श्री कृष्ण 108 नामावली हिंदी अर्थ मीनिंग Krishna 108 Namawali Meaning in Hindi

श्री कृष्ण 108 नामावली हिंदी अर्थ / मीनिंग Krishna 108 Namawali Meaning in Hindi

श्री कृष्ण 108 नामावली भगवान श्री कृष्ण के 108 पावन नामों की एक सूची है। इन नामों में भगवान श्री कृष्ण के सभी गुण और विशेषताएं निहित हैं। इन नामों का जाप करने से भक्तों को भगवान श्री कृष्ण की कृपा प्राप्त होती है और वे मोक्ष प्राप्ति के मार्ग पर आगे बढ़ते हैं। श्रीकृष्ण, भगवान विष्णु के 8वें अवतार हैं और इन्हें 'कन्हैया', 'श्याम', 'गोपाल', 'केशव', 'द्वारकेश' या 'द्वारकाधीश', 'वासुदेव' आदि नामों से भी पुकारा जाता है। श्रीकृष्ण का जन्म द्वापरयुग में हुआ था। वे वासुदेव और देवकी के आठवें संतान थे और उनका जन्म मथुरा के कारागार में हुआ था। लेकिन उनकी बड़ी माता यशोदा और नन्द ने उनका पालन-पोषण गोकुल में किया। महाभारत के युद्ध में श्रीकृष्ण अर्जुन के सारथि के रूप में थे और उन्होंने उन्हें भगवद्गीता का उपदेश दिया। यह उनके जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है। श्रीकृष्ण के 108 नाम भी प्रसिद्ध हैं। नीचे श्री कृष्ण जी के 108 नाम और उनका अर्थ दिया गया है.

श्री कृष्ण 108 नामावली हिंदी अर्थ / मीनिंग Krishna 108 Namawali Meaning in Hindi


  1. ऊँ श्री अनन्ताय नम: - हे अनन्त, अपार, अनंतकोटि ब्रह्मांडों के उत्तरवाले, तुमको नमस्कार।
  2. ऊँ श्री आत्मवते नम: - हे स्वयंप्रकाश, अपने आपसे प्रकाशित होने वाले, तुमको नमस्कार।
  3. ऊँ श्री अद्भुताय नम: - हे आश्चर्यमय, अद्वितीय, अद्भुत रूपधारी, तुमको नमस्कार।
  4. ऊँ श्री अव्यक्ताय नम: - हे अव्यक्त, अप्रकट, अनुभव-रहित, तुमको नमस्कार।
  5. ऊँ श्री अनिरुद्ध पितामहाय नम: - हे अनिरुद्ध, पितामहों के पिता, तुमको नमस्कार।
  6. ऊँ श्री आत्मज्ञान निधये नम: - हे आत्मज्ञान के सागर, ज्ञान के स्रोत, तुमको नमस्कार।
  7. ऊँ श्री आद्यपते नम: - हे सबका आदि प्रभु, जगत के उत्पत्तिकर्ता, तुमको नमस्कार।
  8. ऊँ श्री कालिन्दी पतये नम: - हे यमुना के पति, तुमको नमस्कार।
  9. ऊँ श्री कंसारये नम: - हे कंस के सबसे बड़े प्रहारी, तुमको नमस्कार।
  10. ऊँ श्री कुब्जावकृत्य निमेवित्रे नम: - हे कुब्जा के रूप बदलने वाले, उसे निमेश में उत्कृष्ट करने वाले, तुमको नमस्कार।
  11. ऊँ श्री कालिय मर्दनाय नम: - हे कालिय नाग को मरदने वाले, तुमको नमस्कार।
  12. ऊँ श्री कृष्णाय नम: - हे भगवान श्रीकृष्ण, तुमको नमस्कार।
