गुरु पारस को अन्तरो जानत हैं सब मीनिंग
गुरु पारस को अन्तरो जानत हैं सब संत मीनिंग
गुरु पारस को अन्तरो, जानत हैं सब संत,
वह लोहा कंचन करे, ये करि लेय महंत।
वह लोहा कंचन करे, ये करि लेय महंत।
Guru Paras Ko Antaro, Janat Hain Sab Sant,
Vah Loha Kachan Kare, Ye Kari Ley mahant.
कबीर साहेब की वाणी है की गुरु और पारस पत्थर में अन्तर है, यह सब सन्त जानते हैं, सभी संतों को इसका बोध है। पारस तो लोहे को सोना बनाता है, परन्तु गुरु शिष्य को अपने समान महान बना लेता है। साधक को महान पारस की भाँती संत ही बनाता है। गुरु और पारस के बीच का अंतर सभी ज्ञानी पुरुष जानते हैं, यद्यपि दोनों में ही अद्वितीय गुण हैं। पारस के स्पर्श से लोहा सोने में तब्दील हो जाता है। वहीँ गुरु के सानिध्य में साधक के आने पर वह उसके समस्त अवगुण दूर करके उसे भी महंत तुल्य बना देता है। पारस और गुरु के इस भेद को सभी जानते हैं।
गुरु की महत्ता भी पारस से भी बढ़कर है, क्योंकि वे अपने शिष्यों को अपने ज्ञान, उपदेश और गुणों के माध्यम से महान बना देते हैं। गुरु अपने शिष्य को मार्गदर्शन देकर उन्हें जीवन में सफलता की ओर ले जाते हैं। उनके द्वारा दिए गए उपदेशों और ज्ञान के प्रेरणास्त्रोत से शिष्य अपने जीवन के उद्देश्य को समझता है और मानवीय गुणों को धारण करते हुए भक्ति की और बढ़ता है ।
गुरु और पारस बीच अंतर है लेकिन पारस से भी महान गुण तो गुरु के हैं। पारस मणि के द्वारा लोहे को सोने में परिवर्तित हो जाता है, लेकिन गुरु अपने शिष्यों को अपने ज्ञान, गुणों, और मार्गदर्शन के माध्यम से महान बना देते हैं। गुरु की शिक्षा और मार्गदर्शन से शिष्य अपने जीवन में सफलता प्राप्त करते हैं और उन्हें अपने लक्ष्य तक पहुँचाने में सहायता मिलती है।
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गुरु मुरति आगे खडी, दुतिया भेद कछु नाहिं।
उन्ही कूं परनाम करि, सकल तिमिर मिटि जाही।।
दोहे में संत कबीर जी बताते हैं कि आत्मज्ञान से परिपूर्ण सतगुरु की मूर्ति सामने खड़ी है और इसमें किसी भी प्रकार का भेद नहीं होता। गुरु की अन्य दिशा के प्रति भावना नहीं होती, केवल उनकी सेवा और प्रणाम करना ही पर्याप्त होता है। गुरु के ज्ञानमय प्रकाश के माध्यम से सभी अज्ञान के अंधकार मिट जाते हैं। संत कबीर जी कहते हैं कि गुरु की आज्ञा का पालन करके मनुष्य को तीनों लोकों से भय नहीं होता।
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कहैं कबीर ता दास को, तीन लोक भय नाहीं।।
हमें अपने सिर पर गुरु को सर्वोच्च मानना चाहिए (जैसे की हमारा सर ) मानना चाहिए, यानी उन्हें सबसे महत्वपूर्ण समझना चाहिए, क्योंकि गुरु के समान कोई और नहीं है। गुरु की आज्ञा का पालन करने से मनुष्य को सभी लोकों में किसी भी प्रकार का भय नहीं रहता। यह उनके ज्ञान और आदर्शन के परिणाम स्वरूप होता है जिससे वह निर्भीक और आत्मविश्वासी जीवन जीता है।
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Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें। |
