कबीर माला मन की और संसारी भेष मीनिंग अर्थ Kabir Mala Man Ki Meaning

कबीर माला मन की और संसारी भेष मीनिंग अर्थ Kabir Mala Man Ki Meaning

कबीर माला मन की, और संसारी भेष।
माला पहर्‌या हरि मिलै, तौ अरहट कै गलि देष॥
या
कबिरा माला मनहि की, और संसारी भीख।
माला फेरे हरि मिले, गले रहट के देख॥

Kabir Mala Man Ki, Aur Sansaari Bhesh,
Mala Paharya Hari Mile, To Arhat Ke Gali Desh. 
 
Or

Kabira Mala Manahi Ki, Aur Sansari Bheekh,
Mala Phere Hari Mile, Gale Rahat Ke Dekh.

कबीर माला मन की दोहा शब्दार्थ Kabir Mala Man Ki Kabir Doha Word Meaning Hindi

कबीर माला मन की : कबीर साहेब की वाणी है की एक  मन की माला, लाभकारी है.
और संसारी भेष : बाकी सभी तो संसार के वेश हैं, रंग बिरंगे कपडे हैं.
माला पहर्‌या हरि मिलै : माला पहनने से यदि हरी मिलते हैं तो.
तौ अरहट कै गलि देष : तो रहट के गले में पड़ी हुई माला को देखो.
देष : देखो.
माला पहर्‌या : माला को पहनने से.
हरि मिलै : इश्वर मिलते हैं तो.
तौ  तो.
अरहट : रहट, पानी निकालने का यंत्र, रहट.
कै : के.
गलि : गले में.
देष : देखो.
 

हिंदी अर्थ /भावार्थ हिंदी में

प्रस्तुत साखी में कबीर साहेब की वाणी है की साधक भक्ति करने के नाम पर अपने गले में माला को धारण करता है. लेकिन साहेब ने कहा की यह माला सांसारिक  वेशभूषा बाह्य दिखावे के लिए ही है जिससे सांसारिक लाभ ही मिल सकता है. भक्ति का कोई भी लाभ इससे प्राप्त नहीं किया जा सकता है. गले में विभिन्न प्रकार की माला धारण करने वाले लोगों के लिए कबीर साहेब का सन्देश है की यह सांसारिक लाभ, उद्देश्य की प्राप्ति के लिए हो सकता है. यदि गले में मोतियों की माला से लाभ मिलता  है तो रहट को देखो उसमें तो डोलियों की माला पुरे दिन ही घूमती रहती है. 
 
कबीर माला मन की और संसारी भेष मीनिंग अर्थ Kabir Mala Man Ki Meaning


इस साखी में कबीर साहेब यह संदेश देते हैं कि कुछ साधक भक्ति के नाम पर अपने गले में माला पहनते हैं, लेकिन यह माला वास्तविकता में एक सांसारिक दिखावे की वेशभूषा होती है। वस्तुतः यह बाह्य भक्ति है, भक्ति का महज प्रदर्शन है। यह आत्मिक नहीं है। इससे केवल सांसारिक लाभ ही प्राप्त हो सकता है, इससे हरी की प्राप्ति संभव नहीं है। माला पहनने से, हाथों में फिराने से सांकेतिक भक्ति की जा सकती है इसका कोई लाभ प्राप्त नहीं होने वाला है। साहेब ने इसे भी कर्मकांड और अन्धविश्वास और आडंबर ही घोषित किया है। 
 
कबीर साहेब का स्पष्ट सन्देश है की हाथों में माला लेकर फिराने से, गले में माला को धारण करने से ना तो ईश्वर की प्राप्ति होने वाली है और ना ही कोई भक्ति ही सार्थक होती है। गले में माला धारण करना एक प्रदर्शन है, भक्ति नहीं। जैसे की रहट के गले में डोलियों की माला रहती है तो क्या उसे भी भक्ति माना जाएगा ? नहीं। अतः चित्त/आत्मा से हरी के नाम का सुमिरण करना ही भक्ति है। ईश्वर की प्राप्ति तभी सम्भव है जब हम शुद्ध हृदय से हरी के नाम का सुमिरण करें, सत्य को अपने जीवन में धारण करके निर्मल हृदय से हरी के नाम का सुमिरण करे, यही असल भक्ति है। 

मालाओं के उदाहरण देते हैं जिन्हें लोग धारण करते हैं। उनका संदेश है कि यह सांसारिक विचार और वेशभूषा, जो उन्हें उनके बाहरी दिखावे की दिशा में मदद करते हैं, सिर्फ कुछ सांसारिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं। भक्ति का असली लाभ इन सांसारिक विचारों से प्राप्त नहीं किया जा सकता है।
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