श्री नेमिनाथ चालीसा लिरिक्स हिंदी Shri Neminath Chalisa Lyrics

श्री नेमिनाथ चालीसा लिरिक्स हिंदी Shri Neminath Chalisa Lyrics, Benefits of Shri Neminath Puja, Fayde in Hindi, Bhagwan Neminath Chalisa in Hindi

भगवान श्री नेमिनाथ जी जैन धर्म के बाइसवें तीर्थंकर थे। भगवान श्री नेमिनाथ जी का जन्म सौरीपुर, द्वारिका में हरिवंश कुल में हुआ था। भगवान श्री नेमिनाथ जी का जन्म श्रावण माह की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को चित्रा नक्षत्र में हुआ था। भगवान श्री नेमिनाथ जी के पिता का नाम राजा समुद्रविजय था और उनकी माता का नाम शिवा देवी था। भगवान श्री नेमिनाथ जी के शरीर का वर्ण श्याम वर्ण था। भगवान श्री नेमिनाथ जी का प्रतीक चिन्ह शंख है। 
 

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भगवान श्री नेमिनाथ जी के यक्ष का नाम गोमेध और यक्षिणी का नाम अम्बिका देवी था। जैन धर्म के अनुसार भगवान श्री नेमिनाथ जी के गणधरों की संख्या 11 थी और  वरदत्त स्वामी इनके प्रथम गणधर थे। भगवान श्री नेमिनाथ जी के प्रथम आर्य का नाम यक्षदिन्ना था। भगवान श्री नेमिनाथ जी ने सौरीपुर में श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को दीक्षा ग्रहण की थी।
दीक्षा ग्रहण करने के पश्चात 54 दिनों तक कठोर तप करने के बाद गिरनार पर्वत पर 'मेषश्रृंग वृक्ष' के नीचे आश्विन अमावस्या को 'कैवल्य ज्ञान' को प्राप्त किया।
जैन धर्म के अनुसार भगवान श्री नेमिनाथ जी अहिंसा को परम धर्म मानने वाले थे। किंवदंतियों के अनुसार भगवान श्री नेमिनाथ जी जब राजा उग्रसेन की पुत्री से विवाह करने पहुंचे तब उन्होंने वहां बहुत सारे पशु देखे। जब उन्हें पता चला कि यह सारे पशु बारातियों के भोजन के लिए मारे जाने वाले हैं, तब उनका हृदय करुणा से व्याकुल हो उठा और उन्होंने विवाह का विचार छोड़  वैराग्य धारण कर लिया और तपस्वी बन गए। भगवान श्री नेमिनाथ जी को आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को गिरनार पर्वत पर निर्वाण प्राप्त हुआ। 
 
