तूने अजब रचा भगवान भाग्य इस नारी का
तूने अजब रचा भगवान,
भाग्य इस नारी का,
तूने अजब रचा भगवान,
भाग्य इस नारी का,
नारी का इस नारी का,
तुने अजब रचा भगवान,
भाग्य इस नारी का।
बेटी बनके घर में आई,
मात पिता ने कर दी पराई,
तूने कैसा दिया अभिशाप,
भाग्य इस नारी का,
तुने अजब रचा भगवान,
भाग्य इस नारी का।
लक्ष्मी बन ससुराल में आई,
दान दहेज भी साथ में लाई,
बदले मे मिला अपमान,
भाग्य इस नारी का,
तुने अजब रचा भगवान,
भाग्य इस नारी का।
मायके में बोले बेटी परायी,
सासरिये बोले पराये घर से आई,
घर कौन सा है बेटी का,
भाग्य इस नारी का,
तुने अजब रचा भगवान,
भाग्य इस नारी का।
सास ससुर की सेवा किनी,
घर परिवार की सेवा किनी,
कलयुग की पड़ी है मार,
भाग्य इस नारी का,
तुने अजब रचा भगवान,
भाग्य इस नारी का।
तूने अजब रचा भगवान,
भाग्य इस नारी का,
नारी का इस नारी का,
तुने अजब रचा भगवान,
भाग्य इस नारी का।
भाग्य इस नारी का,
तूने अजब रचा भगवान,
भाग्य इस नारी का,
नारी का इस नारी का,
तुने अजब रचा भगवान,
भाग्य इस नारी का।
बेटी बनके घर में आई,
मात पिता ने कर दी पराई,
तूने कैसा दिया अभिशाप,
भाग्य इस नारी का,
तुने अजब रचा भगवान,
भाग्य इस नारी का।
लक्ष्मी बन ससुराल में आई,
दान दहेज भी साथ में लाई,
बदले मे मिला अपमान,
भाग्य इस नारी का,
तुने अजब रचा भगवान,
भाग्य इस नारी का।
मायके में बोले बेटी परायी,
सासरिये बोले पराये घर से आई,
घर कौन सा है बेटी का,
भाग्य इस नारी का,
तुने अजब रचा भगवान,
भाग्य इस नारी का।
सास ससुर की सेवा किनी,
घर परिवार की सेवा किनी,
कलयुग की पड़ी है मार,
भाग्य इस नारी का,
तुने अजब रचा भगवान,
भाग्य इस नारी का।
तूने अजब रचा भगवान,
भाग्य इस नारी का,
नारी का इस नारी का,
तुने अजब रचा भगवान,
भाग्य इस नारी का।
नारी भजन | तुने अजब रचा भगवान, भाग्य इस नारी का || Tune ajab racha bhagwan bhaag is naari ka
Title - Tune ajab racha bhagwan bhaag is naari ka
Artist - Vanshika Sharma
Singer - Aarti
नारी बेटी बनकर माता-पिता के घर आती है, लेकिन उसे पराया मान लिया जाता है, जैसे कोई पक्षी अपने घोंसले से उड़ान भरने को मजबूर हो। ससुराल में वह लक्ष्मी बनकर कदम रखती है, दान-दहेज लेकर आती है, लेकिन बदले में उसे सम्मान की जगह अपमान मिलता है, मानो उसका मूल्य केवल भौतिक चीजों में तौला जाए।
मायका उसे पराया कहता है, ससुराल उसे बाहरी ठहराता है। नारी का असली ठिकाना कहां है? यह सवाल मन को झकझोरता है, जैसे कोई बिना छत के घर में भटक रहा हो। वह सास-ससुर और परिवार की सेवा में दिन-रात लगी रहती है, फिर भी उसे कलयुग का दंश झेलना पड़ता है। उसका समर्पण और त्याग अनदेखा रह जाता है, जैसे मेहनत से बोया बीज बंजर जमीन में खो जाए।
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