जी ने अपने पुत्र भरत का राज्याभिषेक किया और इस धरा को 'भारत' का नाम दिया। फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को भगवान श्री आदिनाथ जी को कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। भगवान श्री आदिनाथ जी को माघ माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन कैलाश पर्वत पर निर्वाण प्राप्त हुआ। भगवान श्री आदिनाथ जी का प्रतीक चिन्ह वृषभ है। वृषभ मेहनत, परिश्रम, बल तथा साहस का प्रतीक है। भगवान श्री आदिनाथ जी का चालीसा पाठ करने से मन में बल और साहस का संचार होता है। भगवान श्री आदिनाथ जी ने अहिंसा के पथ पर चलकर लोगों का कल्याण करने का संदेश दिया है। भगवान श्री आदिनाथ जी ने ही खेती करना सिखाया। भगवान श्री आदिनाथ जी ने लोगों को सूर्य चंद्रमा का ज्ञान प्रदान किया। 
 
सभी के साथ न्याय और अपराध का उचित दंड देने की शुरुआत भी भगवान श्री आदिनाथ जी ने ही की थी। भगवान श्री आदिनाथ जी के चालीसा पाठ के साथ ही उनकी आरती करने का भी बहुत महत्व है। भगवान श्री आदिनाथ जी की कई आरतियाँ प्रचलन में है, जिनमे से उनकी मुख्य आरती निम्न हैं: 
 
 

आदिनाथ भगवान की आरती प्रथम आरती। Aadinath Bhagwan Ki Aarti

आरती उतारू आदिनाथ भगवान की,
माता मरुदेवि पिता नाभिराय लाल की,
रोम रोम पुलकित होता देख मूरत आपकी,
आरती हो बाबा, आरती हो आदिनाथ भगवान की।
प्रभुजी हमसब उतारे थारी आरती,
तुम धर्म धुरन्धर धारी, तुम ऋषभ प्रभु अवतारी,
तुम तीन लोक के स्वामी, तुम गुण अनंत सुखकारी,
इस युग के प्रथम विधाता, तुम मोक्ष मार्म के दाता,
जो शरण तुम्हारी आता, वो भव सागर तिर जाता,
हे...नाम हे हजारों ही गुण गान की.....
आरती उतारू आदिनाथ भगवान की।
तुम ज्ञान की ज्योति जमाए, तुम शिव मारग बतलाए,
तुम आठों करम नशाए, तुम सिद्ध परम पद पाये,
मैं मंगल दीप सजाऊ, मैं जग-मग ज्योति जलाऊ,
मैं तुम चरणों में आऊ, मैं भक्ति में रम जाऊ,
हे झूम-झूम-झूम नाचू करू आरती,
आरती उतारू आदिनाथ भगवान की।

आदिनाथ भगवान की आरती द्वितीय आरती।

ॐ की आदीश प्रभु, स्वामी जय आदीश प्रभु,
ऋषभ जिनंदा प्यारे, तिहू जग ईश विभो।
ॐ जय आदीश प्रभु.....।
नाभिराय के लाला, मरुदेवी नन्द-स्वामी,
नगर अयोध्या जन्मे, जन-गण-मन रंजन।
ॐ जय आदीश प्रभु.....।
प्रजापति कहलाये जगहित कर भारी,
स्वामी जगहित कर भारी,
जीवन-वृत्ति सिखाई, नींव धरम डारी।
ॐ जय आदीश प्रभु.....।
सकल विभव को त्यागा, हुए आतम ध्यानी,
स्वामी हुए आतम ध्यानी,
लोकालोक पिछाने, भय केवलज्ञानी।
ॐ जय आदीश प्रभु.....।
गिरी कैलाश पे जा के, कीना तप भारी,
स्वामी कीना तप भारी,
करम शिखर को चूरा, वरनी शिवनारी।
ॐ जय आदीश प्रभु.....।
ब्रम्हा विष्णु विधाता, आदि-तीर्थंकर,
स्वामी आदि-तीर्थंकर,
सहस आठ नामों से, सुमरे सुर इंदर।
ॐ जय आदीश प्रभु.....।
ऋषि मुनिगण नर-नारी, तुमको सब ध्यावे,
स्वामी तुमको सब ध्यावे,
सुर चक्री पद लेके, शिव पद को पावे।
ॐ जय आदीश प्रभु.....।
चरण आरती करके, शत-शत शीश नमू,
स्वामी शत-शत शीश नमू,
ऐसी युक्ति, प्रभु सम बन जाऊं।
ॐ जय आदीश प्रभु.....।
ॐ जय आदीश प्रभु, स्वामी जय आदीश प्रभु,
ऋषभ जिनंदा प्यारे, तिहू जग ईश विभो,
ॐ जय आदीश प्रभु.....।

