तेरा अजब बना अस्थान ऊँचे पर्वत पर भजन

तेरा अजब बना अस्थान ऊँचे पर्वत पर भजन

(मुखड़ा)
तेरा अजब बना स्थान,
ऊँचे पर्वत पर।
पर्वत पर हो पर्वत पर,
पर्वत पर हो पर्वत पर,
तेरा अजब बना स्थान,
ऊँचे पर्वत पर।।

(अंतरा 1)
भीड़ लगी है तेरे द्वारे,
भीड़ लगी है तेरे द्वारे,
सभी तेरी नज़र में समान,
ऊँचे पर्वत पर।
तेरा अजब बना स्थान,
ऊँचे पर्वत पर।।

(अंतरा 2)
कोई चढ़ाए लाल चुनरिया,
कोई चढ़ाए लाल चुनरिया,
कोई फूल चढ़ाए, कोई पान,
ऊँचे पर्वत पर।
तेरा अजब बना स्थान,
ऊँचे पर्वत पर।।

(अंतरा 3)
नर-नारी सब तेरे माता,
नर-नारी सब तेरे माता,
हम सब हैं तेरी संतान,
ऊँचे पर्वत पर।
तेरा अजब बना स्थान,
ऊँचे पर्वत पर।।

(अंतरा 4)
तेरी दया की भीख मिले जो,
तेरी दया की भीख मिले जो,
हो जाए मेरा कल्याण,
ऊँचे पर्वत पर।
तेरा अजब बना स्थान,
ऊँचे पर्वत पर।।

(पुनरावृत्ति - मुखड़ा)
तेरा अजब बना स्थान,
ऊँचे पर्वत पर।
पर्वत पर हो पर्वत पर,
पर्वत पर हो पर्वत पर,
तेरा अजब बना स्थान,
ऊँचे पर्वत पर।।


Tera Ajab Bana Sthan

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Tera Ajab Bana Sthan · Tripti Shaqya
Kabhi Durga Banke Kabhi Kaali Banke
 
माँ का वह पवित्र अस्थान, जो ऊँचे पर्वत पर बसा है, भक्तों के लिए एक ऐसी शरणस्थली है, जहाँ उनकी भक्ति और श्रद्धा का संगम होता है। यह स्थान केवल एक मंदिर नहीं, बल्कि माँ की असीम कृपा और प्रेम का प्रतीक है, जहाँ हर भक्त, चाहे वह कोई भी हो, माँ की नजर में समान है। भीड़ से भरे इस दरबार में, जहाँ भक्त लाल चुनरिया, फूल और पान चढ़ाते हैं, माँ की ममता हर एक को अपने आलिंगन में लेती है। यह भक्ति का वह स्वरूप है, जो भक्तों को माँ के चरणों में लीन होने की प्रेरणा देता है, और उन्हें यह विश्वास दिलाता है कि माँ की कृपा उनके जीवन को हर दुख से मुक्त कर देगी।

माँ के इस अजब अस्थान की महिमा ऐसी है कि यहाँ नर-नारी सभी उनकी संतान बनकर उनके प्रेम में डूब जाते हैं। भक्त का मन केवल माँ की दया की भीख माँगता है, यह जानते हुए कि उनकी एक कृपादृष्टि ही उसके कल्याण का मार्ग प्रशस्त कर सकती है। यह पर्वत पर बना माँ का स्थान भक्तों के लिए एक आध्यात्मिक शिखर है, जहाँ उनकी भक्ति और समर्पण उन्हें माँ के और करीब लाता है। यह वह पवित्र स्थल है, जो हर भक्त के हृदय में माँ की ज्योति को प्रज्वलित करता है, और उसे यह अहसास कराता है कि माँ की कृपा के आगे सारे संसार की माया फीकी है।
 
नवरात्रि में शक्ति के तीन रूप—इच्छा शक्ति, क्रिया शक्ति और ज्ञान शक्ति—का वैज्ञानिक महत्व यह है कि ये तीनों रूप प्रकृति के सत्व, रज और तम गुणों से उत्पन्न होते हैं, जो संपूर्ण सृष्टि और मानव जीवन के संतुलन के लिए आवश्यक हैं। इच्छा शक्ति (रजोगुण) हमें आगे बढ़ने और लक्ष्य प्राप्ति के लिए प्रेरित करती है, क्रिया शक्ति (तमोगुण) जीवन में स्थिरता और कार्यक्षमता लाती है, जबकि ज्ञान शक्ति (सत्वगुण) विवेक, शांति और आत्मज्ञान की ओर ले जाती है।
 
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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