श्री जिनवाणी शीश धार कर,
सिध्द प्रभु का करके ध्यान।
लिखू नेमि-चालीसा सुखकार,
नेमिप्रभु की शरण में आन।
समुद्र विजय यादव कूलराई,
शौरीपुर राजधानी कहाई।
शिवादेवी उनकी महारानी,
षष्ठी कार्तिक शुक्ल बरवानी।
सुख से शयन करे शय्या पर,
सपने देखे सोलह सुन्दर।
तज विमान जयन्त अवतारे,
हुए मनोरथ पूरण सारे।
प्रतिदिन महल में रतन बरसते,
यदुवंशी निज मन में हरषते।
दिन षष्ठी श्रावण शुक्ला का,
हुआ अभ्युदय पुत्र रतन का।
तीन लोक में आनन्द छाया,
प्रभु को मेरू पर पधराश।
न्हवन हेतु जल ले क्षीरसागर,
मणियो के थे कलश मनोहर।
कर अभिषेक किया परणाम,
अरिष्ट नेमि दिया शुभ नाम।
शोभित तुमसे सस्य-मराल,
जीता तुमने काल-कराल।
सहस अष्ट लक्षण सुललाम,
नीलकमल सम वर्ण अभिराम।
वज्र शरीर दस धनुष उतंग,
लज्जित तुम छवि देव अनंग।
घाचा-ताऊ रहते साथ,
नेमि-कृष्ण चचेरे भ्रात।
धरा जब यौवन जिनराई,
राजुल के संग हुई सगाई।
जूनागड़ को चली बरात,
छप्पन कोटि यादव साथ।
सुना वहाँ पशुओं का क्रन्दन,
तोड़ा मोर-मुकुट और कंगन।
बाड़ा खोल दिया पशुओं का,
धारा वेष दिगम्बर मुनि का।
कितना अदभुत संयम मन में,
ज्ञानीजन अनुभव को मन में।
नौ नौ आँसू राजुल रोवे,
बारम्बार मूर्छित होवे।
फेंक दिया दुल्हन श्रृंगार,
रो रो कर यो करे पुकार।
नौ भव की तोडी क्यों प्रीत,
कैसी है ये धर्म की रीत।
नेमि दे उपदेश त्याग का,
उमड़ा सागर वैराग्य का।
राजुल ने भी ले ली दीक्षा,
हुई संयम उतीर्ण परीक्षा।
दो दिन रहकर के निराहार,
तीसरे दिन स्वामी करे विहार।
वरदत महीपति दे आहार,
पंचाश्चर्य हुए सुखकार।
रहे मौन से छप्पन दिन तक,
तपते रहे कठिनतम तप व्रत।
प्रतिपदा आश्विन उजियारी,
हुए केवली प्रभु अविकारी।
समोशरण की रचना करते,
सुरगण ज्ञान की पूजा करते।
भवि जीवों के पुण्य प्रभाव से,
दिव्य ध्वनि खिरती सद्भाव से।
जो भी होता है अतमज्ञ,
वो ही होता है सर्वज्ञ।
ज्ञानी निज आत्म को निहारे,
अज्ञानी पर्याय संवारे।
है अदभुत वैरागी दृष्टि,
स्वाश्रित हो तजते सब सृष्टि।
जैन धर्मं तो धर्म सभी का,
है निजघर्म ये प्राणीमात्र का।
जो भी पहचाने जिनदेव,
वो ही जाने आत्म देव।
रागादि के उन्मुलन को,
पूजे सब जिनदेवचरण को।
देश विदेश में हुआ विहार,
गए अन्त में गढ़ गिरनार।
सब कर्मो का करके नाश,
प्रभु ने पाया पद अविनाश।
जो भी प्रभु की शरण ने आते,
उनको मन वांछित मिलजाते।
ज्ञानार्जन करके शास्त्रों से,
लोकार्पण करती श्रद्धा से।
हम बस ये ही वर चाहे,
निज आतम दर्शन हो जाए।  

Shri Neminath Ji Bhagwan Aarti Hindi

जय जय नेमिनाथ भगवान, हम करते तेरा गुणगान।
तेरी आरति से मिटता है तिमिर अज्ञान।।
करते प्रभू जगत कल्याण, तुमने पाया पद निर्वाण,
तेरी आरति से मिटता है तिमिर अज्ञान।।टेक.।।

राजुल को त्यागा प्रभुजी ब्याह ना रचाया।
गिरिनार गिरि पर जाकर योग लगाया।।
प्राप्त हुआ फिर केवलज्ञान, दूर हुआ सारा अज्ञान,
तेरी आरति से मिटता है तिमिर अज्ञान।।१।।

शिवादेवी माता तुमसे धन्य हुर्इं थीं।
शौरीपुरी की जनता पुलकित हुई थी।।
समुद्रविजय की कीर्ति महान, गाई सुर इन्द्रों ने आन,
तेरी आरति से मिटता है तिमिर अज्ञान।।२।।

सांझ सबेरे प्रभु की आरति उतारूँ।
तेरे गुण गाके निज के गुणों को भी पा लूँ।।
करे ‘चंदनामति’ गुणगान, होवे मेरा भी कल्याण,
तेरी आरति से मिटता है तिमिर अज्ञान।।३।।

Shri Neminath Ji Bhagwan Dvitiy Aarti

जय नेमीनाथ स्वामी, प्रभु जय नेमीनाथ स्वामी
जय नेमीनाथ स्वामी, प्रभु जय नेमीनाथ स्वामी

तुम हो भव दधि तारक प्रभु जी,
तुम हो भव दधि तारक प्रभु जी ।
अन्तर के यामि स्वामी, जय नेमीनाथ स्वामी

समवशरण में आप विराजे,
समवशरण में आप विराजे ।
खिरे मधुर वाणी स्वामी, जय नेमीनाथ स्वामी