  13. ऊँ श्री क्रियामूर्तये नम: - हे समस्त क्रियाओं के रूप, तुमको नमस्कार।
  14. ऊँ श्री कालरूपाय नम: - हे कालरूप, जो समय के रूप में प्रकट होते हैं, तुमको नमस्कार।
  15. ऊँ श्री किरीटिने नम: - हे जिनके सिर पर किरीट है, तुमको नमस्कार।
  16. ऊँ श्री गोपालाय नम: - हे गोपाल, गौवत्स के पालन करने वाले, तुमको नमस्कार।
  17. ऊँ श्री गोप गोपी मुद्रावहाय नम: - हे गोप और गोपियों की प्रेम भावनाओं को धारण करने वाले, तुमको नमस्कार।
  18. ऊँ श्री गोपी गीत गुणोदयाय नम: - हे गोपियों द्वारा गाए गए गीतों के गुणों के उदय के रूप, तुमको नमस्कार।
  19. ऊँ श्री श्यामाय नम: - हे श्याम, तुमको नमस्कार।
  20. ऊँ श्री गोपी सौभाग्य सम्भवाय नम: - हे गोपियों के शौभाग्य को उत्तपन्न करने वाले, तुमको नमस्कार।
  21. ऊँ श्री चतुर्भुजाय नम: - हे चार भुजों वाले भगवान, तुमको नमस्कार।
  22. ऊँ श्री गीतानमित पादपाय नम: - हे जिनके पादों में भगवद गीता का उपदेश है, तुमको नमस्कार।
  23. ऊँ श्री गोपस्त्री वस्त्रदाय नम: - हे गोपियों को वस्त्र प्रदान करने वाले, तुमको नमस्कार।
  24. ऊँ श्री गोवर्धन धराय नम: - हे गोवर्धन पर्वत को उठाने वाले, तुमको नमस्कार।
  25. ऊँ श्री ज्ञानयज्ञ प्रियाये नम: - हे ज्ञान और यज्ञ के प्रिय, तुमको नमस्कार।
  26. ऊँ श्री चाणूर हत्रें नम: - हे चाणूर को मारने वाले, तुमको नमस्कार।
  27. ऊँ श्री गुरुपुत्रे प्रदाय नम: - हे गुरु के पुत्र, तुमको नमस्कार।
  28. ऊँ श्री जरासन्ध मदापहाय नम: - हे जरासन्ध को मोह दिलाने वाले, तुमको नमस्कार।
  29. ऊँ श्री गरूड़ वाहनाय नम: - हे गरुड़ वाहन, तुमको नमस्कार।
  30. ऊँ श्री कर्ण विभेदनाय नम: - हे कर्ण के रथ को विभेदने वाले, तुमको नमस्कार।
  31. ऊँ श्री पार्थप्रतीज्ञा पालकाय नम: - हे पार्थ की प्रतिज्ञा का पालन करने वाले, तुमको नमस्कार।
  32. ऊँ श्री भीमसेन जय प्रदाय नम: - हे भीमसेन को विजय प्रदान करने वाले, तुमको नमस्कार।
  33. ऊँ श्री भीषणम बुद्धि प्रदाय नम: - हे भीष्म को श्रेष्ठ बुद्धि प्रदान करने वाले, तुमको नमस्कार।
  34. ऊँ श्री परीक्षित प्राण रक्षणाय नम: - हे परीक्षित के प्राणों की रक्षा करने वाले, तुमको नमस्कार।
  35. ऊँ श्री विपक्ष पक्ष क्षय कृते नम: - हे विपक्ष के पक्ष का नाश करने वाले, तुमको नमस्कार।
  36. ऊँ श्री भीष्म शल्य व्यथापहाय नम: - हे भीष्म और शल्य के द्वारा की गई व्यथा को हरने वाले, तुमको नमस्कार।
  37. ऊँ श्री प्रधुम्न जनकाय नम: - हे जनकपुत्र प्रधुम्न, तुमको नमस्कार।