आदिनाथ भगवान की आरती तृतीय आरती।

जगमग जगमग आरती कीजे,
आदिश्वर भगवान की,
प्रथम देव अवतारी प्यारे,
तीर्थंकर गुणवान की।
जगमग जगमग.....।
अवधपुरी में जन्मे स्वामी,
राजकुंवर वो प्यारे थे,
मरु माता बलिहार हुई,
जगती के तुम उजियारे थे,
द्वार द्वार बजी बधाई,
जय हो दयानिधान की।
जगमग जगमग.....।
बड़े हुए तुम राजा बन गये,
अवधपुरी हरषाई थी,
भरत बाहुबली सुत मतवारे,
मंगल बेला आई थी,
करें सभी मिल जय जयकारे,
भारत पूत महान की।
जगमग जगमग.....।
नश्वरता को देख प्रभुजी,
तुमने दीक्षा धारी थी,
देख तपस्या नाथ तुम्हारी,
यह धरती बलिहारी थी,
प्रथम देव तीर्थंकर की जय,
महाबली बलवान की।
जगमग जगमग.....।
बारापाटी में तुम प्रकटे,
चादंखेड़ी मन भाई है,
जगह जगह के आवे यात्री,
चरणन शीश झुकाई है।
फैल रही जगती में नमजी,
महिमा उसके ध्यान की।
जगमग जगमग आरती कीजे,
आदिश्वर भगवान की,
प्रथम देव अवतारी प्यारे,
तीर्थंकर गुणवान की।
जगमग जगमग.....।

आदिनाथ भगवान की आरती चतुर्थ आरती।

जय जय आरती आदि जिणंदा,
नाभिराया मरुदेवी को नन्दाः।
पहेली आरती पूजा कीजे,
नरभव पामीने लाहो लीजे,
जय जय आरती आदि जिणंदा,
नाभिराया मरुदेवी को नन्दाः।
दूसरी आरती दीनदयाला,
धूलेवा मंडपमा जग अजवालया,
जय जय आरती आदि जिणंदा,
नाभिराया मरुदेवी को नन्दाः।
तीसरी आरती त्रिभुवन देवा,
सुर नर इंद्र करे तोरी सेवा,
जय जय आरती आदि जिणंदा,
नाभिराया मरुदेवी को नन्दाः।
चौथी आरती चउ गति चूरे,
मनवांछित फल शिवसुख पूरे,
जय जय आरती आदि जिणंदा,
नाभिराया मरुदेवी को नन्दाः।
पंचमी आरती पुण्य उपाया,
मूलचंदे ऋषभ गुण गाया,
जय जय आरती आदि जिणंदा,
नाभिराया मरुदेवी को नन्दाः।
जय जय आरती.....।

भजन श्रेणी : जैन भजन (Read More : Jain Bhajan)

भगवान् ऋषभदेव
रंग    स्वर्ण
चिन्ह    वृषभ (बैल)
ऊंचाई    ५०० धनुष (१५०० मीटर)
आयु    ८,४००,००० पूर्व (५९२.७०४ × १०१८ वर्ष)

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