मन में खोट भरी और मुख में हरी

मन में खोट भरी और मुख में हरी

मन में खोट भरी और मुख में हरी,
फिर मंदिर में जाने से क्या फ़ायदा,
मैल मन का धोया, बदन धो लिया,
फिर गंगा नहाने से क्या फ़ायदा।

मन में मूरत प्रभु की उतारी नहीं,
है सब से बड़ा तो भिखारी वोही,
धन दौलत पे तू क्यूँ गुमान करे,
जब संग ही ना जाए तो क्या फ़ायदा।

तू रोज़ रामायण है पढता मगर,
व्यर्थ है पढ़ के मन ना उतारी अगर,
ना माने पिता माँ के कहना जो तू,
फिर रामायण पड़ने से क्या फ़ायदा।

उपदेश तो अच्छे तू देता फिरे,
और करता करम तू सदा ही बुरे,
पहले खुद पे करो तुम अमल बाद में,
ज्ञान दूजो को देने का है कायदा।

तीर्थों पे गया तू मगर मन तेरा,
काम क्रोध ने डाला था जिस पे डेरा,
मन का धाम जो सब से बड़ा ना किया,
चारो धाम पे जाने से क्या फ़ायदा।

मन में खोट भरी और मुख में हरी,
फिर मंदिर में जाने से क्या फ़ायदा,
मैल मन का धोया, बदन धो लिया,
फिर गंगा नहाने से क्या फ़ायदा।
 


मन में खोट भरी और मुख में हरी

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