निज हृदय का स्नेह कण कण लिरिक्स Nij Hridya Ka Sneh Lyrics
निज हृदय का स्नेह कण कण,निज हृदय का स्नेह कण कण,
देव प्रतिमा पर चढ़ाकर,
राष्ट्र मन्दिर का पुनर्निर्माण,
करना है हमें तो।
काट कण कण देह जिसकी,
दुर्ग का निर्माण होता,
एक तिल हटने न पाता,
भूमि में ही प्राण खोता,
जय-पराजय कीर्ति यश की,
छोड़ करके कामनाएँ,
रात दिन निश्चल अटल,
चुपचाप गढ़ का भार ढोता,
शोक में रोता नहीं और,
हर्ष में हँसता नहीं जो,
राष्ट्र की दृढ़ नींव का,
पाषाण बनना है हमें तो,
राष्ट्र मन्दिर का पुनर्निर्माण,
करना हैं हमें तो।
सह उपेक्षा शून्य पथ पर,
ज्योति का आभास लेकर,
फूँक तिल तिल देह युग युग,
का अमर इतिहास लेकर,
कर रहा निर्देश पंथी,
दूर मंजिल है अभी भी,
फिर पथिक बढ़ता अमित बल,
और दृढ़ विश्वास लेकर,
उस विरागी दीप का,
वैराग्य रग रग में रमाकर,
शून्य निर्जन ध्येय पथ,
द्युतिमान करना है हमे,
राष्ट्र मन्दिर का पुनर्निमाण,
करना है हमें तो।
मिट गई जो किन्तु क्षण,
विश्राम भी लेने न पाई,
जो प्रलय के रोष को भी,
पार करके मुस्कराई,
चीरती ही जो रही अविराम,
बाधा उदधि उर की,
नाव को तिल तिल प्रगति दे,
अन्त में चिर मुक्ति पाई,
किन्तु अपनी देह को भी,
कह न पई देह अपनी,
राष्ट्र नौका का वही,
पतवार बनना है हमें तो,
राष्ट्र मन्दिर का पुनर्निर्माण,
करना है हमें तो।