  38. ऊँ श्री भद्राभर्त्रे नम: - हे भद्रा के भर्ता, तुमको नमस्कार।
  39. ऊँ श्री नरकासुर विच्छेत्रे नम: - हे नरकासुर के विच्छेदक, तुमको नमस्कार।
  40. ऊँ श्री जाम्बन्ती प्रियाय नम: - हे जाम्बवंती के प्रिय, तुमको नमस्कार।
  41. ऊँ श्री बाणासुर पुरी रोद्रध्रे नम: - हे बाणासुर के लिए पुरी को तबाह करने वाले, तुमको नमस्कार।
  42. ऊँ श्री मुचुकुन्द वर प्रदाय नम: - हे मुचुकुन्द के वरदान करने वाले, तुमको नमस्कार।
  43. ऊँ श्री तृणावर्तासुर ध्वासिने नम: - हे तृणावर्तासुर को मारने वाले, तुमको नमस्कार।
  44. ऊँ श्री त्रयीमूर्तये नम: - हे त्रयी के रूपधारी, तुमको नमस्कार।
  45. ऊँ श्री तापत्रय निवारणाय नम: - हे तापत्रयों का निवारण करने वाले, तुमको नमस्कार।
  46. ऊँ श्री मित्रविन्दा नेत्र महोत्सवाय नम: - हे मित्रविंद, जिनके नेत्रों में महोत्सव होते हैं, तुमको नमस्कार।
  47. ऊँ श्री दानव मुक्तिदाय नम: - हे दानवों को मुक्ति प्रदान करने वाले, तुमको नमस्कार।
  48. ऊँ श्री दधिमन्थ घटी त्रेत्त्रे नम: - हे दधिमन्थ घटी, जिन्होंने त्रेतायुग में दुखद घटी में गिरकर भगवान श्रीराम को शरणागत किया था, तुमको नमस्कार।
  49. ऊँ श्री देवदेवाय नम: - हे देवों के देव, तुमको नमस्कार।
  50. ऊँ श्री देवकी नन्दनाय नम: - हे देवकी और नंदनंदन, तुमको नमस्कार।
  51. ऊँ श्री द्वारकापुर कल्पनाय नम: - हे द्वारकापुर की कल्पना करने वाले, तुमको नमस्कार।
  52. ऊँ श्री नाना क्रीडा परिच्छदाय नम: - हे विविध क्रीडाओं के परिच्छद में बदलने वाले, तुमको नमस्कार।
  53. ऊँ श्री नवनीत महाचोराय नम: - हे मक्खन के महाचोर, तुमको नमस्कार।
  54. ऊँ श्री नन्दगोपोत्सव स्फूर्तये नम: - हे नन्दगोपोत्सव को प्रेरित करने वाले, तुमको नमस्कार।
  55. ऊँ श्री भक्तिगम्याय नम: - हे भक्ति के लिए अनुगाम्य, तुमको नमस्कार।
  56. ऊँ श्री पीतवाससे नम: - हे पीतवस्त्र धारण करने वाले, तुमको नमस्कार।
  57. ऊँ श्री पूतना स्तन पीड़नाय नम: - हे पूतना को स्तन पीड़ने वाले, तुमको नमस्कार।
  58. ऊँ श्री परम पावनाय नम: - हे परम पवित्र, तुमको नमस्कार।
  59. ऊँ श्री प्रकृतये नम: - हे प्रकृति के स्वामि, तुमको नमस्कार।
  60. ऊँ श्री बकासुर ग्राहिणे नम: - हे बकासुर को ग्रहण करने वाले, तुमको नमस्कार।
  61. ऊँ श्री बलिने नम: - हे बलशाली, तुमको नमस्कार।
  62. ऊँ श्री बालाय नम: - हे बलवीर तुमको नमस्कार।
  63. ऊँ श्री मुकुन्दाय नम: - हे मुकुन्द, तुमको नमस्कार।
  64. ऊँ श्री महामंगलदायककाय नम: - हे महामंगलदाता रूपधारी, तुमको नमस्कार।
