गोबिन्द थे छो दयानिधान लिरिक्स Govind The Chho Lyrics

गोबिन्द थे छो दयानिधान लिरिक्स Govind The Chho Lyrics

गोबिन्द थे छो दयानिधाण,
झोळी भर द्यो भिच्छुक जाण,
राखो घर आयां को माण,
मैं सुणावूं बिणती
सुणावूं बिण़ती,
मैं सुणावूं कितण़ी।

आप बिराजो मन्दर मं,
साम्हां नै चन्दर म्हैल,
राधे जी नै ले'र बाग मं,
रोज करो छो सैल,
जैपर सुन्दर राजस्थाण़,
थां सम कोई नहीं धनवाण़,
राजनपति राजा भगवाण़,
मैं सुणावूं बिण़ती।

बचपन बीत जुवानी बीती,
भोत घणा दुख झेल्या,
आप जस्या कै पानै फिर भी,
रात्यूं पापड़ बेल्या,
थां सम कोई नहीं चतर सुजाण़,
कद तांइ टूटी रहली छाण़,
बंगलो दे द्यो आलिशाण़,
मैं सुणावूं बिण़ती।

बडा लोक सांची क्हैवै छा,
दीपक तळै अंधेरा,
घर का पूत कंवारा डोलै,
पाड़ोसी रा फेरा,
मैं भी पक्की लीन्हीं ठाण़,
छोडूं नहीं थां को अस्थाण़,
चाये कद भी निखळै प्राण,
मैं सुणावूं बिण़ती।

थे छो गोबिन्द पिता म्हां का,
श्रीराधा जी माई,
करद्यो बेड़ो पार दास को,
अंईंया झांको कांईं,
थां की सबसूं ऊंची साण़,
साफ करो सारो तुफाण़,
मैं भी आयो छूं मेहमाण़,
मैं सुणावूं बिण़ती।

मैं गरजी अरजी कर हारयो,
आप मूंद लिया काण़,
मरतां दम तक कहतो रहस्यूं,
बणया रहवो जिजमाण़,
आ गोपाळ छै अक्कऴवाण़,
थां की महिमा करी बखाण़,
सुणतां रईज्यो‌‌ म्हां की ताण़,
मैं सुणावूं बिण़ती।

गोबिन्द थे छो दयानिधाण,
झोळी भर द्यो भिच्छुक जाण,
राखो घर आयां को माण,
मैं सुणावूं बिणती
सुणावूं बिण़ती,
मैं सुणावूं कितण़ी।
 



गोबिन्द थे छो दयानिधान - Manish ji Sharma, Jaipur|| Govind the chho dayanidhan

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