सुन भवि परम तत्व को पावत,
सुन भवि परम तत्व को पावत ।
सुख सम्यक ज्ञानी स्वामी, जय नेमीनाथ स्वामी

यक्ष यक्षिणी चंवर ढोरते, यक्ष यक्षिणी चंवर ढोरते ।
महिमा अब जानी स्वामी, जय नेमीनाथ स्वामी

तीन छत्र सिर पर तुम सोहे,
तीन छत्र सिर पर तुम सोहे ।
ध्यावत मुनि ध्यानी स्वामी, जय नेमीनाथ स्वामी
जय नेमीनाथ स्वामी, प्रभु जय नेमीनाथ स्वामी

 भजन श्रेणी : जैन भजन (Read More : Jain Bhajan)
 

।। श्री नेमिनाथ चालीसा।।

नेमिनाथ महाराज का, चालीसा सुखकार।
मोक्ष प्राप्ति के लिए, कहूँ सुनो चितधार।।
चालीसा चालीस दिन, तक कहो चालीस बार।
बढ़े जगत सम्पत्ति सुमत, अनुपम शुद्ध विचार।।

।।चौपाई।।

जय-जय नेमिनाथ हितकारी,
नील वर्ण पूरण ब्रह्मचारी।
तुम हो बाईसवें तीर्थंकर,
शंख चिह्न सतधर्म दिवाकर।।

स्वर्ग समान द्वारिका नगरी,
शोभित हर्षित उत्तम सगरी।
नही कही चिंता आकुलता,
सुखी खुशी निशदिन सब जनता।।

समय-समय पर होती वस्तु,
सभी मगन मन मानुष जन्तु।
उच्योत्तम जिन भवन अनन्ता,
छाई जिन में वीतरागता।।

पूजा-पाठ करे सब आवें,
आतम शुद्ध भावना भावें।
करे गुणीजन शास्त्र सभाएँ,
श्रावक धर्म धार हरषायें।।

रहे परस्पर प्रेम भलाई,
साथ ही चाल शीलता आई।
समुद्रविजय की थी रजधानी,
नारी शिवादेवी पटरानी।।

छठ कार्तिक शुक्ला की आई,
सोलह स्वप्ने दिये दिखाई।
कहें राव सुन सपने सवेरे,
आये तीर्थंकर उर तेरे।।

सेवा में जो रही देवियां,
टहल करे माँ की दिन रतियाँ।
सुर दल आकर महिमा गाते,
तीनों वक्त रत्न बरसाते।।

मात शिवा के आँगन भरते,
साढ़े दस करोड़ नित गिरते।
पन्द्रह माह तक हुई लुटाई,
ले जा भर-भर लोग लुगाई।।

नौ माह बाद जन्म जब लीना,
बजे गगन खूब अनहद वीणा।
सुर चारों कायो के आये,
नाटक गायन नृत्य दिखाये।।

इंद्राणी माता ढिंग आई,
सिर पर पधराये जिनराई।
लेकर इंद्र चले हाथी पर,
पधराया पाण्डु शिला पर।।

भर-भर कलश सुरों ने दीने,
न्हवन नेमिनाथ के कीने।
इतना वहाँ सुरासुर आया,
गंधोदक का निशान पाया।।

रत्नजड़ित सम वस्त्राभूषण,
पहनाएँ इन्द्राणी जिन तन।
नगर द्वारका मात-पिता को,
आकर सौपें नेमिनाथ को।।

नाटक तांडव नृत्य दिखाएँ,
नौ भव प्रभुजी के दर्शाएँ।
बचपन गया जवानी आई,
जैनाचार्य दया मन भाई।।

कृष्ण भ्रात से बहुबलदायक,
बने नेमि गुण विद्या ज्ञायक।
श्रीकृष्ण थे जो नारायण,
तीन खण्ड का करते शासन।।

गिरिवर को जो कृष्ण उठाते,
इसकी वजह बहुत गर्माते।
नेमि भी झट उसे पकड़कर,
बहुत कृष्ण से ठाड़े ऊपर।।

बैठे नेमि नाग शय्या पर,
हर्षित शांत हुए सब विषधर।
वहाँ बैठे जब शंख बजाया,
दशों दिशा जग जन कम्पाया।।

चर्चा चली सभा के अन्दर,
यादववंशी कौन है वीरवर।
उठे नेमि यह बातें सुनकर,
उँगली में जंजीर डालकर।।