  65. ऊँ श्री विराट पुरुष विग्रहाय नम: - हे विराट पुरुष के रूपधारी, तुमको नमस्कार।
  66. ऊँ श्री वेणूवादन तत्पराय नम: - हे वेणूवादन के प्रिय, तुमको नमस्कार।
  67. ऊँ श्री परमानन्दनाय नम: - हे परमानंद स्वरूप, तुमको नमस्कार।
  68. ऊँ श्री मुनिज्ञान प्रदाय नम: - हे मुनियों को ज्ञान प्रदान करने वाले, तुमको नमस्कार।
  69. ऊँ श्री मयदानव मोहनाय नम: - हे मयदानवों को मोहने वाले, तुमको नमस्कार।
  70. ऊँ श्री पांचाली मान रक्षणाय नम: - हे पांचाली के मान की रक्षा करने वाले, तुमको नमस्कार।
  71. ऊँ श्री दन्तवक्त्र निवर्हणाय नम: - हे दन्तों और मुख का निवारण करने वाले, तुमको नमस्कार।
  72. ऊँ श्री राधाप्रेम सल्लापनि वृताय नम: - हे राधाप्रेम के सल्लापन के वृत्त का आचरण करने वाले, तुमको नमस्कार।
  73. ऊँ श्री रूक्मणी जानये नम: - हे रूक्मणी को जानने वाले, तुमको नमस्कार।
  74. ऊँ श्री पार्थ सार्थ्य निरताय नम: - हे पार्थ को उपदेश देने वाले, तुमको नमस्कार।
  75. ऊँ श्री पद्मा स्थिताय नम: - हे पद्म में स्थित व्यक्ति, तुमको नमस्कार।
  76. ऊँ श्री पुराणाय नम: - हे पुराणों के स्रोत, तुमको नमस्कार।
  77. ऊँ श्री लक्ष्मणा बल्लभाय नम: - हे लक्ष्मण के प्रिय, तुमको नमस्कार।
  78. ऊँ श्री तीर्थ पावनाय नम: - हे तीर्थों को पवित्र करने वाले, तुमको नमस्कार।
  79. ऊँ श्री योगज्ञान नियोजकाय नम: - हे योगज्ञान को नियोजित करने वाले, तुमको नमस्कार।
  80. ऊँ श्री लीलाक्षाय नम: - हे लीलाओं के दर्शन करने वाले, तुमको नमस्कार।
  81. ऊँ श्री स्तुति सन्तुष्ट मानसाय नम: - हे स्तुति से सन्तुष्ट मानस वाले, तुमको नमस्कार।
  82. ऊँ श्री वल्लभाय नम: - हे वल्लभ, तुमको नमस्कार।
  83. ऊँ श्री वसुदेव सुताय नम: - हे वसुदेव के पुत्र, तुमको नमस्कार।
  84. ऊँ श्री वत्सलक्ष्मपक्षसे नम: - हे वत्सल और लक्ष्मीपति, तुमको नमस्कार।
  85. ऊँ श्री व्यापिने नम: - हे सबमें व्याप्त, तुमको नमस्कार।
  86. ऊँ श्री विश्वविमोहनाय नम: - हे विश्व को मोहने वाले, तुमको नमस्कार।
  87. ऊँ श्री वृन्दावन प्रियाय नम: - हे वृन्दावन के प्रिय, तुमको नमस्कार।
  88. ऊँ श्री पौण्डूक प्राण हराय नम: - हे पौण्ड्रक के प्राण हरने वाले, तुमको नमस्कार।
  89. ऊँ श्री यशोदास्तन्य मुदिताय नम: - हे यशोदा को स्तन्य से आनंदित करने वाले, तुमको नमस्कार।
  90. ऊँ श्री यमलार्जुन भन्जाय नम: - हे यमल और अर्जुन के भांजे, तुमको नमस्कार।
  91. ऊँ श्री यादवाय नम: - हे यादव, तुमको नमस्कार।
