माला फेरत जुग भया फिरा न मन का मीनिंग Mala Ferat Jug Bhaya Meaning : Kabir Ke Dohe/Bhavarth
माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर ।
कर का मन का डार दें, मन का मनका फेर ।।
कर का मन का डार दें, मन का मनका फेर ।।
Mala Ferat Jug Bhaya, Phira Na Man Ka Pher,
Kar Ka Manaka Dar De, Man Ka Manaka Pher.
कबीर के दोहे का हिंदी अर्थ/भावार्थ (Kabir Doha Hindi Meaning)
कबीर साहेब का सन्देश है की हाथों में माला लेकर उसे फेरने/फिराने (घुमाने) से कोई लाभ होने वाला नहीं है। हाथों की माला फेरने से मन की वृति नहीं बदलती है, मन में शुद्दता नहीं आती है. अतः हाथों का मनका (माला) को छोड़ दो/डाल दो और मन का मनका फिराओ। मन का विश्लेष्ण करो और मन के अवगुणों को दूर करो. हाथों का मनका फिराते हुए युग बीत गए है.
दोहे में, कबीर साहेब कहते हैं कि कोई व्यक्ति हाथों की माला को फिर रहा है, लेकिन उसके मन का भाव नहीं बदला है। केवल बाह्य आडम्बरों से इश्वर की प्राप्ति नहीं होने वाली है। हाथों के मनके (माला का मनका) को छोड़ दो और अपने मन की माला को फिराओं और हरी के नाम का सुमिरन करो. वह अपने मन के अंदर झांककर नहीं देख रहा है। हाथों की माला को फेरना छोड़ दे और अपने मन का विश्लेषण करो। हमें अपने मन के अंदर झांकना चाहिए और अपने बुरे विचारों और भावनाओं को दूर करना चाहिए। कबीर जी का यह दोहा हमें यह याद दिलाता है कि बाह्य आडम्बरों से कुछ नहीं होता है। केवल मन के अंदर झांककर और अपने मन को शुद्ध करके ही हम वास्तविक शांति और मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं।
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Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें। |