कोई ऐ माँ तेरे दरबार से खाली न गया

कोई ऐ माँ तेरे दरबार से खाली न गया

कोई ऐ माँ तेरे दरबार से खाली न गया,
न गया माँ, तेरे दरबार से खाली न गया।

जिसने जो कुछ भी माँगा, तो मुरादें पाई,
जिसने "माँ" कह के पुकारा, तू सामने आई।
होके मायूस, तेरे दर से सवाल़ी न गया,
न गया माँ, तेरे दरबार से खाली न गया।

ये वो दरबार है, जिस दर से दया मिलती है,
ये वो दरबार है, जिस दर से शिफ़ा मिलती है।
कैसे कह दूँ कि मैं दरबार से पाई न दया,
न गया माँ, तेरे दरबार से खाली न गया।

मैं भी आया हूँ तेरे दर पे सवाल़ी होकर,
एक उजड़े हुए गुलशन का वो माली होकर।
एक भी फूल तेरे दर पे चढ़ाया न गया,
न गया माँ, तेरे दरबार से खाली न गया।

अब न छोड़ूँगा कभी, देख ले तेरा आँचल,
ले ले गोदी में अपने लाल को फैला आँचल।
तेरे आँचल से फिसलकर कोई खाली न गया,
न गया माँ, तेरे दरबार से खाली न गया।

कोई ऐ माँ, तेरे दरबार से खाली न गया,
न गया माँ, तेरे दरबार से खाली न गया।
 

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Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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