सरस्वती नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणी

सरस्वती नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणी

 
सरस्वती नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणी

सरस्वती नमस्तुभ्यं,
वरदे कामरूपिणी,
विद्यारम्भं करिष्यामि,
सिद्धिर्भवतु में सदा।

सरस्वती नमस्तुभ्यं,
वरदे कामरूपिणी,
विद्यारम्भं करिष्यामि,
सिद्धिर्भवतु में सदा।

सरस्वती नमस्तुभ्यं,
वरदे कामरूपिणी,
विद्यारम्भं करिष्यामि,
सिद्धिर्भवतु में सदा।

सरस्वती नमस्तुभ्यं,
वरदे कामरूपिणी,
विद्यारम्भं करिष्यामि,
सिद्धिर्भवतु में सदा

सरस्वती नमस्तुभ्यं,
वरदे कामरूपिणी,
विद्यारम्भं करिष्यामि,
सिद्धिर्भवतु में सदा।

भजन श्रेणी : माता रानी भजन (Mata Rani Bhajan)


सरस्वती मंत्र | Saraswati Mantra | Most Popular Mata SAraswati Mantra (With Lyrics) | Sanjay Pal

सरस्वती नमस्तुभ्यं,
वरदे कामरूपिणि।
विद्यारम्भं करिष्यामि,
सिद्धिर्भवतु मे सदा।।

भावार्थ (Meaning in Hindi):
हे माँ सरस्वती! आपको नमस्कार है।
आप वरदान देने वाली और मनोवांछित रूप धारण करने वाली हैं।
मैं विद्या का आरम्भ करने जा रहा हूँ,
आपकी कृपा से सदैव मेरी सिद्धि (सफलता) हो। 

Song: Saraswati Mantra
Singer: Sanjay Pal
Music: Sanjay Pal, Bunty Brijesh
Mix- Mastered: Sanjay Pal (Anjass Studio)
Lyrics: Traditional
Video: Pawan Kumar
Category: Hindi Devotional )Mata Ke Bhajan)
Producers: Amresh Bahadur - Ramit Mathur 

यह मंत्र ज्ञान की ज्योति का प्रथम आवाहन है। इसमें वह शुचिता और श्रद्धा समाई है जो किसी भी साधना या अध्ययन के आरंभ का आधार बनती है। यहाँ साधक अपनी बुद्धि को नहीं, उसे देने वाली शक्ति को प्रणाम करता है—माँ सरस्वती, जो शब्दों में अर्थ भरती हैं और विचारों को दिशा देती हैं। “वरदे कामरूपिणी” के अर्थ में निहित है कि माँ केवल ज्ञान देने वाली नहीं, इच्छा के अन्वेषण को भी शुद्ध बनाती हैं—वह मनुष्य की अभिलाषा को संस्कार में बदल देती हैं। इस जप के माध्यम से वह आशीष माँगी जाती है जहाँ सीखना केवल विषय नहीं, जीवन का तप बन जाता है।

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“विद्यारम्भं करिष्यामि”—यह कथन एक वचन की तरह है, जिस क्षण विद्यार्थी या साधक इसे उच्चारित करता है, वही क्षण उसके लिए आरंभिक संस्कार बन जाता है। यह मंत्र केवल पढ़ने की अनुमति नहीं देता बल्कि चेतना को नवप्रारंभ की स्थिति में ले आता है, जहाँ बुद्धि के साथ विनम्रता का मेल आवश्यक है। माँ सरस्वती की यह वंदना सिखाती है कि ज्ञान का मार्ग तब ही सुगंधित होता है जब उसमें अहंकार का अंश न रहे। जिस मन ने यह मंत्र सच्चे भाव से कहा, उसमें अंधकार टिक नहीं पाता—क्योंकि वहाँ माँ का प्रकाश स्थायी रूप से निवास कर लेता है। 

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