खेंचे इसे ये नेमि तेरा,
सीधा हाथ करे जो मेरा।
हम सबमें वो वीर कहावें,
पदवी राज बली की पावें।।

झुका न कोई हाथ सका था,
कृष्ण और बलराम थका था।
तबसे कृष्ण रहे चिन्तातुर,
मुझसे अधिक नेमि ताकतवर।।

कभी न राज्य लेले यह मेरा,
इसका करूँ प्रबन्ध अवेरा।
करवा नेमि शादी को राज़ी,
कोई रचूं दुर्घटना ताज़ी।।

दयावान यह नेमि कहाते,
सब जीवों पर करुणा लाते।
कैसा अब षड्यंत्र रचाऊँ,
नेमिनाथ को त्याग दिलाऊँ।।

उग्रसेन नृप जूनागढ़ के,
राजुल एक सुता थी जिनके।
चन्द्रमुखी, गुणवती, सुशीला,
सुन्दर कोमल बदन गठीला।।

उससे करी नेमि की मगनी,
परम योग्य यह साजन-सजनी।
जूनागढ़ नृप खुशी मनाई,
भेज द्वारका गयी सगाई।।

हीरे-मोती लाल जवाहर,
नानाविध पकवान मनोहर।
रत्नजड़ित सब वस्त्राभूषण,
भेजे सकल पदारथ मोहन।।

शुभ महूर्त में हुई सगाई,
भये प्रफुल्लित यादवराई।
की जो नारी नगर की धारी,
किये सुखी सब दुखी भिखारी।।

दिए किसी को रथ गज घोड़े,
दिए किसी को कंगन थोड़े।
दिए किसी को सुन्दर जोड़े,
दिन जब रहे विवाह के थोड़े।।

कीनी चलने की तैयारी,
आये सम्बन्धी न्यौतारी।
छप्पन करोड़ कुटुम्बी सारे,
और बाराती लाखों न्यारे।।

चले करमचारी सेवकगण,
छवि चढत की क्या हो वर्णन।
जब जूनागढ़ की हद आयी,
कृष्ण नगर में पहुँचे जायी।।

खेपाड़े में पशु भी आये,
भूख प्यास भय से चिल्लाये।
नेमि की बारात चढ़ी जब,
द्वारे पर आकर अटकी तब।।

चिल्लाहट पशुओं की सुनकर,
छाई दया दयालु दिल पर।
बोले बन्द किये क्यों इनको,
कभी न परदुख भाता मुझको।।

तुम बारातियों की दावत में,
देने को बांधे भोजन में।
सुन यह बात नेमि कम्पाये,
वस्त्राभूषण दूर हटाये।।

शादी अब में नही करूँगा,
जग को तज निज ध्यान धरूँगा।
जा पशुओं के बंधन खोलें,
पिता समुद्रविजय तब बोले।।

छोड़ो पशु अब धीरज धारो,
चलो ससुर के द्वार पधारो।
जगत पिताजी सब मतलब का,
मन सुख में कुछ ध्यान न पर का।।

खुद तो नित्यानन्द उठावें,
पर की जान भले ही जावें।
चाहत हमें दुखी करने का,
जब निज भाव सुखी रहने का।।

जैनवंश नरभव यह पाकर,
जन्म-जन्म पछताऊँ खोकर।
दो दिन की यह राजदुलारी,
तज कर वरु अचल शिवनारी।।

सभी तौर समझाकर हारे,
पर नेमि गिरनार सिधारे।
चाहे कहो भ्रात को धोखा,
चाहो कहो निमित्त अनोखा।।

चाहे कहो पशु कुल की रक्षा,
चाहे कहो यही थी इच्छा।
पिच्छी बगल कमण्डल लेकर,
जाते चार हाथ मग लखकर।।

महलों खड़ी देख यह राजुल,
गिरी मूर्च्छित होकर व्याकुल।
जब सखियों ने होश दिलाया,
माता ने यह वचन सुनाया।।

रंग-ढंग क्यों बिगड़े है तेरे,
फेर  न उनके कोई फेरे।
पुत्री न चिन्ता व्यर्थ करो तुम,
खेलो, खाओ, जियो, हँसो तुम।।