  92. ऊँ श्री यमुना तट सच्चारिणे नम: - हे यमुना के तट पर विचरणे वाले, तुमको नमस्कार।
  93. ऊँ श्री शोरये नम: - हे शौरि, तुमको नमस्कार।
  94. ऊँ श्री शेषशायिने नम: - हे शेषशायी, तुमको नमस्कार।
  95. ऊँ श्री सुखवासाय नम: - हे सुख का आश्रय, तुमको नमस्कार।
  96. ऊँ श्री शंख चक्र गदा पद्मम पाणये नम: - हे शंख, चक्र, गदा और पद्म को धारण करने वाले, तुमको नमस्कार।
  97. ऊँ श्री शकटासुर भंजनाय नम: - हे शकटासुर को भंजन करने वाले, तुमको नमस्कार।
  98. ऊँ श्री सर्वदेवाय नम: - हे सम्पूर्ण देवताओं के स्वामी, तुमको नमस्कार।
  99. ऊँ श्री सुनन्द सुह्रदये नम: - हे सुनन्दन के सखा, तुमको नमस्कार।
  100. ऊँ श्री श्री सर्वेश्वराय नम: - हे सम्पूर्ण ईश्वरों के स्वामी, तुमको नमस्कार।
  101. ऊँ श्री शंख चूड़शिरोहराय नम: - हे शंख और चूड़ामणि को धारण करने वाले, तुमको नमस्कार।
  102. ऊँ श्री सत्राजित रत्न वाचकाय नम: - हे सत्राजित के रत्न को प्रस्तुत करने वाले, तुमको नमस्कार।
  103. ऊँ श्री सत्यभामा प्रियाय नम: - हे सत्यभामा के प्रिय, तुमको नमस्कार।
  104. ऊँ श्री षोड़श स्त्री सहत्रेशाय नम: - हे षोड़श स्त्रियों के सहस्रनायक, तुमको नमस्कार।
  105. ऊँ श्री षड़विशंकाय नम: - हे षड़विशंक को दूर करने वाले, तुमको नमस्कार।
  106. ऊँ श्री साम्ब जनकाय नम: - हे साम्ब के पिता, तुमको नमस्कार।
  107. ऊँ श्री विदुरातिथ्य सन्तुष्टाय नम: - हे विदुरा के आगमन से संतुष्ट, तुमको नमस्कार।
  108. ऊँ श्री ब्रह्मवृक्ष वरच्छायासीनाय नम: - हे ब्रह्मवृक्ष के नीचे वरच्छाया में आसीन, तुमको नमस्कार। 

भगवान श्रीकृष्ण, भगवान विष्णु के सबसे प्रसिद्ध और शक्तिशाली अवतारों में से एक माने जाते हैं। "सोलह कला संपूर्ण" और "पूर्ण पुरुषोत्तम" शब्दों से उनका वर्णन किया गया है। वे आदर्श साथी, प्रेरणास्त्रोत और जीवन के मार्गदर्शक रहे हैं। उनका जीवन और उपदेश महाभारत में प्रकट हुआ, जिसमें वे भगवद्गीता के उपदेशक रहे हैं। उनके विभिन्न रूपों का वर्णन भी किया गया है, जैसे गोपाल, गोकुलकृष्ण, गिरिधर कृष्ण आदि। उनकी बचपन की अनेक अद्भुत कथाएँ भी जानी जाती हैं, जिनमें वे मक्खन चोरी करते हैं और गोपियों के साथ खेलते हैं। उनका जन्मदिन जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है, जिसमें उनके बालरूप की मूर्तियां पालने में रात्रि में जन्माष्टमी का आयोजन होता है। उनके आदर्श और उपदेशों के प्रति लोगों का श्रद्धान और भक्ति अमित हैं।
+

एक टिप्पणी भेजें