ये मिलते नहीं दोबारा रे करो मात पिता की सेवा भजन

ये मिलते नहीं दोबारा रे करो मात पिता की सेवा भजन

ये मिलते नहीं दोबारा रे करो मात पिता की सेवा भजन लिरिक्स

ये मिलते नहीं दोबारा रे
करो मात पिता की सेवा

मात पिता हो रूप हरि का
मात पिता हो रूप हरि का
पार तिरण का एक तरीका
पार तिरण का एक तरीका
यूँ वेद पुराण पुकारा रे
करो मात पिता की सेवा

ये मिलते नहीं दोबारा रे
करो मात पिता की सेवा

है जिंदगानी बस दस दिन की
है जिंदगानी बस दस दिन की
कदर करे ना जो नर इनकी
कदर करे ना जो नर इनकी
वो फिरता मारा-मारा रे
करो मात पिता की सेवा

ये मिलते नहीं दोबारा रे
करो मात पिता की सेवा

जितने तीर्थ दुनिया भर में
जितने तीर्थ दुनिया भर में
सबके सब हों अपने घर में
सबके सब हों अपने घर में
बहे आनंद गंग धारा रे
करो मात पिता की सेवा
ये मिलते नहीं दोबारा रे
करो मात पिता की सेवा

रामधन जे चावे सुख न्यारा
रामधन जे चावे सुख न्यारा
रहिये मात पिता का प्यारा
रहिये मात पिता का प्यारा
ये मिट जा दुखड़ा सारा रे
करो मात पिता की सेवा

ये मिलते नहीं दोबारा रे
करो मात पिता की सेवा
करो मात पिता की सेवा



जनम कुंवारी हैं मैया नर्मदा # दीनभगत # अखिलेश राजा Janam kunwari hai maiya narmada #Narmada Bhajan

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Title :- करो माता पिता की सेवा
Singer :- Ankita And Group
Writer :- Ramdhan Kagsariya
Artist :- Ankita, Tamnya, Garima, Sarita, Preeti, Antim
Editor :- Shriom Attri , Preeti shriom attri 
Music :- ACP Musician
 
मात-पिता की सेवा को परम धर्म और जीवन की सबसे बड़ी पूँजी है। जीवन बहुत छोटा है, इसलिए माता-पिता की सेवा के अवसर को कभी गंवाना नहीं चाहिए, क्योंकि वे भगवान के स्वरूप हैं और उनकी सेवा ही पार उतरने का सहज तरीका है। वेद-पुराण भी बार-बार माता-पिता की सेवा को सर्वोच्च कर्तव्य मानते हैं।

जो व्यक्ति माता-पिता की कदर नहीं करता, वह जीवनभर दुखों का भोगी बन जाता है। जितने तीर्थ दुनिया में बने हैं, उन सबकी महिमा घर में माता-पिता के चरणों में ही समाहित है। उनकी सेवा से घर आनंद और सुख की गंगधारा बहता है। माता-पिता केवल एक बार मिलते हैं, दुबारा मिलने का अवसर नहीं आता, इसलिए उनकी सेवा को सर्वोच्च प्राथमिकता देना चाहिए। यह भजन गहराई से सिखाता है कि जीवन को सार्थक और सुखमय बनाना है तो माता-पिता के प्रति प्रेम, आदर और सेवा ही मुख्य मार्ग है.

भजन आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों का एक गहन संदेश देता है, जिसमें माता-पिता की सेवा को सर्वोच्च धर्म बताया गया है। एक चिंतक के दृष्टिकोण से, यह भजन जीवन की नश्वरता को रेखांकित करता है—"है जिंदगानी बस दस दिन की"—और इस संक्षिप्त जीवन में माता-पिता के प्रति कर्तव्य को सर्वोपरि मानता है। यह केवल एक धार्मिक उपदेश नहीं है, बल्कि एक दार्शनिक सत्य है कि जो व्यक्ति जीवन के इस मूल आधार की उपेक्षा करता है, वह न केवल सामाजिक रूप से बल्कि आंतरिक रूप से भी भटक जाता है।

तीर्थयात्राओं और बाहरी अनुष्ठानों से कहीं अधिक पुण्य माता-पिता की निस्वार्थ सेवा में निहित है। "जितने तीर्थ दुनिया भर में, सबके सब हों अपने घर में," यह पंक्ति इस बात पर ज़ोर देती है कि माता-पिता के चरण ही सभी पवित्र स्थानों के समान हैं। यह भजन कर्मकांड से हटकर वास्तविक भक्ति की ओर इशारा करता है, जहाँ ईश्वर का रूप मंदिर या मस्जिद में नहीं, बल्कि अपने ही घर में माता-पिता के रूप में विद्यमान है। माता-पिता की सेवा मोक्ष का एक सरल और सीधा मार्ग है, जो सभी दुखों का अंत कर देता है।
 
जो मात-पिता के सेवक हैं,नित उनको शीश झुकाते हैं
वह देते हैं सम्मान सदा,वो उनका मान बढ़ाते हैं 

मातु पिता बन्दहुँ सदा, रखूँ स्मृति सम्मान।
मातु ऋणी मैं हूँ विनत, स्नेहाशीष रसपान।।१।।

"पिता धर्मः पिता स्वर्गः पिता हि परमं तपः।
पितरि प्रीतिमापन्ने प्रीयन्ते सर्व देवताः।।" 
 
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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