(मुखड़ा) जब जब देखूं दादी तुमको, आता है ये ख्याल क्यों, नजरे उतार दूँ, नजरे उतार दूँ, नजरे उतार दूँ, नजरे उतार दूँ।।
(अंतरा 1) भोला भाला चाँद सा मुखड़ा, देख दीवाना हो जाऊं, नजरें नहीं हटती तुम पर से, दिल करता देखे जाऊं, मन करता नैनों के रस्ते, दिल में तुझे उतार लूँ, नजरे उतार दूँ, नजरे उतार दूँ।।
(अंतरा 2) तेरे रूप के आगे फीके, लगते सभी नज़ारे हैं, सुंदरता में तुमसे हारे, सारे चाँद-सितारे हैं, दिल ही नहीं भरता चाहे, मैं सो-सो बार निहार लूँ, नजरे उतार दूँ, नजरे उतार दूँ।।
(अंतरा 3) कहते हैं अपनों की नज़र ही, सबसे पहली लगती है, नज़र न लागे मेरी मैया, शंका दिल में रहती है, जतन करूँ क्या इस शंका का, बतला दे एक बार तू, नजरे उतार दूँ, नजरे उतार दूँ।।
(अंतरा 4) हीरा मोती सोना चांदी, मैया, मेरे पास नहीं, कैसे नज़र उतारूँ तेरी, ‘सोनू’ की औकात नहीं, अगर कहे तो तन-मन अपना, तेरे ऊपर वार दूँ, नजरे उतार दूँ, नजरे उतार दूँ।।
(अंतिम पुनरावृत्ति) जब जब देखूं दादी तुमको, आता है ये ख्याल क्यों, नजरे उतार दूँ, नजरे उतार दूँ, नजरे उतार दूँ, नजरे उतार दूँ।।
जब भी देखूं दादी तुमको || RaniSati Dadi Bhajan By Saurabh Madhukar
भक्त माँ के रूप और आभा को देखकर मंत्रमुग्ध हो जाता है और अपनी भक्ति में पूर्ण रूप से समर्पित हो जाता है। चिंता रहती है कि कहीं उसकी ही नजर माँ को न लग जाए, इसलिए वह अपने भावनाओं और प्रेम के साथ माँ की नज़र उतारने की इच्छा रखता है।