अति कभी ना करना प्यारे इति तेरी हो जायेगी

अति कभी ना करना प्यारे इति तेरी हो जायेगी

अति कभी ना करना प्यारे इति तेरी हो जायेगी भजन लिरिक्स

अति कभी ना करना प्यारे
इति तेरी हो जायेगी
बिन पंखों के पंछी जैसी
गति तेरी हो जायेगी
अति कभी ना करना प्यारे
इति तेरी हो जायेगी
बिन पंखों के पंछी जैसी
गति तेरी हो जायेगी

अति सुंदर थी सीता मैया
जिसके कारण हरण हुआ
अति घमंडी था वो रावण
जिसके कारण मरण हुआ
अति सदा वर्जित है बंदे
क्षति तेरी हो जायेगी
बिन पंखों के पंछी जैसी
गति तेरी हो जायेगी

अति वचन बोली पांचाली
महाभारत का युद्ध हुआ
अति दान देकर के राजा
बली भी बंधनयुक्त हुआ
अति विश्वास कभी ना करना
मति तेरी फिर जायेगी
बिन पंखों के पंछी जैसी
गति तेरी हो जायेगी

अति बलशाली सेना लेकर
कौरव चकनाचूर हुए
अति लालचवश जाने कितने
सत्कर्मों से दूर हुए
अति के पीछे हर्ष ना भागो
अति अंत करवायेगी
बिन पंखों के पंछी जैसी
गति तेरी हो जायेगी

अति कभी ना करना प्यारे
इति तेरी हो जायेगी
बिन पंखों के पंछी जैसी
गति तेरी हो जायेगी
अति कभी ना करना प्यारे
इति तेरी हो जायेगी
बिन पंखों के पंछी जैसी
गति तेरी हो जायेगी



अति कभी ना करना प्यारे | Ati Kabhi Na Karna Pyare | Chetawani Bhajan by Swati Agarwal | Audio

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Song: Ati Kabhi Na Karna Pyare
Singer: Swati Agarwal ( 8967612299
Lyricist: Vinod Agarwal ( Harsh) 9831295444
Category: HIndi Devotional ( Chetawani Bhajan)
Producers: Amresh Bahadur, Ramit Mathur
Label: Yuki
 
जीवन में संयम और संतुलन का महत्व है, किसी भी चीज में अति करने से विनाश होता है, जैसे बिना पंखों के पक्षी की दशा। सीता की अति सुंदरता के कारण उनका हरण हुआ और रावण के अति घमंड ने उसका अंत कर दिया, जो दर्शाता है कि अति सदा हानिकारक है ।  भजन 'अति सर्वत्र वर्जयेत्' के सनातन सिद्धांत को बहुत ही सरल और प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करता है। एक चिंतक और जीवन के अनुभवों के पारखी के रूप में, इस भजन का सार यह है कि जीवन में किसी भी चीज़ की अति, चाहे वह सुंदरता हो, घमंड हो, वचन हो, या बल, अंततः विनाश का कारण बनती है।
सीता माता की सुंदरता, रावण का अहंकार, पांचाली के तीखे वचन, राजा बलि का अतिदान, कौरवों की विशाल सेना और लोगों का अत्यधिक लालच—का उदाहरण देते हुए बताया गया है कि अधिकता हमेशा नुकसान पहुँचाती है। यदि व्यक्ति सीमा से बाहर जाता है, तो उसकी गति बिन पंखों के पक्षी जैसी हो जाती है—जो उड़ नहीं सकता और असहाय होता है। जीवन में अति करना चाहे सौंदर्य, दान, विश्वास, क्रोध, लालच या बल—हर प्रकार से हानिकारक है और अंततः मनुष्य को पतन की ओर ले जाती है। ऐतिहासिक और पौराणिक कथाओं का उल्लेख है, वे इस सार्वभौमिक सत्य को प्रमाणित करती हैं। सीता जी की अति सुंदरतता ने रावण को हरण के लिए प्रेरित किया, और रावण का अति घमंड ही उसके सर्वनाश का कारण बना। इसी तरह, द्रौपदी के कटु वचन ने महाभारत जैसे महायुद्ध को जन्म दिया और राजा बलि का अतिदान उसे बंधन में डाल गया। ये उदाहरण हमें सिखाते हैं कि अति हमेशा नकारात्मक परिणाम लाती है।

शांति, विवेक और संतुलन बनाकर ही जीवन सुंदर और सुखद रहता है। अतिशय किसी भी बात में हो, तो वही विनाश का कारण बनती है, जैसा कि इतिहास की ये घटनाएँ बताती हैं। मनुष्य को सलाह दी जाती है कि 'अति' के पीछे ना भागे, नहीं तो मति भ्रष्ट हो जाती है और गति रुक जाती है. जीवन में संतुलन और संयम बनाए रखने की सलाह देता है। यह बताता है कि अति के पीछे भागना ठीक वैसा ही है, जैसे बिना पंखों के उड़ने की कोशिश करना। यह स्थिति हमें असहाय बना देती है और हमारी प्रगति को रोक देती है। 'अति' व्यक्ति के विवेक को भ्रष्ट कर देती है, जिससे वह सही-गलत का भेद नहीं कर पाता। इसलिए, भजन का संदेश स्पष्ट है: सुखद और सार्थक जीवन के लिए अति से बचना ही एकमात्र मार्ग है।
 
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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