करो दान सामायिक पूजा,
शादी करूँ देख वर दूजा।
सुनो मात यह बात हमारी,
मुनिराज एक समय उचारी।।

नौ भव के प्रेमी वह तेरे,
अब जग नाम तुम्हारा ठेरे।
सुरनगरी, शिवनगरी जाऊँ,
आप तिरु संसार तिराऊं।।

पूज्य गुरु के अटल वचन है,
तप वैराग्य भावना मन है।
माता-पिता सहेली सखियों,
मुझे भूल सब धीरज धरियों।।

नारी धरम नही यह छोडूं,
विषय भोग जग से मुख मोडूँ।
भूषण वसन निःशंक उतारकर,
धोती शुद्ध सफेद धारकर।।

पथिक बनी मैं भी उस पथ की,
प्रीति निभाऊँगी दस भव की।
आगे-पीछे दोनों जाते,
सुर नर पुष्प रत्न बरसाते।।

जूनागढ़ वासी हर्षाते,
महिमा त्याग रूप की गाते।
गई आर्यिका बनकर गिरी पर,
नेमि पास चढ़ सकी न ऊपर।।

तेरे दर्शन कारण प्रीति,
निजानन्द अनुभव रस पीती।
ध्यान आरूढ़ गुफा में रहती,
निर्भय नित्य नियम तप करती।।

कभी दूर नेमि के दर्शन,
कर गाती हर्षित गुणगायन।
कीने हितवन केवलज्ञानी,
समवशरण में फैली वाणी।।

समवशरण जिस नगरी जाता,
कोस चार सौ तक सुख आता।
चालीस हाथ आप अरिहर थे,
सेवा में ग्यारह गणधर थे।।

उम्र तीन सौ में ले दीक्षा,
वर्ष सात सौ थी जिन शिक्षा।
लाखों दुखिया पार लगाएं,
आयु सहस वर्ष शिव पाए।।

राजुल जीव राज सुर पाया,
तभी पूज्य गिरनार सहाया।
धर्म लाभ जो श्रावक पाए,
सुमत लगत मन हम भी जाएं।।

।।दोहा।।

नित चालिसहिं बार, पाठ करे चालीस दिन।
खेये सुगन्ध सुसार, नेमिनाथ के सामने।।
होवें चित्त प्रसन्न, भय, चिंता शंका मिटे।
पाप होय सब अन्त, बल-विद्या-वैभव बढ़े।।

Shri Neminath Ji Ki Aarti Hindi Me

श्री नमिनाथ जिनेश्वर प्रभु की, आरति है सुखकारी।
भव दु:ख हरती, सब सुख भरती, सदा सौख्य करतारी।।
प्रभू की जय .............।।टेक.।।

मथिला नगरी धन्य हो गई, तुम सम सूर्य को पाके,
मात वप्पिला, विजय पिता, जन्मोत्सव खूब मनाते,
इन्द्र जन्मकल्याण मनाने, स्वर्ग से आते भारी।
भव दुख..........।।प्रभू...........।।१।।

शुभ आषाढ़ वदी दशमी, सब परिग्रह प्रभु ने त्यागा,
नम: सिद्ध कह दीक्षा धारी, आत्म ध्यान मन लागा,
ऐसे पूर्ण परिग्रह त्यागी, मुनि पद धोक हमारी।
भव दुख..........।।प्रभू...........।।२।।

मगशिर सुदि ग्यारस प्रभु के, केवलरवि प्रगट हुआ था,
समवसरण शुभ रचा सभी, दिव्यध्वनि पान किया था,
हृदय सरोज खिले भक्तों के, मिली ज्ञान उजियारी।
भव दुख..........।।प्रभू...........।।३।।
तिथि वैशाख वदी चौदस, निर्वाण पधारे स्वामी,

श्री सम्मेदशिखर गिरि है, निर्वाणभूमि कल्याणी,
उस पावन पवित्र तीरथ का, कण-कण है सुखकारी।
भव दुख..........।।प्रभू...........।।४।।

हे नमिनाथ जिनेश्वर तव, चरणाम्बुज में जो आते,
श्रद्धायुत हों ध्यान धरें, मनवांछित पदवी पाते,
आश एक ‘‘चंदनामती’’ शिवपद पाऊँ अविकारी।
भव दुख..........।।प्रभू...........।।५।।


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