उज्जैन की पावन भूमि को मेरा प्रणाम Ujjain Ki Pawan Bhumi
उज्जैन की पावन भूमि को मेरा प्रणाम लिरिक्स Ujjain Ki Pawan Bhumi Lyrics, Shiv Bhajan/ Ujjain Ki Pawan Bhumi Ko Mera Pranam
इतना दिया महाकाल ने मुझे,जितनी मेरी औकात नहीं,
यह तो कर्म है महाकाल का,
मुझ में तो कोई बात नहीं।
उज्जैन की पावन,
भूमि को मेरा प्रणाम,
महाकाल तेरी,
नगरी को मेरा प्रणाम,
उज्जैन नगरी,
मेरे दिल में उतर गई,
माटी लगा ली सर पर,
किस्मत संवर गई,
मिट्टी उठा ली राख से,
और दिल बना दिया,
इस पागल को भी बाबा,
तुने काबिल बना दिया,
उज्जैन नगरी,
मेरे दिल में उतर गई,
माटी लगा ली सिर पर,
किस्मत संवर गई,
झोली थी खाली मेरी,
झोली ये भर गई,
महाकाल महाराज,
वो प्राणों के प्राण,
महाकाल तेरी,
नगरी को मेरा प्रणाम,
उज्जैन की पावन,
भूमि को मेरा प्रणाम,
महाकाल तेरी,
नगरी को मेरा प्रणाम।
कुंभ का लगता मेला,
वहां बारह साल में,
अमृत की बहती धारा,
शिप्रा की धार में,
चिंतामण चिंता हरे,
शिप्रा करे निहाल,
दया करें मां हरसिद्धि,
और रक्षा करे महाकाल,
कुंभ का लगता मेला,
वहां बारह साल में,
अमृत की बहती धारा,
शिप्रा की धार में,
श्रद्धा सबुरी भर लो,
जीवन के नामों में,
महाकाल महाराज,
ओ कालों के काल,
महाकाल ले तेरी,
नगरी को मेरा प्रणाम,
उज्जैन की पावन,
भूमि को मेरा प्रणाम,
महाकाल तेरी,
नगरी को मेरा प्रणाम।
यह तो कर्म है महाकाल का,
मुझ में तो कोई बात नहीं।
उज्जैन की पावन,
भूमि को मेरा प्रणाम,
महाकाल तेरी,
नगरी को मेरा प्रणाम,
उज्जैन नगरी,
मेरे दिल में उतर गई,
माटी लगा ली सर पर,
किस्मत संवर गई,
मिट्टी उठा ली राख से,
और दिल बना दिया,
इस पागल को भी बाबा,
तुने काबिल बना दिया,
उज्जैन नगरी,
मेरे दिल में उतर गई,
माटी लगा ली सिर पर,
किस्मत संवर गई,
झोली थी खाली मेरी,
झोली ये भर गई,
महाकाल महाराज,
वो प्राणों के प्राण,
महाकाल तेरी,
नगरी को मेरा प्रणाम,
उज्जैन की पावन,
भूमि को मेरा प्रणाम,
महाकाल तेरी,
नगरी को मेरा प्रणाम।
कुंभ का लगता मेला,
वहां बारह साल में,
अमृत की बहती धारा,
शिप्रा की धार में,
चिंतामण चिंता हरे,
शिप्रा करे निहाल,
दया करें मां हरसिद्धि,
और रक्षा करे महाकाल,
कुंभ का लगता मेला,
वहां बारह साल में,
अमृत की बहती धारा,
शिप्रा की धार में,
श्रद्धा सबुरी भर लो,
जीवन के नामों में,
महाकाल महाराज,
ओ कालों के काल,
महाकाल ले तेरी,
नगरी को मेरा प्रणाम,
उज्जैन की पावन,
भूमि को मेरा प्रणाम,
महाकाल तेरी,
नगरी को मेरा प्रणाम।
इतना दिया महाकाल ने मुझे,
जितनी मेरी औकात नहीं,
यह तो कर्म है महाकाल का,
मुझ में तो कोई बात नहीं।
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Author - Saroj Jangir
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