जय जय हे भगवती सुर भारती
जय जय हे भगवती सुर भारती,
जय जय हे भगवती सुर भारती,
तव चरणौ प्रनामामः,
नाद ब्रम्ह्मयी जय बागेश्वरी,
शरणम ते गच्छामः।
त्वमसि शरण्या त्रिभुवन धन्या,
सुर मुनि वन्दित चरणा,
नव रस मधुरा कविता मुकुरा,
स्मृति रूचि रुचिराभराना।
आसिन भावा मानस हमसे,
कूंड तुहिन सशि धवले,
हार जगतगुरु बोधि विकासम,
स्थित पंकज तनु वमले।
ललित कलामायी ग्यान विभामयी,
वीणा पुस्तकधारिणी,
मदिरा स्ताम्नो तव पदकमले,
अयि कुंठा विश्हारिणी।
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